भारतीय मुक्केबाजी के लिए कैसा रहा साल 2025 ?

भारत वर्ष 2024 में ओलंपिक खेलों में कोई पदक नहीं जीत पाया था और वर्ष 2025 में उसके खिलाड़ियों को कम वैश्विक प्रतियोगिताओं में भाग लेने का मौका मिला
सांकेतिक तस्वीर
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नयी दिल्ली : भारतीय मुक्केबाजी के लिए 2025 बेहद उथल-पुथल भरा रहा, जिसमें प्रशासक अदालती लड़ाइयों में उलझे रहे, वहीं दूसरी ओर भारत को जैस्मीन लैंबोरिया और मीनाक्षी हुडा के रूप में दो नए विश्व चैंपियन मिले। भारत वर्ष 2024 में ओलंपिक खेलों में कोई पदक नहीं जीत पाया था और वर्ष 2025 में उसके खिलाड़ियों को कम वैश्विक प्रतियोगिताओं में भाग लेने का मौका मिला। इस साल भारतीय मुक्केबाजी महासंघ (BFI) के भीतर आंतरिक कलह से खेल बुरी तरह प्रभावित रहा। इससे खिलाड़ियों का प्रदर्शन भी प्रभावित हुआ। यह संकट BFI के चुनावों से जुड़ा था जो पहले तीन फरवरी को होने थे लेकिन उन्हें लगातार स्थगित करना पड़ा। इस कारण भारतीय ओलंपिक संघ (IOA) ने महासंघ के संचालन के लिए तदर्थ समिति नियुक्त की। BFI ने इस कदम को अवैध करार दिया और बाद में दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस पर रोक लगा दी।

जल्द ही महासंघ के भीतर सत्ता के दुरुपयोग और वित्तीय कदाचार के आरोप सामने आए। अजय सिंह के नेतृत्व वाले BFI ने कथित वित्तीय अनियमितताओं के आरोप में महासचिव हेमंत कलिता और कोषाध्यक्ष दिग्विजय सिंह को निलंबित कर दिया, जिसके चलते कानूनी लड़ाई शुरू हो गई। इस बीच पूर्व खेल मंत्री अनुराग ठाकुर महासंघ के अध्यक्ष पद के लिए मैदान में उतरे लेकिन अजय सिंह के निर्देश के बाद उन्हें अयोग्य ठहरा दिया गया जिसके परिणाम स्वरूप महासंघ फिर से कानूनी लड़ाई में उलझ गया। इसके बाद एक लंबा और घिनौना सत्ता संघर्ष शुरू हुआ। आरोप-प्रत्यारोप इस हद तक बढ़ गए कि चुनाव अधिकारी ने भी अपने खिलाफ चलाए जा रहे दुष्प्रचार का हवाला देते हुए इस्तीफा दे दिया।

इस उथल-पुथल का मुक्केबाजों पर सीधा असर पड़ा। इस वजह से नवंबर 2024 में होने वाली सीनियर महिला राष्ट्रीय चैंपियनशिप को बार-बार स्थगित करना पड़ा। मार्च में विवादों के घेरे में इन प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया लेकिन मध्य प्रदेश और असम सहित कई राज्य इकाइयों ने अपने मुक्केबाजों को इनमें भाग लेने से रोक दिया था। इस विवाद के चलते असम की रहने वाली टोक्यो ओलंपिक की कांस्य पदक विजेता लवलीना बोरगोहेन को अपना नाम वापस लेना पड़ा। भारतीय खिलाड़ियों को इन विवादों के बीच जब अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में खेलने का मौका मिला तो उन्होंने अपेक्षित प्रदर्शन किया। विश्व मुक्केबाजी कप के ब्राजील और कजाकिस्तान चरण से भारतीय दल सम्मानजनक परिणाम लेकर लौटा।

इस साल का सबसे यादगार पल लिवरपूल में आयोजित विश्व चैंपियनशिप में आया, जहां जैस्मीन (57 किलोग्राम) और मीनाक्षी (48 किलोग्राम) ने स्वर्ण पदक जीते। पूजा रानी (80 किलोग्राम) और नूपुर श्योराण (80 किलोग्राम से अधिक) ने क्रमशः कांस्य और रजत पदक जीतकर महिला मुक्केबाजी में भारत की बढ़ती ताकत का नमूना पेश किया। निकहत जरीन ने चोट के कारण लंबे समय तक खेल से दूर रहने के बाद वापसी की लेकिन वह और बोरगोहेन जैसे सीनियर खिलाड़ी अपेक्षित प्रदर्शन करने में विफल रहे। विश्व चैंपियनशिप में भारत के पुरुष खिलाड़ियों का प्रदर्शन निराशाजनक रहा तथा वे 12 वर्षों में पहली बार बिना किसी पदक के वापस लौटे। भारत ने सत्र के आखिर में विश्व कप फाइनल्स की मेजबानी की, जहां उसने नौ स्वर्ण पदकों सहित रिकॉर्ड 20 पदक जीतकर शानदार प्रदर्शन किया। यह अलग बात है कि इस प्रतियोगिता में विश्व के कई प्रमुख मुक्केबाजों ने हिस्सा नहीं लिया था।

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