कोलकाता: गर्दन का दर्द एक ऐसी सामान्य समस्या है, जिसका सामना हर व्यक्ति को किसी न किसी रूप में करना ही पड़ता है। कई लोग गर्दन दर्द की अनदेखी कर लापरवाही अथवा नासमझी के कारण जीवनभर की आफत मोल ले लेते हैं। कई लोग इलाज कराने के लिए नीम-हकीमों अथवा नाइयों के पास चले जाते हैं और गर्दन दर्द की समस्या को और भी बढ़ा डालते हैं।
कुछ कारण
मामूली चोट या झटके के कारण गर्दन में फ्रैक्चर या डिस्क खिसकने पर दर्द हो सकता है। ऊंचे तकिए पर सिर रखने के कारण भी डिस्क खिसक जाता है। गर्दन की डिस्क की समस्या किसी भी व्यक्ति को हो सकती है। कई बार इसके कोई तकलीफदेह लक्षण प्रकट नहीं होते। डिस्क के घिस जाने या क्षतिग्रस्त हो जाने पर स्नायु की कार्यप्रणाली में भी बाधा पड़ती है। उदाहरण के तौर पर डिस्क के बाहरी हिस्से के घिसने के कारण भीतर के मुलायम पदार्थ बाहर आ सकते हैं। इसे हर्नियेट डिस्क कहा जाता है। इससे वहां की स्नायु पर दबाव पड़ सकता है। इसके अलावा आस-पास की दो वर्टिब्रा आपस में रगड़ खा सकती है, जिससे स्नायु को नुकसान पहुंच सकता है। कई बार डिस्क से गुजरने वाले स्पाइनल कार्ड पर भी अधिक दबाव पाने के कारण गर्दन दर्द, सुन्नता, कमजोरी एवं गर्दन को घुमाने में तकलीफ हो सकती है। फ्रैक्चर, ट्यूमर एवं संक्रमण के कारण भी गर्दन की समस्याएं हो सकती हैं। तनाव एवं उच्च रक्तचाप भी गर्दन दर्द का कारण बन सकते हैं। गर्दन की एक अत्यन्त तकलीफदेह अवस्था स्पाइनल स्टेनोसिस होती है। यह तब उत्पन्न होती है, जब गर्दन के जोड़ों में हो जाती है और इन जोड़ों के आसपास की हड्डी बढने लगती है। हड्डी बढ़ने से स्पाइनल नर्व पर दबाव पड़ता है, जिससे गर्दन एवं बाहों में दर्द और सुन्नपन महसूस हो सकता है तथा चलने-फिरने में तकलीफ हो सकती है।
शुरूआत अवस्था में आराम
गर्दन दर्द की तकलीफ की आरम्भिक अवस्था में गर्दन के व्यायाम, नॉन स्टेरॉयडल एंटी इन्फ्लामेट्री ड्रग्स (एनएसएआईडी) सिंकाई और कॉलर की मदद से राहत मिलती है। सोते वक्त गर्दन एवं सिर के नीचे पतला तकिया लेने से भी आराम मिलता है। गर्दन दर्द की अवस्था में कई बार गर्दन की टैऊक्शन की भी सलाह दी जाती है लेकिन किसी अच्छे चिकित्सक से ही टैऊक्शन लगवानी चाहिए और व्यायाम करना चाहिए।
अत्यधिक दर्द होने पर क्या करें?
बहुत अधिक दर्द होने पर स्पाइनल कार्ड के बाहर स्टेरॉयड अथवा एनेस्थेटिक दवाओं का इंजेक्शन भी लिया जा सकता है। इन उपायों से फायदा न होने पर सर्जरी की जरूरत पड़ सकती है। मौजूदा समय में माइक्रोडिस्केटोमी जैसी माइक्रोसर्जरी की मदद से डिस्क निकालना आसान हो गया है। कई मरीजों को माइक्रोडिस्केटोमी के अलावा अस्थि प्रत्यारोपण की तथा कई मरीजों को अस्थि प्रत्यारोपण के साथ ही प्लेटिंग की भी जरूरत पड़ती है। वर्तमान समय में कृत्रिम डिस्क का भी विकास हो चुका है, जिसे निकाले गये डिस्क के स्थान पर लगाया जा सकता है। ऐसा करने पर गर्दन की गतिशीलता बरकरार रहती है। स्पाइनल स्टेनोसिस का उपचार अधिक कठिन होता है। इसके लिए अधिक कठिन सर्जरी की आवश्यकता होती है।
उपचार के दौरान क्याकिया जाता है?
स्पाइनल स्टेनोसिस के उपचार के लिए स्पाइनल स्नायु एवं स्पाइनल कार्ड को सामने या पीछे से डिकंप्रेस करना पड़ता है लेकिन ज्यादा हड्डी को हटाने से सर्वाइकल स्पाइन अस्थिर हो जाता है। ऐसे में बची हुई हड्डी को हड्डी प्लेट या धातु के केज के साथ जोड़ऩआ आवश्यक हो जाता है। सर्जरी से नब्बे प्रतिशत से अधिक रोगियों को दर्द से पूरी तरह से राहत मिल जाती है। सर्जरी के बाद रोगी को एक सप्ताह तक अस्पताल में रहना पड़ता है। गर्दन का दर्द शुरू होते ही उसकी चिकित्सा अच्छे चिकित्सक से करवानी चाहिए ताकि सर्जरी की नौबत न आने पाए।