आज भी सिउड़ी की सुबह जगाते हैं 'पद्मश्री' रतन कहार

90 की उम्र में भी कहार का टहल गीत गूंजता है शहर में
रतन कहार
रतन कहार
Published on

कोलकाता: आधुनिक जीवन की तेज रफ्तार और शोर-शराबे में कई पुरानी सांस्कृतिक धरोहरें धूमिल हो चुकी हैं, लेकिन बीरभूम के सिउड़ी शहर आज भी सुबह जगता है एक बुज़ुर्ग लोक कलाकार के सुरों से। लगभग 90 वर्ष की आयु में भी पद्मश्री से सम्मानित रतन कहार हर सुबह अपनी मधुर आवाज और खंजनी की टुनटुनाहट से सिउड़ी की शांति को और मधुर और सुरमय बना देते हैं। पूरे सर्दी महीने में शहर की गलियों में गूंजता है उनका प्रसिद्ध ‘टहल गीत’, जिसे स्थानीय लोग ‘भोराई’ नाम से भी जानते हैं।

धोती, पगड़ी, तिलक और कंधे पर उत्तरीय—यह सरल लेकिन सांस्कृतिक परिधान पहनकर रतन कहार आज भी सुबह होने से पहले निकल पड़ते हैं। हाथ में खंजनी और होठों पर कृष्णनाम, यह दृश्य दशकों से सिउड़ी के लोगों की भावनाओं का हिस्सा बना हुआ है। स्थानीय निवासियों का कहना है, उनके टहल गीत के बिना बीरभूम की सुबह अधूरी है। उम्र बढ़ी है पर रतन कहार की सादगी, उनकी निष्ठा आज भी वही है।

अपने लंबे कला-जीवन में उन्होंने पूर्वीय क्षेत्रीय सांस्कृतिक केंद्र से लेकर राज्य सूचना–संस्कृति विभाग तक कई संस्थाओं का सम्मान प्राप्त किया है। कुछ वर्ष पहले राष्ट्र का प्रतिष्ठित सम्मान पद्मश्री भी उन्हें मिला। रतन कहार का नाम सबसे अधिक चर्चा में आया उनके लिखे प्रसिद्ध गीत ‘बड़ोलोकेर बिटीलो, लंबा लंबा चुल’ के कारण। 1972 में लिखा यह गीत पहली बार स्वरबद्ध किया था गायिका सपना चौधरी ने।

हाल में बॉलीवुड रैपर बादशाह ने अपनी रचना ‘लाल गेंदा फूल’ में इसकी एक पंक्ति के उपयोग से नया विवाद छेड़ दिया, जिसके बाद रतन कहार फिर राष्ट्रीय चर्चा में आये। हालाँकि इस बहस से कोसों दूर खड़े होकर कहार कहते हैं, महाप्रभु चैतन्य ने कलियुग में हरिनाम से लोगों को जागृत किया था। उसी परंपरा को जीवित रखने के लिए मैं टहल करता हूं।

1973 से शुरू हुई उनकी यह ‘प्रभात फेरी’ अब उनकी दिनचर्या बन चुकी है। शरीर पहले जैसा साथ नहीं देता, फिर भी वे कहते हैं, रफ्तार कम हुई है, पर रोशनी मिलती है तो निकल पड़ता हूं। जब तक संभव होगा, टहल गीत चलता रहेगा।

संबंधित समाचार

No stories found.

कोलकाता सिटी

No stories found.

खेल

No stories found.
logo
Sanmarg Hindi daily
sanmarg.in