इस बीमारी के मरीजों के लिए हुई ‘इच्छामृत्यु’ की मांग

इच्छामृत्यु पर सुप्रीम कोर्ट करेगा विचार
इस बीमारी के मरीजों के लिए हुई ‘इच्छामृत्यु’ की मांग
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नई दिल्ली - सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को रेबीज से पीड़ित लोगों के लिए 'निष्क्रिय इच्छामृत्यु' (Passive Euthanasia) के अधिकार की मांग वाली जनहित याचिका पर सुनवाई की। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन की पीठ ने एनजीओ ऑल क्रिएचर्स ग्रेट एंड स्मॉल की याचिका पर यह सुनवाई की। इस सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह अगले दो सप्ताह में इस याचिका पर विचार करेगा।

एनजीओ 'All Creatures Great and Small' ने दाखिल की थी याचिका

एनजीओ ऑल क्रिएचर्स ग्रेट एंड स्मॉल ने एक याचिका दायर की है, जिसमें उसने जुलाई 2019 में दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा दिए गए एक फैसले को चुनौती दी है। दिल्ली हाईकोर्ट ने रेबीज को एक असाधारण बीमारी मानने से मना कर दिया था। 2019 में दायर की गई इस याचिका के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2020 में केंद्र सरकार और अन्य संबंधित पक्षों को नोटिस भेजा था।

SC ने 2020 में जारी किया था नोटिस

सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2020 में केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था और स्वास्थ्य और पर्यावरण मंत्रालयों से 2019 में दायर याचिका पर जवाब मांगा था। इस याचिका में, एनजीओ ने यह मांग की थी कि रेबीज से पीड़ित लोगों के लिए एक प्रक्रिया तय की जाए, जिससे उन्हें या उनके परिवार वालों को 'निष्क्रिय इच्छामृत्यु' के लिए डॉक्टर की मदद लेने का विकल्प मिल सके।

हालांकि, सोमवार को याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत को बताया कि केंद्र ने 2018 में दिल्ली हाईकोर्ट में इस मामले पर जवाबी हलफनामा दायर किया था। इसके बाद अदालत ने कहा, "हम इस मामले की सुनवाई दो सप्ताह बाद किसी ऐसे दिन करेंगे, जब कोई अन्य जरूरी मामला न हो।"

9 मार्च 2018 को, सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्यीय बेंच ने कहा था कि जीवन के अधिकार में मरने का अधिकार भी शामिल है। अदालत ने 'लिविंग विल' बनाने की अनुमति दी, जिससे 'निष्क्रिय इच्छामृत्यु' को कानूनी मान्यता मिल गई। इसके तहत, जो लोग गंभीर रूप से बीमार हैं या स्थायी रूप से निष्क्रिय अवस्था में हैं, उन्हें इलाज या जीवन रक्षक प्रणाली (जैसे वेंटिलेटर) से हटाकर सम्मानजनक तरीके से मृत्यु का अवसर दिया जा सकता है।

बीमारी की मृत्युदर 100 फीसदी

एनजीओ की तरफ से वरिष्ठ वकील सोनिया माथुर और वकील नूर रामपाल ने मामले में दलील दी। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से अपील की कि वह अपने पिछले फैसले में रेबीज के मरीजों के लिए एक विशेष अपवाद बनाए। याचिका में कहा गया कि रेबीज, जिसकी मृत्युदर 100 प्रतिशत है, अन्य बीमारियों से कहीं अधिक दर्दनाक और कष्टदायक होती है।

याचिका में यह भी बताया गया कि “रेबीज के लक्षण असाधारण स्थिति बनाते हैं, जहां मरीजों को बिस्तर से बांधकर रखा जाता है, और उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता, आवाजाही, गरिमा और अखंडता कम होती है।”

अदालत से यह भी अनुरोध किया गया कि वह बीमारी के असाधारण और हिंसक लक्षणों और इलाज की कमी को ध्यान में रखते हुए रेबीज को एक अलग श्रेणी में रखें।

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