सन्मार्ग संवाददाता
श्री विजयपुरम : प्रसिद्ध वृक्ष योद्धा और वृक्ष प्रेमी ‘वनजीवी’ रामैया, जिनका पिछले महीने निधन हो गया, उनका दृढ़ विश्वास था कि पेड़ हमारे जीवन के लिए महत्वपूर्ण हैं। पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित इस व्यक्ति ने तेलंगाना में 1 करोड़ से अधिक पौधे लगाए, जिससे हम प्रकृति के साथ एकता में रह सकें, लेकिन कांचा गाचीबोवली के क्षेत्र को लेकर तेलंगाना राज्य सरकार और हैदराबाद विश्वविद्यालय के बीच मौजूदा विवाद ने रामैया को निराश किया होगा। जबकि विश्वविद्यालय चाहता है कि यह भूमि एक हरे-भरे वन क्षेत्र के रूप में हो, 700 प्रकार की वनस्पतियों, 200 प्रकार के पक्षियों और 10-20 विभिन्न स्तनधारियों के लिए जलाशय के रूप में प्रकृति के उपहार के रूप में संरक्षित हो। राज्य सरकार चाहती है कि यह क्षेत्र प्रौद्योगिकी पार्कों और संबंधित उद्देश्यों के लिए हो। ‘लड़ाई’ सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गई है और हम इसके फैसले का इंतजार कर रहे हैं। दुर्भाग्य से भारत भर के कई अन्य राज्य भी इसी तरह की स्थिति का सामना कर रहे हैं, जहां भूमि का उपयोग हाई-टेक शहरों, फार्मास्युटिकल ज़ोन, राजमार्गों, तेज ट्रेनों और हवाई अड्डों के लिए किया जा रहा है। जबकि ये सभी चीजें जनहित के लिए जरूरी हैं, लेकिन सवाल यह है कि क्या ये हरियाली, फूलदार पौधे और इन पर निर्भर रहने वाले आदिवासी लोगों को खोने की कीमत पर होनी चाहिए? क्या यह वनजीवी रामैया के विचारों के साथ विश्वासघात नहीं होगा?