Durga Puja 2024 : नवरात्र के प्रथम दिन पूजी जाती हैं शैलपुत्री | Sanmarg

Durga Puja 2024 : नवरात्र के प्रथम दिन पूजी जाती हैं शैलपुत्री

कलश स्थापन विधि

चौकी लगाने की सामाग्री

* मिट्टी का गोलाकार पात्र ।

* जौ बोने के लिए शुद्ध साफ की हुई मिट्टी जिसमें कंकर न हों।

* मिट्टी का कलश।

* रोली, मौली, सुपारी, कपूर, धूप।

* कलश में रखने के लिए सिक्का।

* आम के पत्ते।

*फूल माला, दीपक, मिठाई, फल।

ऐसे करें कलश स्थापना

* कलश पर सबसे पहले स्वास्तिक बनायें।

* कलश पर मौली बांधे।

* कलश में जल भर लें।

* कलश में साबुत सुपारी, फूल, इत्र, पंचरत्न, और सिक्का डालें।

* कलश में चावल के दाने भी डालें।

नवरात्र में अखंड ज्योत का महत्व

अखंड ज्योत को जलाने से घर में हमेशा मां दुर्गा की कृपा बनी रहता है। जरूरी नहीं कि हर घर में अखंड ज्योत जले। दरअसल अखंड ज्योत के कुछ नियम होते हैं जिन्हें नवरात्र में पालन करना होता है। हिन्दू परम्परा है कि जिन घरों में अखंड ज्योत जलाते हैं उन्हें जमीन पर सोना होता है।

मां शैलपुत्री

वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम् ।

वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ।।

माँ दुर्गा अपने प्रथम स्वरूप में शैलपुत्री के रूप में जानी जाती हैं। पर्वतराज हिमालय के घर जन्म लेने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा गया। भगवती का वाहन बैल है। इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प है। अपने पूर्व जन्म में ये सती नाम से प्रजापति दक्ष की पुत्री थी । इनका विवाह भगवान शंकर से हुआ था। पूर्वजन्म की भांति इस जन्म में भी यह भगवान शंकर की अर्द्धांगिनी बनीं। नव दुर्गाओं में शैलपुत्री दुर्गा का महत्त्व और शक्तियाँ अनन्त हैं। नवरात्र पूजन में प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा व उपासना की जाती है।

ध्यान

वंदे वांच्छितलाभायाचंद्रार्धकृतशेखराम्।

वृषारूढांशूलधरांशैलपुत्री यशस्विनीम्॥

पूर्णेंदुनिभांगौरी मूलाधार स्थितांप्रथम दुर्गा त्रिनेत्रा।

पटांबरपरिधानांरत्नकिरीटांनानालंकारभूषिता॥

प्रफुल्ल वदनांपल्लवाधरांकांतकपोलांतुंग कुचाम्।

कमनीयांलावण्यांस्मेरमुखीक्षीणमध्यांनितंबनीम्॥

स्तोत्र

प्रथम दुर्गा त्वहिभवसागर तारणीम्।

धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्रीप्रणमाम्यहम्॥

त्रिलोकजननींत्वंहिपरमानंद प्रदीयनाम्।

सौभाग्यारोग्यदायनी शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥

चराचरेश्वरी त्वंहि महामोह विनाशिन।

भुक्ति, मुक्ति दायनी,शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥

चराचरेश्वरी त्वंहिमहामोह विनाशिन।

भुक्ति, मुक्ति दायिनी शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥

कवच

ओमकार: में शिर: पातु मूलाधार निवासिनी।

हींकार,पातु ललाटे बीजरूपा महेश्वरी॥

श्रीकार:पातुवदने लज्जारूपा महेश्वरी।

हूंकार:पातु हृदये तारिणी शक्ति स्वघृत॥

फट्कार:पातु सर्वांगेसर्व सिद्धि फलप्रदा।

मां शैलपुत्री की कथा

एक बार प्रजापति दक्ष ने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया। इसमें उन्होंने सारे देवताओं को अपना-अपना यज्ञ-भाग प्राप्त करने के लिए निमंत्रित किया किन्तु शंकरजी को उन्होंने इस यज्ञ में निमंत्रित नहीं किया। सती ने जब सुना कि उनके पिता एक अत्यंत विशाल यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं, तब वहाँ जाने के लिए उनका मन विकल हो उठा।

