न्यायिक निर्णय लेने में मानव मस्तिष्क की जगह न ले प्रौद्योगिकी : सीजेआई

‘फैसले लेते समय विवेक, सहानुभूति और न्यायिक व्याख्या का स्थान कोई नहीं ले सकता’
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प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई
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नयी दिल्ली : देश के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) बीआर गवई ने कहा है कि न्यायिक निर्णय लेने में प्रौद्योगिकी को मानव मस्तिष्क का स्थान नहीं लेना चाहिए बल्कि उसका पूरक होना चाहिए। न्यायमूर्ति गवई ने साथ ही कहा कि न्यायिक निर्णय लेते समय विवेक, सहानुभूति और न्यायिक व्याख्या का स्थान कोई नहीं ले सकता।

विवेक, सहानुभूति और न्यायिक व्याख्या का मूल्य अपूरणीय है

न्यायमूर्ति गवई लंदन विश्वविद्यालय से संबद्ध स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज (एसओएएस) में ‘भारतीय कानूनी प्रणाली में प्रौद्योगिकी की भूमिका’ विषय पर आयोजित व्याख्यान में कहा कि न्यायपालिका स्वचालित वाद सूचियों, ‘डिजिटल कियोस्क’ और आभासी सहायकों जैसे नवाचारों का स्वागत करती है लेकिन उसे यह सुनिश्चित करना चाहिए कि मानवीय निगरानी, नैतिक दिशा-निर्देश और मजबूत प्रशिक्षण उनके कार्यान्वयन का अभिन्न अंग हों। उन्होंने कहा कि विवेक, सहानुभूति और न्यायिक व्याख्या का मूल्य अपूरणीय है। भारतीय न्यायपालिका देश की सांविधानिक और सामाजिक वास्तविकताओं के अनुरूप घरेलू नैतिक ढांचे के विकास को लेकर बेहतर स्थिति में है।

विश्वास और पारदर्शिता बढ़ाने के लिए हो प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल

सीजेआई ने कहा कि वास्तव में भारत के प्रधान न्यायाधीश के रूप में पदभार ग्रहण करने के बाद पहले ही सप्ताह में मैंने न्यायपालिका में कृत्रिम बुद्धिमत्ता और उभरती प्रौद्योगिकियों के नैतिक उपयोग पर एक व्यापक नोट तैयार करने के लिए उच्चतम न्यायालय के अनुसंधान और योजना केंद्र के साथ चर्चा शुरू की थी। उन्होंने कहा कि हमेशा इस बात पर जोर दिया जाना चाहिए कि प्रौद्योगिकी का उपयोग विश्वास और पारदर्शिता बढ़ाने के लिए किया जाये, न्याय के मूल में मानवीय विवेक का स्थान लेने के लिए नहीं।

दुनिया भर में चल रही कानूनी प्रणालियों में एआई के नैतिक उपयोग पर बहस

उन्होंने कहा कि दुनिया भर में कानूनी प्रणालियों में एआई के नैतिक उपयोग के बारे में बहस चल रही है। इसमें एल्गोरिदम संबंधी पूर्वग्रह, गलत सूचना, आंकड़ों में हेरफेर और गोपनीयता का उल्लंघन शामिल है। उदाहरण के लिए अपराध पीड़ित की पहचान जैसी संवेदनशील जानकारी को एआई त्रुटि या स्पष्ट प्रोटोकॉल की अनुपस्थिति के कारण कभी भी प्रकट नहीं किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त हाल के कुछ मामलों से पता चला है कि अगर एआई उपकरणों का उचित रूप से विनियमन और निगरानी नहीं की जाती है, तो वे मनगढ़ंत उद्धरण या पक्षपातपूर्ण सुझाव दे सकते हैं।

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