

सन्मार्ग संवाददाता
कोलकाता : आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत एक व्यक्ति को एक जिला अदालत ने 1988 में एक साल जेल की सजा सुनायी थी और इसके साथ ही उस पर पांच सौ रुपए का जुर्माना भी लगाया था। इसके खिलाफ उसने हाई कोर्ट में अपील की थी। जस्टिस अनन्या बंद्योपाध्याय ने उसे मुचलका पर रिहा किए जाने का आदेश दिया है। अलबत्ता इतने वर्षों तक वह जमानत पर ही रहा था।
एडवोकेट विपासा जायसवाल ने यह जानकारी देते हुए बताया कि दिलीप कुमार जाना ने हाई कोर्ट में यह अपील दायर की थी। जस्टिस बंद्योपाध्याय ने अपने फैसले में कहा है कि पीटिशनर की दुकान का निरीक्षण 1985 के अगस्त में किया गया था। उसे 1988 में सजा सुनायी गई थी। यानी यह घटना 37 साल पहले घटी थी। सुनवायी के दौरान कहा गया था कि इस पूरी अवधि के दौरान वह जमानत पर ही रहा था। जस्टिस बंद्योपाध्याय ने कई फैसलों और कानूनी विश्लेषण का हवाला देते हुए कहा है कि यह घटना 1988 की है इसलिए पीटिशनर को मुचलके (प्रोबेशन) पर रिहा कर दिया जाए। इसके साथ ही पीटिशनर को पांच हजार रुपए का बांड भरना पड़ेगा। अपनी सजा की अवधि तक के लिए वह शांति के साथ एक नेक इनसान की तरह रहेगा। अगर ऐसा नही करता है तो उसे सजा भुगतने के लिए वापस बुला लिया जाएगा। इस आदेश के छह माह के अंदर उसे पांच हजार रुपए बतौर जुर्माना अदा करना पड़ेगा। अगर नहीं करता है तो उसे जेल की सजा भुगतने के लिए बुला लिया जाएगा। जस्टिस बंद्योपाध्याय ने फैसले की कापी को ट्रायल कोर्ट में भेजे जाने का आदेश दिया है ताकि औपचारिकताएं पूरी की जा सके। इस मामले में कोर्ट ने एडवोकेट सृंजन घोष को कोर्ट बंधु के रूप में नियुक्त किया था। जस्टिस बंद्योपाध्याय ने एडवोकेट घोष के सहयोग की सराहना की है। पुलिस ने मिदनापुर के कुलतिकरी बाजार में स्थित पीटिशनर की राशन की दुकान पर रेड किया था। इसके बाद उसके खिलाफ आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत मुकदमा दायर किया गया था और जिला अदालत ने उसे सजा सुनायी थी।