निधि, सन्मार्ग संवाददाता
नवद्वीप: पश्चिम बंगाल के नदिया जिले सहित पूरे क्षेत्र में पिछले कुछ दिनों से ठंड का प्रकोप बढ़ गया है। शीत लहर के कारण आम जनजीवन अस्त-व्यस्त है और लोग अलाव का सहारा ले रहे हैं। लेकिन चैतन्य महाप्रभु की इस पावन धरती 'नवद्वीप' में भक्तों की श्रद्धा का एक अलग ही रूप देखने को मिल रहा है। यहाँ के भक्त और सेवायत मानते हैं कि जिस तरह हाड़ कपाने वाली इस ठंड में हमें कष्ट हो रहा है, ठीक उसी तरह उनके आराध्य देव भी कष्ट पा रहे होंगे। इसी मानवीय भावना के साथ मंदिरों में भगवान की 'आत्मवत् सेवा' (स्वयं के समान सेवा) की जा रही है।
नवद्वीप के लगभग सभी प्रमुख मंदिरों जैसे— श्री चैतन्य जन्मस्थान मंदिर, धामेश्वर गौरांग महाप्रभु मंदिर, राधामदनमोहन मंदिर और बलदेव जी मंदिर में विग्रहों को शीतवस्त्र धारण कराए गए हैं। भगवान को ऊनी टोपी, स्वेटर, शॉल, मफलर, दस्ताने और मोजे पहनाए गए हैं। रात के समय कड़ाके की ठंड से बचाने के लिए उन्हें गर्म कंबलों और 'बालापोष' (विशेष रजाई) में लपेटा जा रहा है। यहाँ तक कि कई मंदिरों के गर्भगृह में भगवान को गर्माहट देने के लिए रूम हीटर और अंगीठी (कोयले का चूल्हा) का भी उपयोग किया जा रहा है।
ठंड के मौसम में केवल पहनावा ही नहीं, बल्कि भगवान के 'भोग' (भोजन) में भी बदलाव किया गया है। दोपहर के भोजन में ताजी शीतकालीन सब्जियां और विभिन्न प्रकार के 'पीठे-पुली' (पारंपरिक मिठाइयां) अर्पित की जा रही हैं। सुबह के नाश्ते में गरमा-गरम खिचड़ी, मटर कचौड़ी और तले हुए व्यंजन परोसे जा रहे हैं। भगवान के अभिषेक के लिए अब ठंडे जल के स्थान पर गुनगुने गंगाजल का उपयोग किया जा रहा है।
धामेश्वर गौरांग महाप्रभु मंदिर: यहाँ के सेवायत सुदिन गोस्वामी ने बताया कि प्रभु को ठंड से बचाने के लिए राजस्थान के जयपुर से एक विशेष 'अत्तर' (इत्र) मंगवाया गया है। यह इत्र शरीर को प्राकृतिक रूप से गर्म रखने में मदद करता है।
राधामदनमोहन मंदिर: सेवायत नित्यगोपाल गोस्वामी के अनुसार, पौष के महीने में ठाकुर जी के सामने कोयले की अंगीठी जलाई जाती है और उन्हें गरमा-गरम लूची और पीठे का भोग लगाया जाता है।
बलदेव जी मंदिर: नवद्वीप गौड़ीय वैष्णव समाज के महासचिव किशोर कृष्ण गोस्वामी का कहना है कि वैष्णव धर्म में सेवा का अर्थ 'आत्मवत्' है। हालाँकि भगवान प्रकृति से परे हैं, लेकिन भक्त की अनुभूति यही होती है कि उनके प्रभु को भी ठंड लग रही है।
नवद्वीप की यह परंपरा इस बात का प्रमाण है कि यहाँ भक्त और भगवान के बीच का रिश्ता केवल औपचारिक पूजा-पाठ का नहीं, बल्कि एक परिवार के सदस्य जैसा आत्मीय और जीवंत है।