आजकल बच्चों की भी एक दिनचर्या बन गई है। स्कूल से लौटते हैं और आनन-फानन में कपड़े बदलकर टी. वी. के सामने बैठ जाते हैं। अभिभावकों के बार-बार टोकने पर ही वे होमवर्क करने के लिए तैयार होते हैं। आजकल अभिभावक चाहने लगे हैं कि बच्चे ज्यादा से ज्यादा पढ़ें और कक्षा में अव्वल आएं।
लंबी छुट्टियां हो या एक दिन की छुट्टी, अभिभावक चाहते हैं कि बच्चे खूब पढ़े-लिखे और बाद में चाहें तो टी. वी. देखकर मन बहला लें लेकिन यथार्थ तो यह है कि एकरसता बच्चों के मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य के लिए अच्छी नहीं हैं। बच्चे एक तरह की ही जिंदगी जीते-जीते तंग आ जाते हैं और नयापन चाहते हैं। स्कूल, घर, पुराने मित्र ये सब बढ़ते बच्चों की मानसिकता को सही सही विकसित नहीं होने देते।
ऐसे में अभिभावकों के लिए आवश्यक है कि वे बच्चे को एकरसता से बाहर निकालें तथा उन्मुक्त परिवेश में ले जाएं। गर्मियों की शामें व जाड़ों की दोपहर अच्छा खासा मनोरंजन दे सकते हैं। महीने में कम से कम दो रविवार बच्चों के मनोरंजन के लिए तय करें। आस-पास के पार्कों, चिड़ियाघरों बोटिंग सेंटरों में जाकर बच्चे लुत्फ उठा सकते हैं। अभिभावकों के साथ-साथ और कई लोगों की कम्पनी मिल जाए तो बच्चों का अच्छा-खासा मनोरंजन हो जाता है।
ऐसे मौकों पर अभिभावक बच्चों के प्रिय व्यंजन बनाकर पैक कर सकते हैं। बच्चे घूमेंगे-फिरेंगे और अपने पसंदीदा व्यंजनों का स्वाद भी ले सकेंगे। वैसे भी आजकल हर पिकनिक स्पॉट पर आइसक्रीम मिल जाती है। केक, बिस्कुट मिठाइयां व्यंजन खाने पर ही जोर डालें क्योंकि जेब पर असर नहीं पड़ेगा और बच्चों की सेहत भी ठीक रहेगी।
सिर्फ रविवार ही नहीं, गर्मियों व जाड़ों की छुट्टियों में भी बच्चों के मनोरंजन के बारे में सोचना जरूरी है। छुट्टियों में दस-पन्द्रह दिन बच्चों के लिए निकाले जाने चाहिए। अभिभावकों को चाहिए कि बच्चों के मनोरंजन पर होने वाले खर्च को भी जरूरी खर्च मान लें।
ऐतिहासिक स्थल, प्राकृतिक संपदा से भरपूर स्थल, धार्मिक महत्त्व के स्थल, ये सब बच्चों की मानसिकता पर गहरा असर डालते हैं। चित्रकारी कविता-लेखन आदि से जुड़े प्रतिभासंपन्न बच्चे भी अच्छे तरीके से अपनी कलाओं को अभिव्यक्ति दे सकेंगे। इससे बच्चों का सामान्य ज्ञान भी तेजी से विकसित होता है क्योंकि किताबों में पढऩे व देखकर समझने में बड़ा फर्क होता है। -आर. सूर्य कुमारी(उर्वशी)
मनोरंजन आवश्यक है बच्चों के लिए
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