सफलता का मतलब 'कुछ पल तो अब हमें जीने दो' : शांतनु मैत्रा

राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता ने साझा किये संगीत और जीवन के अनुभव
 शांतनु मैत्रा और अरिंदम शील
शांतनु मैत्रा और अरिंदम शील
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कोलकाता: 31वें कोलकाता अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (KIFF 2025) के समापन के दिन उस समय दर्शक और संगीतप्रेमी मंत्रमुग्ध हो उठे, जब प्रसिद्ध संगीत निर्देशक शांतनु मैत्रा ने मंच पर अपने अनुभव और जीवन की अनकही कहानियाँ साझा कीं। निर्देशक अरिंदम शील के साथ बातचीत में उन्होंने अपने संगीत जीवन के उतार-चढ़ाव, संघर्ष और सफलता के अनुभवों को खुलकर बताया।

अपने शुरुआती दिनों का जिक्र करते हुए शांतनु ने कहा, मैं एक साधारण इंसान हूँ, जिसे घर का खाना और फुटबॉल पसंद है। मेरा कोई औपचारिक संगीत प्रशिक्षण नहीं था। अगर मैं संगीतकार नहीं होता तो शायद पर्वतारोही बन जाता। उन्होंने बताया कि उनके संगीत करियर की शुरुआत विज्ञापन जिंगल बनाने से हुई और फिर फिल्मों में ‘मुन्नाभाई एमबीबीएस’, ‘थ्री इडियट्स’, ‘अंतहीन’ जैसी बेहद सफल फिल्मों के लिए उन्होंने संगीत दिया।

संगीत निर्माण की प्रक्रिया पर शांतनु ने कहा, मैं स्क्रिप्ट को नहीं, बल्कि निर्देशक को प्राथमिकता देता हूँ। निर्देशक फिल्म के कप्तान हैं, हमें उनका साथ देना चाहिए। दर्शकों के सामने उन्होंने अपने लोकप्रिय गीत जैसे ‘बहती हवा सा था वो’, ‘प्यू बोले पिया बोले’, ‘बाबरा मन’ और ‘जाओ पाखी’ प्रस्तुत किए, जिसने सभी का दिल छू लिया। उन्होंने यह भी बताया कि उनके लिए सच्ची सफलता केवल पुरस्कार या शोहरत नहीं, बल्कि दूसरों के दिलों तक पहुँचने और जीवन के हर पल को जीने में है।

उनके लिए सफलता का क्या अर्थ है, जवाब में शांतनु ने 'थ्री इडियट्स' की वही ख़ूबसूरत गाना गाया, 'सारी उम्र हम मर मर के जी लिए, एक पल तो अब हमें जीने दो...'। उन्होंने कहा, छह साल की एक कैंसर से पीड़ित बच्ची मुझे गीत सुनाना चाहती थी। जब मैंने उसे सुनाने को कहा, तो उसने वही गीत मुझे सुनाया...' संगीतकार की यह बात सुनकर वहां मौजूद दर्शक भावुक हो उठे और उनकी आंखों से आँसू छलक पड़े।

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