

कोलकाता: एक साधारण-सा मोहल्ले का इमली का पेड़ अब विश्व पटल पर अपनी पहचान बनाने जा रहा है। इस पेड़ पर बनी डॉक्यूमेंट्री 'फ्रेंड्स ऑफ जिलीपिबाला' को अगले महीने होने वाले कोलकाता अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (किफ) में नेशनल कॉम्पिटिशन ऑन डॉक्यूमेंट्री श्रेणी में विश्व प्रीमियर के लिए चुना गया है।
यह विशाल इमली का पेड़ न सिर्फ इलाके को हरियाली प्रदान करता है, बल्कि इसका ऐतिहासिक महत्व भी है। कहा जाता है कि लगभग 70 साल पहले स्वतंत्रता सेनानी पारुल मुखर्जी ने इसे लगाया था। विभाजन के बाद वे दक्षिण कोलकाता के शरणार्थी कॉलोनी, अब जिसे विद्यासागर कॉलोनी कहा जाता है, में बस गई थीं।
1935 में महज 20 वर्ष की उम्र में उन्हें टीटागढ़ षड्यंत्र केस में दोषी ठहराया गया था और चार वर्ष की सजा हुई थी। हाल ही में जब बिल्डरों ने पारुल मुखर्जी के पुराने घर को तोड़ने के लिए कब्जा लिया, तब यह पेड़ भी खतरे में आ गया लेकिन फिल्म की निर्देशक और पड़ोसी देबोलिना मजुमदार ने पिछले साल जुलाई में इस पेड़ को बचाने के लिए सांस्कृतिक आंदोलन शुरू किया।
जन दबाव के बाद संपत्ति की सीमा दीवार को इस तरह बदला गया कि पेड़ कोलकाता नगर निगम की भूमि पर सुरक्षित खड़ा रह सका। देबोलिना ने बताया, यह पेड़ दशकों से पक्षियों और जानवरों का घर रहा है। मैं पिछले 12 वर्षों से इन जीवों को कैमरे में कैद कर रही हूँ। यह फिल्म शहरी विकास के नाम पर प्रकृति और जीव-जंतुओं की असुरक्षा को दर्शाती है।
उन्होंने शहरी हरियाली और पारिस्थितिक संतुलन के महत्व को उजागर करने के लिए कई चर्चा, संगीत कार्यक्रम और ‘टैमरिंड ट्यून्स’ नाम से यूट्यूब चैनल भी शुरू किया। सभी पहलू को जोड़ती 30 मिनट की यह डॉक्यूमेंट्री एक छोटे बच्चे की दृष्टि से पेड़ के जीवंत संसार को दिखाती है। यह डॉक्यूमेंट्री न सिर्फ एक पेड़ को बचाने की कहानी है, बल्कि प्रकृति और स्मृतियों को बचाने की प्रेरक गाथा भी है।