

इरफान-ए-आजम, सिलीगुड़ी ः पश्चिम बंगाल राज्य का उत्तरी हिस्सा, उत्तर बंगाल चाय बागानों के लिए भी मशहूर है। ये चाय बागान यहां की पारंपरिक अर्थव्यवस्था की रीढ़ रहे हैं। इसके बावजूद इनका अब तक उतना कल्याण नहीं हो पाया जितना होना चाहिए था। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि चाय बागानों के मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी के निर्धारण का मामला गत 10 वर्षों से अधर में ही लटका हुआ है। इन 10 वर्षों में न्यूनतम मजदूरी निर्धारण सलाहकार समिति की 20 बैठकें हुईं लेकिन न्यूनतम मजदूरी निर्धारित नहीं हो पाई। हां, इतना जरूर हुआ कि राज्य सरकार की पहल पर अंतरिम राहत के रूप में समय-समय पर आंशिक वृद्धि करते हुए 10 वर्षाें में दैनिक मजदूरी 132 रुपये से आज दैनिक 250 रुपये हो गई है। मगर, आज की आसमान छूती महंगाई के दौर में यह बहुत ही कम है।
चाय बागानों के मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी के निर्धारण को लेकर लंबे समय से आंदोलनरत ट्रेड यूनियनों के ज्वाइंट फोरम के संयोजक जियाउल आलम कहते हैं कि, बंगाल व असम के चाय बागानों के मजदूरों की मजदूरी इतनी कम है कि वे मजबूर हो कर अब यहां से दक्षिण भारत पलायन करने लगे हैं। केरल, तमिलनाडु व कर्नाटक में आज चाय बागानों के मजदूरों की दैनिक मजदूरी 460-480 रुपये है। अब उसकी भी समीक्षा का समय आ गया है और उसमें भी वृद्धि होगी। मगर, यहां कुछ नहीं हो रहा। वर्ष 2013 में ही केंद्र सरकार ने बंगाल व असम को चाय बागानों के मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी का निर्धारण करने को कहा था। उसी के तहत यहां न्यूनतम मजदूरी निर्धारण सलाहकार समिति गठित हुई। उस समिति की 10 वर्षों में 20 बैठकें हुईं लेकिन कुछ भी निर्धारित नहीं हो सका। उसकी 18वीं बैठक जो मदारीहाट में हुई थी उसमें मालिक पक्ष और मजदूर पक्ष दोनों की ओर से अनुमानित दैनिक मजदूरी की राशि बता दी गई थी जो कि 660 रुपये थी। अब तो 10 वर्ष बीत गए न्यूनतम मजदूरी निर्धारित नहीं हो पाई। इसे लेकर अदालत के आदेशों की भी अवहेलना की गई। सो, इस पर अदालत की अवमानना का भी मुकदमा चल रहा है। हम लोग भी अब इस मुद्दे पर जोरदार आंदोलन करेंगे।
याद रहे कि गत 12 अप्रैल को राज्य के श्रम मंत्री मलय घटक जो कि न्यूनतम मजदूरी निर्धारण सलाहकार समिति के अध्यक्ष भी रहे, उनकी अध्यक्षता में सिलीगुड़ी के मल्लागुड़ी स्थित राजकीय अतिथि निवास (सर्कटि हाउस) में समिति की 20वीं बैठक हुई थी। उस समय उन्होंने था कि चाय बागानों के मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी निर्धारित करने को यह सलाहकार समिति नौ साल पहले गठित हुई थी। इसमें चाय बागानों के मजदूर यूनयिनों एवं चाय बागानों के मालिकों के प्रतिनिधि बतौर सदस्य सम्मिलित रहे। इस कमेटी की 19 बैठकें हो चुकीं लेकिन सब की सब बेनतीजा रहीं। किसी भी बैठक में चाय बागानों के मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी का निर्धारण नहीं हो पाया। वे लोग आपस में विचार-विमर्श कर इस बाबत किसी प्रकार की सहमति पर नहीं पहुंच पाए। इसीलिए अब एक्सपर्ट कमेटी गठित कर मामले का जल्द से जल्द निपटारा करने का निर्णय लिया गया है। चाय बागानों के मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी निर्धारित करने का मामला अब एक एक्सपर्ट कमेटी देखेगी। एक एक्सपर्ट कमेटी गठित की जाएगी। यह मामला अब एक्सपर्ट के पास जाएगा। वे लोग इस पर सर्वेक्षण व अन्य आवश्यक कार्य करेंगे। उनसे राय ली जाएगी। उनकी अनुशंसा के अनुरूप बाद में चाय बागानों के मजदूरों की न्यूनतम मजदूरी के बाबत आवश्यक निर्णय लिया जाएगा। जितनी जल्दी संभव हो यह किया जाएगा। उम्मीद है कि बहुत जल्द ही इसका काम हो जाएगा। उस बैठक के भी डेढ़ माह से अधिक गुजर गए लेकिन मामला जरा भी आगे नहीं बढ़ा। इसे लेकर चाय बागानों के श्रमिकों में खासा रोष है व उनके यूनियन आंदोलन की तैयारी में हैं।