

कोलकाता: भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक साहसी और अग्रणी फिल्म ‘बदनाम बस्ती’ फिर से बड़े पर्दे पर लौट रही है। 1971 में रिलीज़ हुई यह फिल्म भारत की पहली LGBTQ+ विषय पर आधारित फीचर फिल्म मानी जाती है। इसका प्रदर्शन 9 नवंबर को दोपहर 2 बजे कोलकाता अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (KIFF 2025) के तहत नज़रुल तीर्थ 2 में किया जाएगा।
इससे पहले इसकी पुनरुद्धारित प्रति इस वर्ष मेलबर्न के अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में दिखायी गयी थी। अब 31वें कोलकाता फिल्म फेस्टिवल में इसका प्रदर्शन भारतीय सिनेमा की प्रगतिशील परंपरा को सम्मान देने जैसा है। फिल्म का निर्देशन प्रेम कपूर ने किया था और इसकी कहानी प्रसिद्ध लेखक कमलेश्वर के पहले उपन्यास ‘एक सड़क सत्तावन गालियां’ से ली गयी है।
उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले पर आधारित यह कथा सरनाम सिंह नामक एक बस ड्राइवर के जीवन पर केंद्रित है, जो कभी डाकू था। वह बंसुरी नाम की महिला को एक हमले से बचाता है और उससे प्रेम करने लगता है। मगर परिस्थितियाँ उसे जेल पहुँचा देती हैं और बंसुरी से उसका बिछोह हो जाता है। जेल से रिहा होने के बाद सरनाम की मुलाकात मंदिर में काम करने वाले युवक शिवराज से होती है, जिसके साथ उसका संबंध भावनात्मक और आत्मीय स्तर पर गहराता है।
‘बदनाम बस्ती’ अपने समय से बहुत आगे की फिल्म थी। 70 के दशक में जब भारतीय समाज में समलैंगिकता एक निषिद्ध विषय थी, उस दौर में इस तरह के संवेदनशील रिश्ते को सच्चाई और सहजता से दिखाना बेहद साहसिक कदम था। फिल्म में नितिन शेट्टी, अमर कक्कड़ और नंदिता ठाकुर ने अभिनय किया है।
आज, जब भारतीय समाज विविधता और समावेशिता की दिशा में आगे बढ़ रहा है, ‘बदनाम बस्ती’ का पुनः प्रदर्शन न केवल एक सांस्कृतिक पुनर्पाठ है, बल्कि उस रचनात्मक साहस को सलाम भी है, जिसने पाँच दशक पहले ही सभी सीमाएँ तोड़ दी थीं।