सिख समुदाय के नगर कीर्तन से शहर हुआ भक्तिमय

नगर भ्रमण कीर्तन में शामिल भक्त
नगर भ्रमण कीर्तन में शामिल भक्त
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सिलीगुड़ी: सिख समुदाय का नगर कीर्तन एक भक्तिमय जुलूस है जहां श्री गुरु ग्रंथ साहिब को एक झांकी में रखकर, बैंड-बाजे और शबद कीर्तन गाते हुए शहर की गलियों में निकाला जाता |

'सतनाम वाहेगुरु सब पर अपनी मेहर बनाए रखना' इसी दुआ के सिख समुदाय के लोग भव्य नगर कीर्तन में शामिल हुए | यह नगर कीर्तन अत्यंत महत्वपूर्ण धार्मिक आयोजन होता है | जिसमें शांति, एकता और सिख धर्म की मूल्य को दर्शाया जाता है | यह भव्य कीर्तन सेवक रोड गुरुद्वारा से निकाला गया और इस नगर कीर्तन में शामिल सभी भक्तों पर फूलों की बौछार की गई और कई सेवा कार्य भी किए गए | इस दौरान सड़क पर थोड़ी बहुत जाम की स्थिति बन गई | वहीं ट्रैफिक पुलिस की सूझ-बूझ ने यातायात को नियंत्रण में रखा | इस कीर्तन की भव्यता और भक्तिमय माहौल को देखकर अन्य समुदाय के लोग भी इस में शामिल हुए | सड़क के दोनों किनारों पर भारी तादाद में लोगों की भीड़ इकट्ठा होकर इस भव्य कीर्तन को निहारती रही | इस दौरान शबद कीर्तन (धार्मिक संगीत) और 'जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल' जैसे नारे लगाए गए | वहीं सिख समुदाय के भक्त रास्ते को साफ करते रहे थे | इस नगर कीर्तन का उद्देश्य गुरुओं के जीवन और शिक्षाओं का सम्मान करना, सीख विरासत को मजबूत करना और सामुदायिक सद्भाव बढ़ाना है | श्री गुरु ग्रंथ साहिब को एक झांकी में रखा गया था | पंज प्यारे पारंपरिक परिधानों में आगे चल रहे थे, जो नेतृत्व के प्रतिक है |

बता दे, सिख धर्म के दसवें गुरु, गुरु गोबिन्द सिंह जी के जन्मोत्सव 'प्रकाश पर्व' के रूप में श्रद्धापूर्वक मनाया जाता है, जिसमें गुरुद्वारों में विशेष प्रार्थनाएं, नगर कीर्तन और लंगर आयोजित किए जाते हैं |

गुरु गोबिन्द सिंह वे एक महान दार्शनिक, प्रख्यात कवि, निडर एवं निर्भीक योद्धा, युद्ध कौशल, महान लेखक और संगीत के पारखी भी थे। उनका जन्म 1666 में पटना में हुआ । सन् 1699 ई0 में बैसाखी के दिन गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना कर पांच व्यक्तियों को अमृत चखा का ’पांच प्यारे’ बना दिए। इन पांच प्यारों में सभी वर्गो के व्यक्ति थे। इस प्रकार से उन्होंने जात-पात मिटाने के उद्देश्य से अमृत चखाया । बाद में उन्होंने स्वयं भी अमृत चखा और गोबिंद राय से गोबिंद सिंह बन गए।

गुरु गोबिंद सिंह ने एक खालसा वाणी “वाहे गुरुजी का खालसा, वाहे गुरुजी की फतेह” स्थापित की। साथ ही उन्होंने आदर्शात्मक जीवन जीने और स्वयं पर नियंत्रण के लिए खालसा के पांच मूल सिद्धांतों की भी स्थापना की। जिनमें केस, कंघा, कड़ा, कछ, किरपाण शामिल है। ये सिद्धान्त चरित्रनिर्माण के मार्ग थे।

सिख समुदाय आज भी उनके दिखाए हुए मार्ग का अनुसरण करते है | सिलीगुड़ी में सिख समुदाय द्वारा नगर कीर्तन ने शहर के मुख्य मार्गों की परिक्रमा की | संक्षेप में कहे तो, सिलीगुड़ी में सिख समुदाय का नगर कीर्तन एक भव्य धार्मिक जुलूस है जो सिख धर्म की समृद्ध परंपराओं और मूल्यों को प्रदर्शित करता है और शहर के माहौल को भक्तिमय बना देता है।

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