कोलकाता: बांग्ला में 'मोरा एक वृंते दूटी कुसुम हिंदू मुस्लमान'– विद्रोही कवि काजी नजरूल इस्लाम के इन अविस्मरणीय शब्दों का महत्व बंगाल के निवासी सदियों से समझते आए हैं। विशेषकर वर्तमान युग में यह आवश्यक है कि सांप्रदायिक सौहार्द और सद्भावना का यह संदेश दूर-दूर तक फैलाया जाए। इस दिन नजरूल जयंती पर सीएम ममता बनर्जी ने उनकी रचना के जरिए उन्हें श्रद्धांजलि दी।
कवि हमारे लिए सदैव स्मरणीय, संकट के समय में सहयोगी हैं!
सोमवार को मुख्यमंत्री ने एक्स हैंडल पर विद्रोही कवि नजरूल इस्लाम को श्रद्धांजलि देने के अलावा कई जरूरी और प्रासंगिक संदेश भी दिए। उन्होंने नजरूल को 'संकट के समय में सहयोगी' कहा। उन्होंने एक्स पर लिखा, विद्रोही कवि काजी नजरूल इस्लाम को उनकी जयंती पर मेरी हार्दिक श्रद्धांजलि। कवि की याद में हमने उनके जन्मस्थान के पास आसनसोल में काजी नजरूल विश्वविद्यालय का नाम उनके नाम पर रखा है और उस क्षेत्र में हमने अंडाल में अपने ग्रीनफील्ड हवाई अड्डे का नाम काजी नजरूल इस्लाम हवाई अड्डा रखा है। उनके सम्मान में 'नजरुल तीर्थ' और 'पश्चिम बंगाल काजी नजरुल इस्लाम अकादमी' की स्थापना की है। कवि पर विभिन्न शोध पुस्तकें प्रकाशित की गयी हैं। कवि हमारे लिए सदैव स्मरणीय, संकट के समय में सहयोगी हैं!
नजरूल ने हमारी जीवन शैली में सद्भाव का संदेश दिया है
सीएम ने यह भी कहा, कवि के मन और मस्तिष्क में देशभक्ति और क्रांतिकारी भावना कूट-कूट कर भरी थी। उनके लिखे गीतों और कविताओं ने हमें धार्मिक मतभेदों को भुलाकर एकजुट होना सिखाया है। एक अलग समुदाय से संबंधित होने के बावजूद वे देवी काली के भक्त थे और उन्होंने कई श्यामा संगीत की रचना की। उन्होंने हमारी जीवन शैली में सद्भाव का संदेश दिया है। हम उनकी एकता और सद्भाव के बंधन में बंधे रहने के मंत्र से दीक्षित होते हैं। भविष्य का बंगाल उनके लिखे गीतों की धुनों से आनंद से भर जाए। बाद में इस दिन सीएम ने रवींद्र सदन में नजरूल जयंती पर एक समारोह में भी भाग लिया। उन्होंने सार्वजनिक सभा में लगातार दो नजरूल गीत गाए जिसे सुनकर लोग मंत्रमुग्ध हो गए।