

निधि, सन्मार्ग संवाददाता
कोलकाता/बनगांव: पश्चिम बंगाल की राजनीति में एक बार फिर 'मतुआ कार्ड' सबसे अहम मुद्दा बनकर उभरा है। मतदाता सूची से बड़े पैमाने पर मतुआ समुदाय के लोगों के नाम काटे जाने और ठाकुरबाड़ी में एक मतुआ साधु पर हुए हमले के विरोध में राज्यव्यापी आंदोलन का बिगुल फूंक दिया गया है। तृणमूल कांग्रेस समर्थित 'ऑल इंडिया मतुआ महासंघ' ने आगामी 5 जनवरी को दोपहर 12 बजे से पूरे पश्चिम बंगाल में व्यापक सड़क अवरोध (पथावरोध) का आह्वान किया है।
इस तनाव की शुरुआत तब हुई जब श्यामनगर निवासी मतुआ गोसाईं नान्टू, मतदाता सूची से नाम हटाए जाने के संबंध में स्पष्टीकरण मांगने ठाकुरनगर स्थित ठाकुरबाड़ी पहुंचे थे। आरोप है कि वहां उन्हें जमीन पर गिराकर बेरहमी से पीटा गया। इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद मतुआ समुदाय में आक्रोश फैल गया। संगठन के महासचिव सुकेश चौधुरी ने रविवार को एक संवाददाता सम्मेलन में सीधा आरोप लगाया कि केंद्रीय राज्य मंत्री शांतनु ठाकुर के उकसावे पर भाजपा और आरएसएस के कैडरों ने मतुआ साधु-गोसाइयों पर यह हमला किया है।
वर्तमान में राज्य में निर्वाचन आयोग द्वारा विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) की प्रक्रिया चल रही है। इस प्रक्रिया के दौरान मतुआ समुदाय के बीच भारी डर व्याप्त है। इसके मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:
दस्तावेजों का अभाव: विभाजन और विस्थापन का दंश झेल चुके इस समुदाय के कई बुजुर्गों के पास ऐसे वैध दस्तावेज नहीं हैं, जो वर्तमान डिजिटल मानकों पर खरे उतर सकें।
सीएए (CAA) पर संशय: गायघाटा के मतुआ प्रतिनिधियों ने मांग की है कि केंद्र सरकार सार्वजनिक करे कि सीएए के तहत अब तक कितने लोगों को वास्तविक रूप से नागरिकता दी गई है।
पहचान का संकट: मतदाता सूची से नाम कटने को मतुआ समाज केवल एक तकनीकी त्रुटि नहीं, बल्कि अपनी नागरिक पहचान और मतदान के संवैधानिक अधिकार पर हमले के रूप में देख रहा है।
घटना के विरोध में रविवार की रात गायघाटा थाने के सामने मतुआ अनुयायियों ने भारी विरोध प्रदर्शन किया। उनकी मांग है कि आरोपी भाजपा सांगठनिक जिला अध्यक्ष विकास घोष समेत अन्य फरार आरोपियों को तुरंत गिरफ्तार किया जाए। अब तक पुलिस ने केवल एक व्यक्ति को हिरासत में लिया है।
दूसरी ओर, भाजपा समर्थित ऑल इंडिया मतुआ महासंघ के महासचिव सुखेंद्रनाथ गाइन ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है। उन्होंने पलटवार करते हुए कहा कि यह आंदोलन केवल राजनीतिक लाभ के लिए किया जा रहा है और आंदोलनकारियों के साथ 'असली' मतुआ समाज नहीं है।
24 दिसंबर को ठाकुरबाड़ी में हुई हिंसा और अब 5 जनवरी के राज्यव्यापी चक्का जाम की घोषणा ने यह स्पष्ट कर दिया है कि आगामी चुनावों से पहले मतुआ समुदाय का मुद्दा बंगाल की राजनीति को पूरी तरह प्रभावित करने वाला है। एक ओर जहां नागरिकता का वादा है, वहीं दूसरी ओर मतदाता सूची से नाम कटने का यथार्थ डर—इन दोनों के बीच फंसा मतुआ समाज अब आर-पार की लड़ाई के मूड में नजर आ रहा है।