मेजर ध्यानचंद को कब मिलेगा भारत रत्न, इंतजार अब भी

हॉकी इंडिया के अध्यक्ष और तीन बार के ओलंपियन दिलीप टिर्की ने 2016 में इस मांग को लेकर जंतर मंतर पर आंदोलन की अगुवाई की और संसद में भी मसला उठाया लेकिन हर कोशिश नाकाम रही।
मेजर ध्यानचंद को कब मिलेगा भारत रत्न, इंतजार अब भी
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नयी दिल्ली : उनके नाम पर राष्ट्रीय खेल सम्मान, उनका जन्मदिन 29 अगस्त राष्ट्रीय खेल दिवस और देश भर में अनेक स्टेडियमों पर उनका नाम लेकिन हॉकीप्रेमियों को यह कचोटता है कि तमाम आंदोलनों ,आरटीआई और अपीलों के बावजूद मेजर ध्यानचंद को आज तक भारत रत्न क्यों नहीं मिल सका? केंद्र सरकार ने 2021 में देश के सर्वोच्च खेल पुरस्कार राजीव गांधी खेल रत्न का नाम बदलकर मेजर ध्यानचंद खेलरत्न पुरस्कार कर दिया। लेकिन सवाल यह है कि जनभावना को देखते हुए देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान के लिये उनके नाम पर विचार क्यों नहीं किया जा रहा। हॉकी इंडिया के अध्यक्ष और तीन बार के ओलंपियन दिलीप टिर्की ने 2016 में इस मांग को लेकर जंतर मंतर पर आंदोलन की अगुवाई की और संसद में भी मसला उठाया लेकिन हर कोशिश नाकाम रही।

टिर्की ने कहा, ‘ध्यानचंद अपने दौर में दुनिया के सबसे बड़े खिलाड़ी थे। मैं हमेशा कहता हूं कि भारत को सबसे पहले ओलंपिक के स्वर्ण पदक हॉकी ने दिखाये हैं और उनका योगदान अतुलनीय है। देश के सबसे बड़े खेल पुरस्कार उनके नाम से, नेशनल स्टेडियम उनके नाम से तो भारत रत्न क्यों नहीं।’ लगातार तीन ओलंपिक (1928 एम्सटर्डम, 1932 लॉस एंजिलिस और 1936 बर्लिन) में भारतीय टीम को स्वर्ण पदक दिलाने में सूत्रधार रहे ध्यानचंद ने पहली बार विश्व खेलों के मानचित्र पर भारत की जोरदार उपस्थिति दर्ज कराई थी। हॉकी के इतिहास में 185 अंतरराष्ट्रीय मैचों में सर्वाधिक 570 गोल का रिकॉर्ड भी उनके नाम है। ध्यानचंद के बेटे और 1975 में एकमात्र विश्व कप जीतने वाली भारतीय टीम के अहम सदस्य रहे अशोक ध्यानचंद ने कहा कि उनके पिता ने कभी अपना प्रचार नहीं किया और उन्हें इस पर गर्व है ।

उन्होंने कहा, ‘दुनिया में खेलों के नक्शे पर भारत को सबसे पहले लाने वाले वही थे। उनके निधन के 46 साल बाद भी उनका नाम आज गूंज रहा है और इसे ही महान खिलाड़ी की विरासत कहते हैं। मुझे उन पर गर्व है कि वे प्रचार से हमेशा दूर रहे।’ उन्हें 1956 में देश के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मभूषण से नवाजा गया लेकिन भारत रत्न के लिये बारंबार उनकी अनदेखी हुई और अब तो मामला ठंडे बस्ते में ही चला गया है। नवंबर 2013 में मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली केंद्र सरकार ने सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न देने का ऐलान किया और वह इसे पाने वाले पहले और एकमात्र खिलाड़ी हैं। उन्होंने कहा, ‘इतने महान खिलाड़ी होने के बावजूद मेरे पिताजी ने बहुत खराब दिन भी देखे लेकिन खुद्दारी नहीं छोड़ी।

अपने लिये पुरस्कार मांगना तो वह कभी सोच भी नहीं सकते थे। घर के हालात देखकर हमने 1977-78 में एक गैस एजेंसी के लिये आवेदन करना चाहता लेकिन उन्होंने उस पर दस्तखत करने से इनकार कर दिया।’ अशोक कुमार ने कहा, ‘वह हमेशा यही कहते थे कि मैने क्या किया, यह देखना सरकार का काम है। हम किसी से भीख थोड़े ही मांगेंगे।’ उन्होंने कहा, ‘यह सरकार को दिखाना है कि वह ऐसे लोगों को भूली नहीं है जिन्होंने देश की निस्वार्थ सेवा की है। खेलों के लिये इतना काम हो रहा है और ऐसे में अतीत के महानायकों को भी भुलाना नहीं है।’

टिर्की ने कहा, ‘2016 में जंतर मंतर पर आंदोलन में बहुत सारे ओलंपियन अशोक कुमार, अजित पाल सिंह, जफर इकबाल, अजय बंसल, एबी सुब्बैया ने भाग लिया था। विश्व विख्यात सैंड आर्टिस्ट सुदर्शन पटनायक ने ध्यानचंद को भारत रत्न देने की मांग पर सैंड आर्ट भी बनाया था लेकिन हमारे प्रयास नाकाम रहे ।’ बीजू जनता दल के सांसद रहे टिर्की ने राज्यसभा में पांच मई 2016 को भी यह मसला उठाया था। इसके साथ ही सौ से अधिक सांसदों के हस्ताक्षर सहित ज्ञापन भी सौंपा था लेकिन कोई नतीजा नहीं।

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