

सन्मार्ग संवाददाता
कोलकाता : क्या संभावित मौत और प्राकृतिक मौत का दर्जा बराबर है। संभावित मौत : इसमें कोर्ट के आदेश पर लापता व्यक्ति को मृत मान लिया जाता है। क्या संभावित मौत (सिविल डेथ) के आधार पर अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन किया जा सकता है। हाई कोर्ट की जस्टिस राई चटोपाध्याय ने पीटिशनर के आवेदन पर विचार करके तर्कसंगत फैसला लेने का आदेश दिया है।
जस्टिस चट्टोपाध्याय ने इस आधार पर दिए गए प्राइमरी स्कूल काउंसिल के चेयरमैन के आदेश को खारिज कर दिया है। उन्होंने कहा है कि संभावित मौत और प्राकृतिक मौत का दर्जा बराबर है। एडवोकेट इकरामुल बारी ने यह जानकारी देते हुए बताया कि मृणमय मोहंती ने यह पीटिशन दायर किया है। उसके पिता पुरुलिया के एक प्राइमरी स्कूल में टीचर थे। पिता 2007 में 19 जनवरी को लापता हो गए थे। कोर्ट ने 2018 में 30 नवंबर को उन्हें मृत मानते हुए सिविल डेथ सर्टिफिकेट जारी कर दिया। इसके बाद पीटिशनर ने अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति देने के लिए आवेदन किया था। चेयरमैन ने इस आवेदन को इस आधार पर खारिज कर दिया कि पीटिशनर के पिता की मौत सेवा में रहने के दौरान नहीं हुई थी। इसके बाद हाई कोर्ट में रिट दायर की गई। इस मामले में एडवोकेट बारी की दलील थी कि पीटिशनर के पिता की मौत 60 वर्ष में सेवानिवृत्त होने से पहले हुई थी। इसलिए उसे नियुक्ति पाने का हक है। राज्य सरकार की दलील थी कि जिस दौरान पीटिशनर के पिता लापता हुए थे उस समय इस तरह की नियुक्ति देने का कोई प्रावधान नहीं था। जस्टिस चट्टोपाध्याय ने अपने फैसले में कहा है कि अनुकंपा नियुक्ति देने के मामले में सिविल डेथ और नेचुरल डेथ में कोई फर्क नहीं किया जा सकता है। दोनों ही मामलों में एक ही उद्देश्य है कि परिवार को सहारा दिया जाए। उन्होंने कहा है कि पीटिशनर के परिवार पर विपत्ति तो उसी दिन आ गई थी जिस दिन से उसके पिता लापता हुए थे। जस्टिस चट्टोपाध्याय ने आदेश दिया है कि अगर पीटिशनर का आवेदन तत्काल स्वीकार नहीं किया जाता है तो इसकी तर्कसंगत वजह आठ सप्ताह के अंदर बतानी पड़ेगी।