हल्दी, संगीत और मेहंदी रस्म कम दिखावा ज्यादा

हल्दी की रस्म
हल्दी की रस्म
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सिलीगुड़ी: विवाह रीति-रिवाज़ और संस्कृति का मेल है जिसमें सिर्फ दो लोगों का ही नहीं दो परिवारों का संबंध होता है और विवाह के दौरान कई ऐसे रस्म निभाएं जाते है जो बहुत अहम होते है और इन रस्म रिवाज का अपना ही एक आनंद होता है जिसमें हल्दी, संगीत, मेहंदी ऐसे है जिसको लेकर बहुत सी तैयारी की जाती है। लेकिन इन दिनों विवाह में होने वाले रस्मों ने आडंबर और फूहड़ता का चोला ओढ़ लिया है । लोगों की माने तो अब रीति रिवाज पर कम ध्यान दिया जाता है दिखावा इतना बढ़ गया है कि यह रस्म नहीं मौज-मस्ती के पल बन गए है | अब हल्दी जैसे पवित्र रस्म में शराब,कोल्ड ड्रिंक, सॉस जैसे सामग्रियों को दूल्हा दुल्हन के ऊपर उड़ेल दिया जाता है। विवाह के छोटे-छोटे रस्मों में भी अब मद्यपान परोसे जाते हैं । सन्मार्ग संवाददाता ने इस विषय को लेकर लोगों से बातचीत की जिसके कुछ अंश।

हनुमान डालमिया समाजसेवी: शादी में होने वाले रस्म को महत्व देना चाहिए लेकिन अभी आधुनिकता के कारण सारे रस्म लगभग विलुप्त हो रहे हैं जो की आने वाले समय के लिए घातक है । हमें अपने रीती रिवाजों का बचा कर रखना है इन विलुप्त होते रस्मों को समान ोे बढ़ावा देना होगा |

विजय मुनी व्यापारी: शादी में मौज मस्ती के पल भी होने चाहिए लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि पूरे रस्म को ही अनदेखा किया जाए | लेकिन अब रस्म के साथ ही मौज मस्ती की जाती है जो कि नहीं होना चाहिए | रस्में है तो हमारी पहचान है दोनों को मिलाना उचित नहीं है |

श्रुति अग्रवाल लेखिका: विवाह के कई रस्मों में नशीले पदार्थों का सेवन बंद होना बहुत जरूरी है क्योंकि जिसके कारण ही अब रस्म रिवाज में ध्यान नहीं दिया जाता है और जैसे हमने अपने बड़ों से रीती रिवाजों को सीखा उसी तरह आने वाली पीढ़ी को भी रस्मों की जानकारी होनी चाहिए |

संगीता गोयल समाजसेवी: विवाह में होने वाले रस्म को आधुनिकता से मिलना सही नहीं, क्योंकि रस्म और आधुनिकता अपनी-अपनी जगह है | हम जितना अपनी सभ्यता संस्कृति को भूलेंगे इससे नई पीढ़ी को नुकसान होगा | हमे अपने से छोटो को यह बताना होगा इन रस्मों का महत्व क्या है |

जितेंद्र सार्रीन समाजसेवी: अभी ज्यादातर लोग दिखावा करने पर उतारू हो गए हैं विवाह में इष्ट देवी देवताओं की पूजा होती है उसी अनुसार ही रस्मों को महत्व देना जरूरी है वरना आडंबर के कारण पतन तैय है। जितना हो सके विवाह जैसे समारोह से दिखावा को दूर रखे सादगी अपनाएं |

मनोज ओझा व्यापारी: वैवाहिक कार्यक्रमों में होने वाले रस्मों में ड्रेस कोड का ट्रेंड चल रहा है और यह जरूरतमंद परिवारों में अक्सर भी डाल रहा है | यह ट्रेंड कोढ़ में खाज की तरह फैलकर हमारे संस्कृति को नष्ट कर रहा है। लोगों को ऐसे दिखावे के ट्रेंड को बढ़ावा नहीं देना चाहिए |

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