

सन्मार्ग संवाददाता
कोलकाता : करप्शन करप्शन कहने भर से करप्शन साबित नहीं हो जाता है। इसके लिए प्रमाण देना पड़ता है। अगर किसी नियम के पालन में चूक हो जाए तो इसका मतलब करप्शन नहीं होता है। इसमें यह साबित करना पड़ता है कि आर्थिक लेनदेन हुआ है। प्राइमरी के 32 हजार टीचरों की बर्खास्तगी के मामले में बोर्ड की तरफ से मंगलवार को जस्टिस तपब्रत चक्रवर्ती और जस्टिस ऋतब्रत कुमार मित्रा के डिविजन बेंच में यह दलील दी गई। बर्खास्तगी के सिंगल बेंच के आदेश के खिलाफ बोर्ड की तरफ से डिविजन बेंच में अपील दायर की गई है।
सुनवायी के दौरान जस्टिस चक्रवर्ती ने सिंगल बेंच के आदेश के पैरा 22 का हवाला देते हुए करप्शन के बाबत सवाल किया। एजी किशोर दत्त ने इसके जवाब में दलील देते हुए कहा कि इसमें यह कहीं साबित नहीं हुआ है कि किसने रिश्वत दी और किसने रिश्वत ली थी। इसका स्पष्ट हवाला दिया जाना चाहिए था। सिर्फ थोथा आरोप लगाने भर से नहीं होता है। इस मौके पर एजी ने करप्शन की व्याख्या करते हुए करप्शन और स्कैम के बीच के फर्क को भी बताया। एजी ने सिंगल बेंच के आदेश की तीखी आलोचना करते हुए कहा कि कोर्ट को प्रोसिक्यूटर की भूमिका नहीं निभानी चाहिए थी। कोर्ट को फैक्ट फाइंडिंग कमेटी की तरह काम नहीं करना चाहिए था। इस बाबत दायर पीटिशन में इस तरह की राहत की मांग नहीं की गई थी। इस पर जस्टिस चक्रवर्ती ने सवाल किया कि क्या यह पीटिशनर के लिए संभव है कि आप ने अपने चैंबर में क्या किया है या बोर्ड ने अपनी बैठक में क्या किया है इसकी जानकारी हासिल कर ले। इसके साथ ही जस्टिस चक्रवर्ती ने कहा कि यह दिखाएं कि नियुक्तियां इस बाबत रूल्स का अनुपालन करते हुए की गई थी। इसके जवाब में एजी ने कहा कि रूल्स में अतिक्रमण का अर्थ करप्शन नहीं होता है। उन्होंने कहा कि जज को निजी जानकारियां कहां से मिल गईं। इस तरह तो उन्हें विटनेस के बाक्स में बुलाना पडेगा। इस दौरान एजी ने सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का हवाला दिया। अभी उनकी दलील अधूरी रह गई है और अगली सुनवायी वैकेशन बाद होगी।