इस मंदिर में हनुमान जी ने तुलसीदास जी को दिए थे अपने दर्शन

इस मंदिर में हनुमान जी ने तुलसीदास जी को दिए थे अपने दर्शन

Published on

कोलकाता : काशी (Kashi), वर्तमान वाराणसी शहर में स्थित एक पौराणिक नगरी है। यहां के घाट, मंदिर और गंगा विश्वभर में काशी की प्रसिद्धि का सबसे बड़ा प्रतीक हैं। आज हम वहीं के एक प्रसिद्ध मंदिर संकट मोचन हनुमान मंदिर के बारे में जानेंगे। यह काशी विश्वनाथ मंदिर के बाद सबसे अधिक देखा जाने वाला मंदिर है। कहा जाता है कि, इस मंदिर में हनुमान जी के दर्शन से सभी संकट दूर हो जाते हैं। कई समस्याओं का समाधान हो जाता है। इसलिए इस मंदिर को संकट मोचन कहा जाता है।काशी, वाराणसी (Varanasi) शहर के गंगा नदी के किनारे अस्सी घाट पर भगवान हनुमान जी का यह मंदिर आस्था और विश्वास का बहुत बड़ा धार्मिक स्थल माना जाता है। संकट मोचन नाम से प्रसिद्ध इस मंदिर का इतिहास 400 साल से भी अधिक पुराना है। आपको बता दें कि, यह वही मंदिर है, जहां गोस्वामी तुलसीदास (Goswami Tulsidas) को भगवान हनुमान जी ने अपने दर्शन दिए थे। जिस स्थान पर हनुमान जी ने अपने दर्शन दिए थे, उसी स्थान पर आज उनकी प्रतिमा भी स्थापित है।

मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा
इस मंदिर की स्थापना 16 वीं शताब्दी में स्वयं तुलसीदास (Tulsidas) जी द्वारा की गई थी। पौराणिक कथा के अनुसार तुलसीदास, भगवान श्रीराम के अनन्य भक्तों में से एक थे। उनके द्वारा ही विश्वप्रसिद्ध महाकाव्य रामचरितमानस की रचना की गई थी। जिस दौरान तुलसीदास जी रामचरितमानस की रचना कर रहे थे, वह काशी में थे। प्रतिदिन स्नान – ध्यान के बाद वह नियम पूर्वक पीपल के वृक्ष पर जल चढ़ाया करते थे और आते – जाते श्रद्धालुओं को रामचरितमानस (Ramcharitmanas) का पाठ पढ़कर सुनाया करते थे। इसी क्रम में जब एक बार तुलसीदास जी वृक्ष पर जल चढ़ा रहे थे, तब उसी वृक्ष से एक प्रेत (मान्यता) प्रकट हुआ और उसने तुलसीदास से पूछा क्या आप भगवान श्रीराम से मिलना चाहते हैं ? मैं आपको उनसे मिला सकता हूं। लेकिन उससे पहले आपको हनुमान जी से मिलना होगा। तुलसीदास जी ने पूछा लेकिन उनसे मिलवाएगा कौन ? तब उस प्रेत ने उन्हें बताया कि, उनकी रामकथा सुनने प्रतिदिन एक वृद्ध कुष्ठ रोगी भी आता है। वह और कोई नहीं, स्वयं हनुमान जी हैं। इसके बाद एक दिन जब तुलसीदास जी कथा सुना रहे थे तो, सदैव की भांति वह वृद्ध कुष्ठ रोगी सबसे आखिर में बैठा हुआ था। तुलसीदास जी का भी उन पर ध्यान गया। जब कथा समाप्त हुई तो तुलसीदास जी ने, उस वृद्ध को रोका और उनके पैरों को पकड़कर बोले मुझे पता है प्रभु आप ही हनुमान हैं। कृपया अपने दर्शन दीजिए। इसके बाद महावीर बजरंग बली ने तुलसीदास जी को अपने दर्शन दिए। और आज वहीं पर उनका यह संकट मोचन मंदिर स्थापित है।

logo
Sanmarg Hindi daily
sanmarg.in