कोलकाता: जो कौम अपना इतिहास नहीं जानता, वह अपना इतिहास नहीं बना सकता है। बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की ये पंक्तियां आज की तारीख में बांग्लादेश के तत्कालीन परिदृश्य में सटिक बैठता है। वो शख्स जिसने बांग्लादेश को आजाद कराने के लिए पाकिस्तान के मियांवाली जेल की एक कालकोठरी करीब-करीब नौ महीने गुजारे। आज उसी शख्स की कहानी हम बताने जा रहे हैं जिनका नाम था शेख मुजीबुर्रहमान, जो बाद बांग्लादेश के राष्ट्रपिता भी बने। बीते बुधवार यानि 5 फरवरी की रात ढाका स्थित उनके घर धानमंडी-32 में आग लगा दी गई और उसे ध्वस्त कर दिया।
बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के देश छोड़ने के बाद से ही रह-रहकर हिंसा की आग में जल रहा है पूरा बांग्लादेश। बीती रात 5 फरवरी को ये हिंसा की कट्टरपंथी आग अब सीधा शेख हसीना के पिता शेख मुजीबुर्रहमान के ढाका स्थित घर धानमंडी-32 में जा पहुंचा। जहां कथित कट्टरपंथियों ने उनके घर को आग के हवाले कर दिया।
दरअसल आवामी लीग द्वारा 6 फरवरी को प्रस्तावित देशव्यापी विरोध प्रदर्शन से पहले राजधानी ढाका समेत पूरे बांग्लादेश के कई शहरों में हिंसा शुरू हो गई है। लेकिन, इससे पहले प्रदर्शनकारियों ने बुधवार की शाम ये कांड कर दिया। एक बांग्लादेशी मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक हमलावरों ने गेट तोड़कर जबरन बंगबंधु कहे जाने वाले शेख मुजीबुर्रहमान के घर में घुसकर तोड़फोड़ की, आग लगाई। जब इससे भी उनका मन नहीं भरा तो वे उनके घर बुलडोजर लेकर चढ़ गए और पूरे घर का नक्शा ही बदल दिया।
बांग्लादेश के ही एक अखबार 'द डेली स्टार' इस मुद्दे पर लिखा है कि शेख हसीना के विरोधियों का कहना है कि वो भारत में बैठ कर बांग्लादेश विरोधी गतिविधियां चला रही हैं। दरअसल शेख हसीना की पार्टी की छात्र इकाई ‘छात्र लीग’ ने एक ऑनलाइन कार्यक्रम का आयोजन किया था, जिसमें शेख हसीना को फेसबुक के जरिए स्पीच देना था, लेकिन जब इस कार्यक्रम की खबर उनके विरोधियों को मिली तो प्रदर्शन होने लगे। उनके विरोधियों ने 'बुलडोजर प्रदर्शन' का आह्वान कर दिया।
इस अखबार के मुताबिक 5 फरवरी की रात के 9.30 बजे प्रदर्शनकारी मुजीबुर्रहमान की बिल्डिंग में आग लगा दी। इसके बाद रात दो बजे के आसपास बिल्डिंग का एक हिस्सा भी बुलडोजर से गिरा दिया। इस मामले पर बीबीसी ने एक प्रदर्शनकारी के हवाले से लिखा कि म्यूजियम में तब्दील कर दिए गए बंगबंधु मुजीबुर्रहमान के घर को इसलिए जला डालना चाहते थे क्योंकि ये 'फासीवाद' का प्रतीक बन गया था। हम छात्रों ने क्रांति के जरिए एक नई सरकार बनाई है इसलिए इसे ध्वस्त करने में कोई बुराई नहीं है।
कौन थे बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान?
अब यहां पर हम शेख मुजीबुर्रहमान का थोड़ा इतिहास टटोलते हैं। ये किस्सा शेख मुजीबुर्रहमान जो बांग्लादेश के संस्थापक और बंगबंधु कहे जाते हैं। साल 1970 में 300 सीटों पर पाकिस्तान में आम चुनाव हुए। इसमें शेख मुजीब की पार्टी, अवामी लीग (जिसे पहले अवामी मुस्लिम लीग के नाम से जाना जाता था) ने पूर्वी पाकिस्तान में 162 में से 160 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत हासिल किया, जबकि जुल्फिकार अली भुट्टो के नेतृत्व वाली पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) ने पंजाब और सिंध में 138 सीटों में से 81 सीटें ही जीतीं। ये चुनाव अयूब खान के मार्शल लॉ की छाया में लड़े गए थे। हालांकि, किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि अवामी लीग इस तरह का कमाल करेगी।
इस चुनाव परिणाम के बाद सत्ता पर कब्जा कर बैठे जनरल आगा मुहम्मद याहया खान ने सत्ता सौंपने से इंकार कर दिया। क्योंकि, उन्हें लगता था कि अगर उन्हें सत्ता दिया गया तो पूर्वी पाकिस्तान का दबदबा पश्चिमी पाकिस्तान पर हो जाएगा। सारा का सारा पावर हाउस पश्चिम से पूर्व में चला जाएगा। आगा खान ने अवामी लीग के सरकार बनाने के अधिकार को मान्यता देने से इनकार कर दिया। अब जनादेश मिलने के बाद हुए विश्वासघात के कारण शेख का बंगाली अस्मिता हावी होने लगा।
