खेल केवल धनी लोगों के लिए नहीं, सभी के लिए है : सिंधु के पिता पीवी रमन्ना

खेल में सफलता से खुलते हैं अवसर : पीवी रमन्ना
खेल केवल धनी लोगों के लिए नहीं, सभी के लिए है : सिंधु के पिता पीवी रमन्ना
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नयी दिल्ली : भारत की दिग्गज बैडमिंटन खिलाड़ी पीवी सिंधु के पिता और एशियाई खेलों के कांस्य पदक विजेता पूर्व वॉलीबॉल खिलाड़ी पीवी रमन्ना ने कम आय वाले परिवारों के बच्चों को खेलों में हाथ आजमाने को लेकर चल रही बहस पर अपनी बात रखी है। उन्होंने कहा कि कई तरह की चुनौतियों के बावजूद वह खिलाड़ियों और उनके माता-पिता को अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास करने से कभी हतोत्साहित नहीं करेंगे। खुद मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने के बावजूद रमन्ना ने वॉलीबॉल में देश का प्रतिनिधित्व किया और वह 1986 एशियाई खेलों में कांस्य पदक जीतने वाली भारतीय टीम का हिस्सा थे। सिंधु ने भी विश्व चैंपियनशिप, दो ओलंपिक पदक समेत दुनियाभर में कई टूर्नामेंट जीतकर देश का नाम रोशन किया। रमन्ना ने एक साक्षात्कार में कहा, ‘जब मैं तीन साल का था तब मेरे पिता की मृत्यु हो गई। मैं 10 भाई-बहनों में सबसे छोटा था। लेकिन मेरे बड़े भाई-बहन मेरा समर्थन करके और मुझे राष्ट्रीय स्तर की वॉलीबॉल खेलते हुए देखकर बहुत खुश थे क्योंकि उस खेल के कारण मुझे रेलवे में नौकरी मिल गई।’

किसी भी खेल में अच्छा होना अवसर खोलता है : भारतीय वॉलीबॉल टीम में ‘ब्लॉकर’ की भूमिका निभाने वाले इस पूर्व खिलाड़ी ने कहा, ‘ऐसे में अगर आप निम्न मध्यम वर्ग या मध्यम वर्ग से ताल्लुक रखते हैं तो किसी भी खेल में अच्छा होना वास्तव में आपके लिए अवसर खोलता है। यह मत भूलिए कि खेल बच्चे के समग्र विकास के लिए बहुत अच्छा है।’ रमन्ना कि यह टिप्पणी राष्ट्रीय बैडमिंटन कोच पुलेला गोपीचंद के हालिया बयान से शुरू हुई बहस के बीच आई है। गोपीचंद ने कहा था कि मध्यम वर्ग के माता-पिता को बच्चों को खेल के लिए प्रोत्साहित करने से पहले अच्छी तरह सोचना चाहिए क्योंकि जो लोग उच्चतम स्तर पर सफल नहीं होते हैं उनके पास पीछे हटने के बाद कुछ नहीं होता है। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि भारत में खेल शायद उन लोगों के लिए अधिक उपयुक्त है जो धनी परिवारों से आते हैं।

प्रतिभा कभी धन की मोहताज नहीं होती है : रमन्ना ने गोपीचंद के दृष्टिकोण से असहमति जताते हुए कहा कि इसमें संतुलन बनाना सफलता की कुंजी है। उनका अपना घर इसका एक आदर्श उदाहरण है। इस 61 साल के पूर्व खिलाड़ी ने कहा कि उनकी बड़ी बेटी पी वी दिव्या बचपन में नेटबॉल खेलने के बाद डॉक्टर बन गईं। दूसरी ओर, सिंधु ने रैकेट उठाते ही खुद को एक विलक्षण प्रतिभा के रूप में पेश किया। उन्होंने कहा, ‘प्रतिभा कभी धन की मोहताज नहीं होती है वह खुद दिख जाती है। आपको एक माता-पिता के रूप में संतुलन तलाशना होगा। जब मुझे एहसास हुआ कि मेरी बड़ी बेटी का रुझान पढ़ाई में है तो मैंने उसे आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया।’

बच्चों पर भी भरोसा करना चाहिए : उन्होंने कहा, ‘सिंधु ने जब 10वीं कक्षा में प्रवेश किया तब वह बैडमिंटन कोर्ट पर अपने समकक्षों से काफी आगे थी। उसे प्रायोजक मिल गए थे क्योंकि हर कोई देख सकता था कि उसके पास तेजी से आगे बढ़ने की क्षमता थी। हमें बच्चों पर भी भरोसा करना चाहिए। उनमें भी सहज प्रवृत्ति होती है।’ उन्होंने कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि एक खिलाड़ी के तौर पर किसी को दूसरों को खेल से हतोत्साहित करना चाहिए।’ रमन्ना का जीवन भी खिलाड़ी आसान नहीं रहा है लेकिन भारतीय रेलवे में खेल अधिकारी के पद की बदौलत उन्हें स्थिरता मिली और इससे उनके लिए अपने खेल में सफलता हासिल करना थोड़ा आसान हो गया। इस पूर्व खिलाड़ी ने कहा कि रेलवे में नौकरी से उन्हें बेहद जरूरी वित्तीय सुरक्षा मिली और साथ ही उस महिला से भी परिचय हुआ जिससे उन्होंने आगे चलकर शादी की। उनकी पत्नी विजयलक्ष्मी भी राष्ट्रीय स्तर की वॉलीबॉल खिलाड़ी हैं। दोनों रेलवे कर्मचारी थे लेकिन सिंधु को आगे बढ़ने में मदद करने के लिए विजयलक्ष्मी ने समय से पहले सेवानिवृत्ति ले ली थी। रमन्ना ने कहा, ‘खेल के माध्यम से नौकरी पाना मध्यमवर्गीय माता-पिता के लिए प्रमुख विचारों में से एक है और जहां तक मैं जानता हूं इसमें बहुत सारे अवसर हैं। रेलवे ने ही हजारों एथलीटों को काम पर रखा है।’

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