

कोलकाता: दक्षिण बंगाल के देहातों की एक पहचान हुआ करते थे मटमैली सड़क के किनारे, खेतों मेड़ पर, तालाबों के पास सिर ऊँचा किये खड़े ताड़ के लंबे-लंबे पेड़। वक्त के साथ यह दृश्य लगभग गायब हो गया। शहरीकरण, अवैध कटाई और खेती के दबाव ने ताड़ के पेड़ों की संख्या ऐसे घटायी कि अब इनका अभाव लोगों की जान पर बन आया है।
हर साल बिजली गिरने से दर्जनों मृत्यु इस कमी की कीमत बन गयी है। इसी चिंता ने राज्य सरकार को बड़े स्तर पर कदम उठाने पर मजबूर किया है। नवान्न सूत्रों के अनुसार, आने वाले मानसून में दक्षिण बंगाल के चार जिलों बांकुड़ा, पुरुलिया, बीरभूम और पूर्व बर्दवान में 75,000 ताड़ के पेड़ लगाने का लक्ष्य तय किया गया है।
यह परियोजना नागरिक सुरक्षा विभाग और वन विभाग के संयुक्त विचार की उपज है, जो इसे क्रियान्वित भी करेंगे। लगभग 300 किलोमीटर सड़क के दोनों ओर पौधारोपण के लिए भूमि चिह्नित की गयी है। वन विशेषज्ञ बताते हैं कि ताड़ का पेड़ बिजली गिरने के वक्त प्राकृतिक ‘अर्थिंग’ की तरह काम करता है।
सौ फुट से भी ऊँचे ये पेड़ बिजली को सीधे जमीन की गहराई तक खींच ले जाते हैं और आसपास के लोगों व घरों को सुरक्षित रखते हैं। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि कुछ जिलों में हर साल बिजली गिरने से 60–70 मौतें हो रही हैं। ऐसे में स्कूल, अस्पताल और घनी आबादी वाली जगहों के पास ताड़ के पेड़ लगाना जीवनरक्षक साबित हो सकता है।
बेशक, देहात के पुराने दृश्य को लौटाने के साथ यह योजना जिंदगी बचाने की भी उम्मीद बनकर उभर रही है। इस परियोजना की डीपीआर लगभग तैयार है और इस संबंध में सरकार द्वारा शीघ्र ही पायलट परियोजना शुरू की जाएगी।