

जितेंद्र, सन्मार्ग संवाददाता
कोलकाता : सड़क दुर्घटना में हुई मौत के मामले में हाई कोर्ट ने बीमा कंपनी की अपील खारिज कर दी है। इसमें एडिशनल सेशन जज के फैसले को चुनौती दी गई थी। बीमा कंपनी की दलील थी कि एडिशनल सेशन जज ने मुआवजे के मद में अस्वाभाविक रकम का भुगतान किए जाने का आदेश दिया है। जस्टिस विश्वरूप चौधरी ने बीमा कंपनी की अपील को खारिज करते हुए एडिशनल सेशन जज के फैसले को बहाल रखा है।
तमलुक कोर्ट के एडिशनल सेशन जज ने अपने फैसले में कहा था कि मृतक एक स्वस्थ नौजवान था। उसकी मासिक आय 15 हजार रुपए थी। इस बात की पूरी संभावना थी कि अगर वह जिंदा रहता तो भविष्य में और भी उन्नति करता। अपने परिवार का अकेला कमाऊ सदस्य था। एडवोकेट अमृता पांडे ने बताया कि बीमा की रकम के दावेदार पूरी तरह उसी पर निर्भर थे। लिहाजा पीटिशनरों को मुआवजे के मद में 11.41 लाख रुपए का भुगतान किया जाए। इसके साथ ही मुआवजा का दावा करने की तारीख से छह प्रतिशत की दर से ब्याज देना पड़ेगा। गणेश दास और सुब्रत जाना एक मोटर बाइक पर सवार हो कर कहीं जा रहे थे। इसी दौरान एक ट्रक ने उन्हें पीछे से टक्कर मार दिया और मौके पर ही गणेश दास की मौत हो गई थी। बीमा कंपनी की तरफ से दायर अपील में कहा गया था कि गणेश दास नशे की हालत में मोटर बाइक चला रहा था। उसकी बाइक का कोई बीमा भी नहीं था। जस्टिस चौधरी ने अपने फैसले में कहा है कि नशे की हालत में बाइक चलाना मोटर व्हीकल्स एक्ट के तहत अपराध है। बाइक चला रहे व्यक्ति की दुर्घटना में मौत हो गई। उसके नशे में होने का हवाला देकर उसके आश्रितों को मुआवजे से कैसे वंचित किया जा सकता है। वह एक स्वस्थ व्यक्ति था। अगर वह जिंदा होता तो नशे में होने या नहीं होने के आरोप का जवाब देता। अब इस दलील का कोई औचित्य नहीं है।