अंडमान-निकोबार के चार भू-विरासत स्थलों का भूवैज्ञानिक महत्व उजागर

अंडमान-निकोबार के चार भू-विरासत स्थलों का भूवैज्ञानिक महत्व उजागर
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सन्मार्ग संवाददाता 

श्री विजयपुरम : अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह की अनूठी भौगोलिक बनावट और प्राकृतिक विविधता को वैश्विक मानचित्र पर विशेष पहचान दिलाने की दिशा में प्रशासन द्वारा भू-पर्यटन को लेकर अहम कदम उठाया गया है। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) और अंडमान-निकोबार प्रशासन अब मिलकर चार प्रमुख भू-विरासत स्थलों की वैज्ञानिक विशेषताओं को सामने ला रहे हैं, जिनसे द्वीप समूह का भूवैज्ञानिक इतिहास और पर्यावरणीय संपदा आम जनता के सामने प्रस्तुत की जा सकेगी। इस पहल का उद्देश्य न केवल पर्यटन को एक नई पहचान देना है, बल्कि इन दुर्लभ और संवेदनशील स्थलों का संरक्षण कर भू-वैज्ञानिक ज्ञान को बढ़ावा देना भी है। इस योजना में कला एवं संस्कृति विभाग को नोडल एजेंसी के रूप में जिम्मेदारी सौंपी गई है, जो इन स्थलों की दृश्यात्मक और जानकारीपरक प्रस्तुति सुनिश्चित करेगा। भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के उप महानिदेशक डॉ. शांतनु भट्टाचार्य के नेतृत्व में एक विशेषज्ञ दल ने हाल ही में अंडमान-निकोबार का दौरा कर इन स्थलों का निरीक्षण किया। इस दौरान श्री विजयपुरम स्थित विज्ञान केंद्र में जानकारीपूर्ण साइनबोर्ड लगाए गए, जिनमें इन स्थलों का ऐतिहासिक, भौगोलिक और पर्यावरणीय महत्व संक्षेप में प्रस्तुत किया गया है। बाराटांग द्वीप में स्थित एमयूडी (कीचड़) ज्वालामुखी का वैज्ञानिक दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्व है। लगभग सौ मीटर के क्षेत्र में फैले इस ज्वालामुखी से समय-समय पर मिट्टी और गैस का विस्फोट होता है, जिससे एक अद्भुत भू-आकृति निर्मित होती है। इसके समीप स्थित चूना पत्थर की गुफाएं और बालूडेरा समुद्र तट भी आकर्षण का केंद्र हैं। वहीं, दक्षिण अंडमान के शहीद द्वीप पर स्थित प्राकृतिक मूंगा पुल, जो कम ज्वार के समय स्पष्ट रूप से दिखाई देता है, समुद्री जैव विविधता का एक जीवंत उदाहरण है। मध्य अंडमान में स्थित बैरन द्वीप भारत का एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी है, जो लावा और बेसाल्टिक चट्टानों से निर्मित है। यह निर्जन द्वीप अपनी सक्रियता के चलते वैज्ञानिक शोधकर्ताओं के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। इसके अलावा उत्तर अंडमान का नारकोंडम द्वीप, जो कभी एक सक्रिय ज्वालामुखी रहा है, अब निष्क्रिय है लेकिन अपने भीतर कई भू-रहस्यों को समेटे हुए है। यह द्वीप ‘नारकोंडम हॉर्नबिल’ जैसे संकटग्रस्त पक्षी का प्राकृतिक आवास भी है, जो इसे जैव विविधता की दृष्टि से और भी महत्वपूर्ण बनाता है। इन स्थलों की विशेष फोटोग्राफी और वीडियोग्राफी कर प्रचार-प्रसार को बल दिया जा रहा है। पर्यटकों के लिए आकर्षण बढ़ाने हेतु प्रशासन ने सूचना बोर्ड भी लगाए हैं ताकि लोग न केवल इन स्थलों को देख सकें बल्कि इनके महत्व को भी समझ सकें। प्रशासन जल्द ही भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर करेगा, जिसके अंतर्गत न केवल इन चार स्थलों का दस्तावेजीकरण और वैज्ञानिक प्रबंधन होगा, बल्कि अन्य संभावित भू-विरासत स्थलों की पहचान और संरक्षण भी किया जाएगा। यह प्रयास न केवल अंडमान-निकोबार में पर्यटन की नई संभावनाएं खोलेगा, बल्कि छात्रों, शोधार्थियों और विज्ञान में रुचि रखने वाले युवाओं को द्वीपों के भूगर्भीय इतिहास से जोड़ने का एक सशक्त माध्यम भी बनेगा।

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