अपनी यह इच्छा उन्होंने शंकरजी को बतायी। सारी बातों पर विचार करने के बाद उन्होंने कहा- ‘प्रजापति दक्ष किसी कारणवश हम से रुष्ट हैं। अपने यज्ञ में उन्होंने सारे देवताओं को निमंत्रित किया है। उनके यज्ञ-भाग भी उन्हें समर्पित किए हैं, किन्तु हमें जान-बूझकर नहीं बुलाया है। कोई सूचना तक नहीं भेजी है। ऐसी स्थिति में तुम्हारा वहाँ जाना किसी प्रकार भी श्रेयस्कर नहीं होगा।’

शंकरजी के इस उपदेश से सती का प्रबोध नहीं हुआ। पिता का यज्ञ देखने, वहाँ जाकर माता और बहनों से मिलने की उनकी व्यग्रता किसी प्रकार भी कम न हो सकी। उनका प्रबल आग्रह देखकर भगवान शंकरजी ने उन्हें वहाँ जाने की अनुमति दे दी।

सती ने पिता के घर पहुँचकर देखा कि कोई भी उनसे आदर और प्रेम के साथ बातचीत नहीं कर रहा है। सारे लोग मुँह फेरे हुए हैं। केवल उनकी माता ने स्नेह से उन्हें गले लगाया। बहनों की बातों में व्यंग्य और उपहास के भाव भरे हुए थे।

परिजनों के इस व्यवहार से उनके मन को बहुत क्लेश पहुँचा। उन्होंने यह भी देखा कि वहाँ चतुर्दिक भगवान शंकरजी के प्रति तिरस्कार का भाव भरा हुआ है। दक्ष ने उनके प्रति कुछ अपमानजनक वचन भी कहे। यह सब देखकर सती का हृदय क्षोभ, ग्लानि और क्रोध से संतप्त हो उठा। उन्होंने सोचा भगवान शंकरजी की बात न मान, यहाँ आकर मैंने बहुत बड़ी गलती की है।

वे अपने पति भगवान शंकर के इस अपमान को सह न सकीं। उन्होंने अपने उस रूप को तत्क्षण वहीं योगाग्नि द्वारा जलाकर भस्म कर दिया। वज्रपात के समान इस दारुण-दुःखद घटना को सुनकर शंकरजी ने क्रुद्ध हो अपने गणों को भेज कर दक्ष के उस यज्ञ का पूर्णतः विध्वंस करा दिया।

सती ने योगाग्नि द्वारा अपने शरीर को भस्म कर अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। इस बार वे ‘शैलपुत्री’ नाम से विख्यात हुर्ईं। पार्वती, हैमवती भी उन्हीं के नाम हैं। उपनिषद् की एक कथा के अनुसार इन्हीं ने हैमवती स्वरूप से देवताओं का गर्व-भंजन किया था।

माँ दुर्गा के स्वरूप शैलपुत्री की पूजा विधि

मां शैलपुत्री की तस्वीर स्थापित करें और उसके नीचें लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछायें। इसके ऊपर केशर से शं लिखें और तत्पश्चात् हाथ में लाल पुष्प लेकर शैलपुत्री देवी का ध्यान करें। मंत्र इस प्रकार है-

ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ओम् शैलपुत्री देव्यै नम:।

मंत्र के साथ ही हाथ के पुष्प मां के तस्वीर के ऊपर छोड दें। इसके बाद भोग प्रसाद अर्पित करें तथा मां शैलपुत्री के मंत्र का जाप करें। यह जप कम से कम 108 होना चाहिए।

मंत्र -ओम् शं शैलपुत्री देव्यै: नम:। मंत्र संख्या पूर्ण होने के बाद मां के चरणों में अपनी मनोकामना को व्यक्त करके मां से प्रार्थना करें तथा श्रद्धा से आरती कीर्तन करें।

Visited 57 times, 5 visit(s) today
शेयर करे
1
0

Leave a Reply

ऊपर