

सन्मार्ग संवाददाता
कोलकाता : तलाक के बाद पत्नी की जीवनशैली में अपने वैवाहिक जीवन का अक्श भी दिखना चाहिए। जिस महिला ने घरेलू जिम्मेदारी निभानेेे में अपने जीवन का वर्षों खपा दिया उसका हक बनता है कि तलाक के बाद उसी जीवनशैली में बाकी वर्ष गुजार सके। गुजाराभत्ता के एक मामले में सुनवायी करते हुए हाई कोर्ट के जस्टिस विभाष रंजन दे ने यह टिप्पणी की है।
एडवोकेट अमृता पांडे ने यह जानकारी देते हुए बताया कि पति और पत्नी दोनों ने ही एक न्यायिक मजिस्ट्रेट के फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट में रिवीजन पीटिशन दायर किया था। न्यायिक मजिस्ट्रेट ने पत्नी को मिल रहे 30 हजार रुपए के मासिक भत्ते को घटा कर 20 हजार रुपए कर दिया था। जस्टिस दे ने दोनों ही मामलों में साझा फैसला सुनाते हुए कहा कि गुजाराभत्ता सिर्फ जीने का साधन भर ही नहीं है। इस पर जीवनशैली भी निर्भर करती है। जस्टिस दे ने आदेश दिया है कि पति को प्रति माह गुजाराभत्ता के मद में 25 हजार रुपए देेना पड़ेगा। इसके साथ ही प्रत्येक दो साल पर इसमें पांच फीसदी की दर से वृद्धि करनी पड़ेगी। उनका एक बेटा भी है। पत्नी की तरफ से पीटिशन में आरोप लगाया गया था कि पति ने अपनी असली आय को छुपाया है ताकि गुजाराभत्ता देने से बचा जा सके। पति की दलील थी कि सेवानिवृत्त होने के बाद उसके अपने खर्च भी बढ़ गए हैं। इसके अलावा उसकी अपनी बीमारी के इलाज का खर्च भी है। जहां तक बेटे का सवाल है तो उसकी उम्र 25 साल है इसलिए उसे गुजाराभत्ते की कोई आवश्यकता नहीं है। जस्टिस दे ने अपने फैसले में कहा है कि वैवाहिक जिम्मेदारी निभाने के मामले में मौजूदा समाज में काफी बदलाव आया है। लिहाजा कोर्ट के फैसले में इस बदलाव का अक्श भी दिखना चाहिए।