Maoist Hidma

12 दिन पहले ही मारा गया खूंखार नक्सली हिडमा

‘केंद्रीय गृह मंत्री ने देश से माओवाद की समस्या के उन्मूलन के लिए 31 मार्च 2026 की समयसीमा तय की है। हिडमा के रूप में सुरक्षाबलों को मिली है बड़ी कामयाबी
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रायपुर: छत्तीसगढ़ में पिछले दो दशकों में हुए बड़े नक्सली हमलों का मास्टरमाइंड, प्रतिबंधित माओवादी संगठन का सबसे खूंखार कमांडर माडवी हिडमा मंगलवार को पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश में एक मुठभेड़ में मारा गया। पुलिस अधिकारियों ने यह जानकारी दी।

'ताबूत में आखिरी कील'

पुलिस अधिकारियों ने बताया कि ऐसे समय में हिडमा का मारा जाना यहां माओवादी आंतक के 'ताबूत में आखिरी कील' के रूप में देखा जा रहा है जब बस्तर क्षेत्र में माओवादी गतिविधियां कम होने लगी हैं। बस्तर के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि हिडमा और उसकी पत्नी राजे, आज सुबह पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश के अल्लूरी सीतारामराजू जिले के मरेदुमिल्ली के जंगल में आंध्र प्रदेश के सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में मारे गए छह नक्सलियों में शामिल हैं।

अमित शाह ने दिया था आदेश

गृह मंत्री के आदेश से अवगत एक सूत्र ने बताया, ‘केंद्रीय गृह मंत्री ने देश से माओवाद की समस्या के उन्मूलन के लिए 31 मार्च 2026 की समयसीमा तय की है। एक सुरक्षा समीक्षा बैठक में शाह ने नक्सल विरोधी अभियानों में लगे शीर्ष सुरक्षा अधिकारियों को 30 नवंबर से पहले हिडमा को खत्म करने को कहा था और इस समयसीमा से 12 दिन पहले ही उसे मार गिराया गया।’

गृहमंत्री की तय समयसीमा में माओवाद खत्म होगा

सूत्रों ने यह भी कहा कि जिस तरह से नक्सलियों के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है, उससे गृह मंत्री द्वारा निर्धारित अगले साल मार्च की समयसीमा से पहले ही वामपंथी उग्रवाद खत्म हो जाने की संभावना है। सुकमा में 1981 में जन्मा हिडमा पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (PLGA) की एक बटालियन का कमांडर और माओवादी केंद्रीय समिति का सदस्य था।

ऐसा माना जाता है कि वह बस्तर से इस प्रतिबंधित संगठन का हिस्सा बनने वाला एकमात्र आदिवासी सदस्य था। 26 से ज़्यादा बड़े नक्सली हमलों में उसकी सीधी संलिप्तता पाई गई थी जिससे वह भारत के सबसे खूंखार नक्सलियों में से एक बन गया था।

कौन था हिडमा ?

सुकमा जिले के पूवर्ती गांव के मूल निवासी हिडमा की उम्र और रूप-रंग सुरक्षा एजेंसियों के बीच लंबे समय तक अटकलों का विषय रहे हैं। यह सिलसिला इस वर्ष की शुरुआत में उसकी तस्वीर सामने आने तक जारी रहा। हिडमा ने कई वर्षों तक माओवादियों की पीपुल्स लिबरेशन गुरिल्ला आर्मी (PLGA) बटालियन नंबर एक का नेतृत्व किया। यह बटालियन दंडकारण्य में माओवादी संगठन का सबसे मजबूत सैन्य दस्ता है।

दंडकारण्य छत्तीसगढ़ के बस्तर के अलावा आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, तेलंगाना और महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में फैला हुआ है। पुलिस अधिकारियों के मुताबिक, हिड़मा को पिछले वर्ष माओवादियों की केंद्रीय समिति में पदोन्नत किया गया था। वह दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी (DKSJDC) का भी सदस्य रहा है, जिसने दक्षिण बस्तर में कई घातक हमलों को अंजाम दिया है।

हिडमा के संबंध में मिली जानकारी के अनुसार, वह 1990 के दशक के अंत में एक जमीनी स्तर के कार्यकर्ता के रूप में प्रतिबंधित संगठन में शामिल हुआ और 2010 में हुए ताड़मेटला हमले के बाद पहली बार सुरक्षा एजेंसियों की नजर में आया। इस हमले में 76 जवान मारे गए थे। उसने तब हमले को अंजाम देने में एक अन्य शीर्ष माओवादी कमांडर पापा राव की सहायता की थी।

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