सन्मार्ग संवाददाता
मिरिक : कालेबुंग जिले के जलगांव का रोंगो सिनकोना बागान, 45 धुरा गांव जो लगभग 150 घर परिवार मिलकर बना एक गांव है, यह विकास के नजरिए से कालापानी से कम नहीं है। भारत आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है ऐसे में देश का यह गांव विकास से कोसों दूर है। किसी ने हर गांव को डिजिटल इंडिया से जोड़ा, किसी ने स्विट्जरलैंड बनाया लेकिन इस गांव को कोई पहचान नहीं सका। यहां के लोग भारत में रहते हैं, लेकिन यह गांव आज भी इस देश की बुनियादी सुविधाओं से वंचित है। एक ऐसा गांव है जिसे डिजिटल इंडिया नहीं जोड़ पाया, एक ऐसा गांव जो विकास की धुरी नहीं तोड़ पाया, जहां लोग राशन पाने के लिए दिनभर काम करने को मजबूर हैं। अगर वे सुबह पहुंचते हैं और शाम तक काम करते हैं, तो भी उनका कोई काम नहीं होता, उन्हें खाली हाथ घर लौटना पड़ता है। बारिश के मौसम में लोगों को पूरे दिन लाइन में लगना पड़ता है। यहां लोग तिरपाल के नीचे बैठकर राशन बांट रहे हैं और ग्रामीण राशन लेने के लिए लाइन में लगे हैं। वे तिरपाल के नीचे बैठने को मजबूर हैं, क्योंकि इस गांव में संचार (फोन) नेटवर्क नहीं है। इसलिए जहां थोड़ा बहुत नेटवर्क है, वहां वितरक तिरपाल के नीचे बैठते हैं। इसके बाद भी नेटवर्क धीमा रहता है और उपभोक्ता को राशन देने में काफी समय लग जाता है। यहां के लोग ऐसी बुनियादी चीजों से वंचित हैं। अगर आपको फोन करना है, तो आपको पहाड़ से पहाड़ तक जाना पड़ता है कि नेटवर्क कहां है। स्थिति अब भी वैसी ही है। बच्चे ऑनलाइन कक्षाओं से वंचित हैं। अगर आपको किसी आपात स्थिति में फोन करना है, तो भी यही समस्या होती है। ऐसा नहीं है कि स्थानीय लोगों ने संबंधित निकायों के समक्ष समस्या नहीं उठाई है, लेकिन कहीं भी उनकी बात ठीक से नहीं सुनी गई है। यह सरकार के लिए बिल्कुल भी बड़ी बात नहीं है। सरकार के लिए यह एक छोटी सी समस्या है, अगर सरकार चाहे तो इस समस्या को दो दिन में हल कर सकती है, लेकिन अब तक कितनी ही सरकारें आईं और चली गईं, लेकिन समस्या जस की तस बनी हुई है।