बंगाल में उद्योग की दुर्दशा को लेकर भाजपा का हमला, तृणमूल ने कहा ‘जुमला’

बंगाल में उद्योग की दुर्दशा को लेकर भाजपा का हमला, तृणमूल ने कहा ‘जुमला’
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सन्मार्ग संवाददाता

हुगली : बंगाल में उद्योग और रोजगार के हालात को लेकर भाजपा ने ममता बनर्जी सरकार पर तीखा हमला बोला है। भाजपा के श्रीरामपुर लोकसभा सीट से 2024 के प्रत्याशी और राज्य एडवोकेट प्रकोष्ठ के सह-संयोजक बैरिस्टर कबीर शंकर बोस ने कहा कि राज्य में उद्योगपतियों की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं और सिंडिकेट राज के कारण औद्योगिक जमीनों पर अवैध कब्जा बढ़ रहा है। कबीर शंकर बोस ने आरोप लगाया कि बंगाल में दमनकारी और उद्योग-विरोधी नीतियों के कारण कई उद्योग महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, गुजरात और बिहार का रुख कर रहे हैं। इसका सीधा असर रोजगार के अवसरों पर पड़ रहा है और युवाओं को परिवार से दूर जाकर अन्य राज्यों में नौकरी करनी पड़ रही है। उन्होंने कहा कि राज्य की आर्थिक स्थिति चिंताजनक है और सरकार इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है। इस अवसर पर उन्होंने ममता बनर्जी सरकार के खिलाफ एक “चार्जशीट” भी पेश की और कहा कि भ्रष्टाचार ने राज्य की आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित किया है। वहीं, तृणमूल कांग्रेस ने भाजपा के आरोपों को खारिज कर दिया। पार्टी ने कहा कि भाजपा कोई ठोस मुद्दा लेकर नहीं आई है और केवल आगामी 2026 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए बयानबाजी कर रही है। तृणमूल ने भाजपा को “जुमले की सरकार” करार दिया और दावा किया कि बंगाल की जनता ममता बनर्जी सरकार के साथ खड़ी है और चुनाव में भाजपा को उचित जवाब देगी। विशेषज्ञों का कहना है कि बंगाल में उद्योगों की स्थिति को लेकर दोनों ही पक्षों की बयानबाजी चुनावी रणनीति का हिस्सा प्रतीत होती है। जबकि भाजपा राज्य में रोजगार और औद्योगिक विकास पर केंद्रित मुद्दों को उठाकर सरकार को चुनौती दे रही है, तृणमूल कांग्रेस इसे केवल चुनावी प्रचार का हिस्सा बता रही है।

स्थानीय उद्योगपति और युवा इस मुद्दे पर चिंतित हैं। कई उद्योग बंद होने या दूसरे राज्यों में स्थानांतरित होने से रोजगार के अवसर घट रहे हैं, जिससे युवाओं को रोजगार के लिए बाहर जाना पड़ रहा है। राजनीतिक दलों की बयानबाजी के बीच आम जनता और उद्योग जगत की निगाह अब सरकार की वास्तविक नीतियों और सुधारों पर टिकी हुई है।

बंगाल में उद्योग और रोजगार के मुद्दे आगामी चुनाव में अहम भूमिका निभा सकते हैं। दोनों पार्टियों की बयानबाजी से स्पष्ट है कि औद्योगिक विकास और रोजगार सृजन जैसे सवालों पर बहस अगले चुनाव तक जारी रहेगी।

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