दूसरी तरफ 25 मार्च, 1971 की रात साढ़े ग्यारह बजे पूरे ढाका में पाकिस्तानी सेना ने हमला बोल दिया। कागजों में इसे पाकिस्तानी सेना ने नाम दिया ‘ऑपरेशन सर्चलाइट’। सैयद बदरुल अहसन अपनी किताब ‘फ्रॉम रेबेल टू फाउंडिंग फादर’ में लिखते हैं कि जब गलियों से गोलियों की आवाज सुनाई देने लगती है तब शेख ने वायरलेस से संदेश भेज बांग्लादेश की आजादी की घोषणा कर देते हैं। शेख कहते हैं कि मैं बांग्लादेश के लोगों का आह्वान करता हूं कि वो जहां भी हों और जो भी उनके हाथ में हो, उससे पाकिस्तानी सेना का प्रतिरोध करें। आपकी लड़ाई जब तक जारी रहनी चाहिए जब तक पाकिस्तानी सेना के एक-एक सैनिक को बांग्लादेश की धरती से निष्कासित नहीं कर दिया जाता।
शेख मुजीबुर्रहमान को कर लिया गया गिरफ्तार
इसी 25 मार्च, 1971 की रात को करीब एक बजे पाकिस्तानी सेना का एक दल, 32 धानमंडी स्थित उनके आवास पर पहुंचती है। ये वहीं धानमंडी का आवास है जिसे बीत दिन 5 फरवरी, 2025 की रात को तकरीबन 2 बजे प्रदर्शनकारियों द्वारा जला दिया गया। इसी घर पर 1971 में जब पाकिस्तानी सेना पहुंचती है। तब उन्हें घर से जबरन उठाकर ले जाती है। इसके बाद उसे पश्चिमी पाकिस्तान भेज दिया जाता है।
कई रिपोर्ट व कई किताबों के पन्ने पलटने पर ये बताते हैं कि पाकिस्तानी सेना का ये ‘ऑपरेशन सर्चलाइट’ इतना खतरनाक था कि ढाका की सड़कों पर टैंक घूम रहे थे। ढूंढ ढूंढ कर बुद्धिजीवियों को मारा जा रहा था। महिलाओं और लड़कियों का बलात्कार किया जा रहा था। दो महीने तक चले इस खूनी अभियान में पाकिस्तानी सेना ने तकरीबन 30 लाख बांग्लादेशी नागरिकों को मौत के घाट उतार दिया।
इस घटना के बाद भारत पर दवाब बढ़ने लगा और कई नागरिक बांग्लादेश छोड़ भारत भागने लगे। जिसके कारण भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसे 'नरसंहार' कहा था। इसके बाद भारत ने बांग्लादेश के लोगों को उनके घर को वापस दिलाने के लिए पाकिस्तान से जंग तक किया। इस जंग को लेकर श्रीनाथ राघवन अपनी किताब '1971 अ ग्लोबल हिस्ट्री ऑफ़ द क्रिएशन ऑफ बांग्लादेश' में लिखते हैं कि भारत ने बांग्लादेश से आए एक करोड़ शरणार्थियों को वापस उनके घर भेजने के लिए योजना बनाई। जिसके तहत भारतीय सेना का उद्देश्य था पूर्वी पाकिस्तान की ज्यादा से ज्यादा जमीन पर कब्जा कर लोगों को स्थापित किया जाए। जिसमें भारतीय सेना का साथ बांग्लादेश की मुक्ति वाहिनी ने दिया। इसके बाद 16 दिसंबर 1971 को ही पाकिस्तान की सेना ने भारत के सामने आत्मसमर्पण किया। इस युद्ध के बाद बांग्लादेश का जन्म हुआ।
युद्ध में हार के बाद शेख को छोड़ा
दूसरी तरफ 7 जनवरी, 1972 की रात को पाकिस्तान ने शेख मुजीबुर्रहमान को भारत से करार के तहत छोड़ दिया। इसके बाद शेख लंदन में दो दिन रुके और 9 जनवरी की शाम ढाका के लिए रवाना हुए लेकिन रास्ते में वो कुछ घंटों के लिए नई दिल्ली में भी रुके। जहां भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति गिरि, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी व उनके पूरे मंत्रिमंडल के साथ-साथ सेना के तीनों प्रमुखों से मिले। शेख का दिल्ली एयरपोर्ट पर शानदार स्वागत किया गया। वहीं सेना के कंटोनमेंट के मैदान पर मुजीबुर्रहमान ने एक जनसभा में बांग्लादेश के स्वाधीनता संग्राम में मदद करने के लिए भारत का धन्यवाद किया। दिल्ली में दो घंटे रुकने के बाद जब शेख तकरीबन नौ महीने बाद पाकिस्तान की जेल से छूटकर बांग्लादेश पहुंचे।
... तो ऐसे शेख हसीना की बची जान
जहां 10 लाख की भीड़ उनका इंतजार कर रही थी। इसके बाद मुजीबुर्रहमान बांग्लादेश के तीन साल तक प्रधानमंत्री के रूप में काम किया। लेकिन, 1975 आते-आते माहौल बदल गया। सत्ता शेख के हाथों से निकलने लगीं और भ्रष्टाचार बढ़ने लगा। लोगों के साथ-साथ सेना में भी असंतोष बढ़ने लगा। 15 अगस्त, 1975 की सुबह सेना के कुछ जूनियर अफसरों ने शेख के घर पर हमला बोल दिया और बेगम मुजीब के साथ-साथ उनके बेटे जमाल व उनकी दोनों बहुओं को भी मार दिया गया। यहां तक कि उनके सबसे छोटे बेटे 10 साल के रसेल मुजीब को भी मौत के घाट उतार दिया गया। लेकिन, उनकी बेटी शेख हसीना बच गई थीं, क्योंकि वो उस वक्त देश में नहीं थी। जो बाद में बांग्लादेश की प्रधानमंत्री बनीं।