कुमारी पूजा में भक्त होंगे देवी के अनोखे स्वरूप के गवाह
कोलकाता: आज महाअष्टमी के शुभ अवसर पर सदियों पुरानी कुमारी पूजा का आयोजन हो रहा है। इस पूजा की शुरुआत स्वामी विवेकानंद ने की थी और आज भी वही परंपरा जारी है। देवी की मूर्ति की पूजा के साथ-साथ एक कन्या में भी माँ के रूप का दर्शन किया जाता है। हर साल की तरह इस बार भी बेलूर मठ में उसी प्रथा के अनुसार कुमारी पूजा आयोजित की गई है।
क्या है इतिहास?
कुमारी पूजा की शुरुआत कब हुई, यह निश्चित रूप से कहना कठिन है। लेकिन शास्त्रों के अनुसार, बाणासुर नामक असुर के अत्याचार से जब देवताओं को स्वर्ग से हाथ धोने की नौबत आ गई, तब उन्होंने महाकाली की शरण ली। देवताओं की प्रार्थना पर देवी ने कुमारी रूप में जन्म लेकर बाणासुर का वध किया, तभी से पूजा शुरू हुई। महाभारत में अर्जुन द्वारा कुमारी पूजा का उल्लेख मिलता है। पुराण में भी इसका उल्लेख है, जहां कहा गया है कि देवी देवताओं के स्तुति पर कुमारी रूप में ही प्रकट हुई थीं।
स्वामी विवेकानन्द ने की पूजा का प्रारम्भ
नारीशक्ति के महिमा प्रचार के लिए स्वामी विवेकानंद ने 1901 में इसी दिन रामकृष्ण मिशन के बेलूर मठ में देवी दुर्गा के साथ-साथ कुमारी पूजा की शुरुआत की थी। हालांकि, इसके तीन वर्ष पहले 1898 में स्वामी विवेकानंद ने पहली बार कुमारी पूजा कश्मीर में की थी, जब एक मुस्लिम शिकारा चलाने वाले की बेटी को देखकर उन्हें उसमें देवी का रूप प्रतीत हुआ था। वही परंपरा अभी भी जीवित है।
क्या है चयन प्रक्रिया?
शास्त्रीय नियमों के अनुसार बेलूर मठ सहित जहां कहीं भी कुमारी या कन्या पूजा होती है, वहां आमतौर पर 4 से 6 साल की हिंदू ब्राह्मण परिवार की कन्या को ही चुना जाता है। शास्त्रों में किसी भी ऐसी कन्या, जो रजस्वला न हो, को पूजा के योग्य माना गया है। हालांकि, सामान्यतः ब्राह्मण कन्याओं के अलावा कुमारी पूजा बहुत कम होती है।
बेलूर मठ ने कुमारी पूजा में कायम की मिसाल
बेलूर मठ में इस वर्ष दुर्गा पूजा का 125वां वर्ष है। परंपरा के अनुसार विशुद्ध पंचांग के अनुसार ही पूजा की शुरुआत हुई है। इस बार पंचमी के दिन मठ में बोधन हुआ। मठ के संन्यासी और सेवक विधिवत पूजा की सभी रस्में निभाते हैं। हर एक चरण पुण्य और नियमों से भरा होता है। बेलूर मठ में इस बार भी धूमधाम से कुमारी पूजा का आयोजन किया जाएगा।

