नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को उत्तर प्रदेश के दो पुलिस अधिकारियों पर दीवानी प्रकृति के एक संपत्ति विवाद में प्राथमिकी दर्ज करने पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगाया। न्यायालय ने कहा कि उसके समक्ष दीवानी विवादों में प्राथमिकी दर्ज करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं की बाढ़ आ गयी है और यह प्रथा (दीवानी मामलों में प्राथमिकी) ‘अनेक निर्णयों का उल्लंघन’ है।
जुर्माना माफ करने से इनकार
प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार के पीठ ने कहा कि दीवानी गलतियों के लिए आपराधिक मामला दर्ज करना अस्वीकार्य है। पीठ ने दोषी पुलिस अधिकारियों पर लगाया गया जुर्माना माफ करने से इनकार कर दिया। पीठ ने कहा कि आप 50,000 रुपये का जुर्माना अदा करें और इसे अधिकारियों से वसूल करें।
पहले भी दिया था ऐसा ही आदेश
पीठ ने मामले के तथ्य दर्ज किये और कहा कि इस मामले में उत्तर प्रदेश के कानपुर निवासी रिखब बिरानी और साधना बिरानी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गयी है। इसी तरह के एक मामले पर सुनवाई करते हुए सीजेआई ने पहले कहा था कि उत्तर प्रदेश में कानून का शासन पूरी तरह से खत्म हो चुका है। दीवानी मामले को फौजदारी मामले में बदलना स्वीकार्य नहीं है। इसके बाद राज्य पुलिस महानिदेशक को इस विशेष मामले में हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया गया।
मजिस्ट्रेट अदालत ने दो अलग-अलग याचिकाओं को दो बार खारिज कर दिया था
इस मामले में पीठ ने कहा कि राज्य पुलिस द्वारा प्राथमिकी इस तथ्य के बावजूद दर्ज की गयी कि एक स्थानीय मजिस्ट्रेट अदालत ने बिरानी परिवार के खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाने के निर्देश देने के अनुरोध वाली शिल्पी गुप्ता की दो अलग-अलग याचिकाओं को दो बार खारिज कर दिया था।
क्या था मामला?
रिकॉर्ड में यह बात सामने आयी कि बिरानी ने मौखिक रूप से 1.35 करोड़ रुपये में गुप्ता को कानपुर स्थित अपना गोदाम बेचने का समझौता किया था। गुप्ता ने बिक्री के आंशिक भुगतान के रूप में केवल 19 लाख रुपये का भुगतान किया और 15 सितंबर, 2020 तक बिरानी परिवार को तय 25 प्रतिशत अग्रिम राशि का भुगतान नहीं कर सकीं। बाद में बिरानी ने इस गोदाम को 90 लाख रुपये की कम कीमत पर एक तीसरे पक्ष को बेच दिया और गुप्ता द्वारा भुगतान किये गये 19 लाख रुपये वापस नहीं किये, जिन्होंने प्राथमिकी दर्ज करने के लिए दो बार फौजदारी अदालत का दरवाजा खटखटाया लेकिन वे असफल रहीं।
स्थानीय पुलिस ने दर्ज की थी प्राथमिकी
स्थानीय पुलिस ने हालांकि धोखाधड़ी, आपराधिक धमकी सहित अन्य अपराधों के लिए बिरानी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की, जिसके बाद उन्हें अदालत ने तलब किया। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने प्राथमिकी को रद्द करने से इनकार कर दिया और उन्हें मुकदमे का सामना करने को कहा। इसके बाद आदेश को शीर्ष अदालत में चुनौती दी गयी।