NCERT: 12वीं की किताब में बदल गया अयोध्या का इतिहास, हटाया गया बाबरी मस्जिद का जिक्र

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नई दिल्ली: भगवान राम से लेकर श्री राम तक, बाबरी मस्जिद, रथयात्रा, कारसेवा और विध्वंस के बाद की हिंसा की जानकारी को NCERT की नई किताब से हटा दिया गया है। 12वीं क्लास की पॉलिटिकल साइंस के सिलेबस में कई बड़े बदलाव करते हुए बाबरी मस्जिद की जानकारी हटाने और ‘अयोध्या विवाद’ को ‘अयोध्या मुद्दा’ लिखने की बात सामने आई है। बाबरी मस्जिद नाम के बजाय किताब से इसे केवल “तीन-गुंबद संरचना” के रूप में पढ़ाया जाएगा। इसके अलावा, अयोध्या पर अध्याय को चार पेजों से घटाकर दो पेज कर दिया गया है।

NCERT 12वीं राजनीतिक विज्ञान की किताब में ‘भगवान राम का जन्म स्थान माना जाता है’ से संदर्भ बदलकर ‘इसमें श्री राम के जन्म स्थान, सबसे पवित्र धार्मिक स्थलों में से एक और इसके कानूनी स्वामित्व के बारे में विवाद शामिल थे’ कर दिया गया है। यह पहली बार है कि अयोध्या राम जन्मभूमि का संदर्भ लाया गया है क्योंकि ‘भगवान राम’ को बदलकर ‘श्री राम’ कर दिया गया है। यह 2014 के बाद से एनसीईआरटी पुस्तक का चौथा संशोधन है, जो नवीनतम राजनीतिक विकास के आधार पर अपडेट को दर्शाता है। नई किताब 2024-25 शैक्षणिक सत्र के लिए लागू की जाएगी, जिसका उद्देश्य शैक्षिक सामग्री को समकालीन राजनीतिक घटनाओं के साथ जोड़ना है।

 

NCERT ने क्या-क्या बदला?

लगभग 2 पेज कम करने के बाद नई बुक इस प्रकार शुरू होती है – “अयोध्या मुद्दा, दूसरे महत्वपूर्ण विकास के रूप में, विभिन्न हितधारकों के विभिन्न दृष्टिकोणों से संबंधित देश के सामाजिक-सांस्कृतिक और राजनीतिक इतिहास में गहराई से निहित था। इसमें श्री राम के जन्म स्थान, सबसे पवित्र धार्मिक स्थलों में से एक और इसके कानूनी स्वामित्व के बारे में विवाद शामिल थे। अयोध्या राम जन्मभूमि स्थल के महत्व का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 1528 से शुरू होने वाला 500 साल लंबा इतिहास कई संघर्षों से चिह्नित है, जिसका विवरण लखनऊ, बाराबंकी और फैजाबाद जिला गजेटियर में भी दर्ज है। श्री राम के जन्म स्थान पर 1528 में तीन गुंबद वाली संरचना का निर्माण किया गया था, लेकिन संरचना के आंतरिक और बाहरी हिस्सों में हिंदू प्रतीकों और अवशेषों का स्पष्ट प्रदर्शन था। इसलिए अयोध्या राम जन्मभूमि मुद्दा अपनी प्राचीन सभ्यता में राष्ट्रीय गौरव से जुड़ गया। वर्षों से यह मुद्दा एक लंबी कानूनी लड़ाई में बदल गया, जिसके कारण अदालती कार्यवाही शुरू होने के कारण 1949 में ढांचे को सील कर दिया गया।”

नई किताब में आगे लिखा है – “1986 में, तीन गुंबद वाले ढांचे को लेकर स्थिति ने एक महत्वपूर्ण मोड़ ले लिया, जब फैजाबाद (अब अयोध्या) जिला कोर्ट ने ढांचे को खोलने का फैसला सुनाया, जिससे लोगों को वहां पूजा करने की अनुमति मिल सके। यह विवाद कई दशकों से चल रहा था क्योंकि ऐसा माना जाता था कि तीन गुंबद वाला ढांचा श्री राम के जन्मस्थान पर एक मंदिर को गिराकर बनाया गया था। हालांकि, मंदिर के लिए शिलान्यास किया गया था, लेकिन आगे निर्माण पर रोक लगी रही। हिंदू समुदाय को लगा कि श्री राम के जन्म स्थान से संबंधित उनकी चिंताओं को नजरअंदाज कर दिया गया 1992 में ढांचे के विध्वंस के बाद कुछ आलोचकों ने तर्क दिया कि इसने भारतीय लोकतंत्र के सिद्धांतों के लिए एक बड़ी चुनौती पेश की।” नई पाठ्यपुस्तक से भारतीय जनता पार्टी (BJP) की रथयात्रा का उल्लेख हटा दिया गया।

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पुरानी किताब की शुरुआत इस प्रकार हुई थी – “दूसरा घटनाक्रम फरवरी 1986 में फैजाबाद जिला अदालत का आदेश था। अदालत ने बाबरी मस्जिद परिसर का ताला खोलने का आदेश दिया ताकि हिंदू उस स्थल पर प्रार्थना कर सकें जिसे मंदिर माना जाता है। अयोध्या में बाबरी मस्जिद के नाम से मशहूर कई दशकों से विवाद चल रहा है। बाबरी मस्जिद अयोध्या में 16वीं सदी की मस्जिद थी और इसे मुगल बादशाह बाबर के जनरल मीर बाकी ने बनवाया था। कुछ हिंदुओं का मानना ​​है कि इसे भगवान राम के मंदिर को तोड़कर बनाया गया था, जिसे उनका जन्मस्थान माना जाता है। यह विवाद एक तरह का अदालती मामला है जो कई दशकों से जारी है। 1940 के दशक में मस्जिद को बंद कर दिया गया था क्योंकि मामला अदालत में था।” “बाबरी मस्जिद के ताले खुलते ही दोनों तरफ से लामबंदी शुरू हो गई। कई हिंदू और मुस्लिम संगठनों ने इस सवाल पर अपने समुदायों को लामबंद करना शुरू कर दिया। भाजपा ने इस मुद्दे को अपना मुख्य चुनावी और राजनीतिक मुद्दा बनाया। आरएसएस और विश्व हिंदू परिषद जैसे कई अन्य संगठनों के साथ मिलकर इसने कई प्रतीकात्मक और लामबंदी कार्यक्रम आयोजित किए। इस बड़े पैमाने पर लामबंदी के कारण माहौल में उथल-पुथल मच गई और सांप्रदायिक हिंसा की कई घटनाएं हुईं। जनता का समर्थन जुटाने के लिए भाजपा ने गुजरात के सोमनाथ से यूपी के अयोध्या तक रथयात्रा नामक एक विशाल मार्च निकाला।”

नई किताब में कारसेवा का संदर्भ हटाया गया

नई किताब में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बारे में बताते हुए लिखा गया है, “यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि किसी भी समाज में संघर्ष होने ही हैं। हालांकि, एक बहु-धार्मिक और बहु-सांस्कृतिक लोकतांत्रिक समाज में, इन संघर्षों को आमतौर पर कानून की उचित प्रक्रिया के बाद हल किया जाता है। अदालती सुनवाई, मध्यस्थता के प्रयास, लोकप्रिय आंदोलनों सहित कई लोकतांत्रिक और कानूनी प्रक्रियाओं के माध्यम से और अंत में 9 नवंबर, 2019 को सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ के 5-0 के फैसले के साथ, अयोध्या मुद्दे का समाधान हुआ। इस फैसले ने विवाद में शामिल विभिन्न हितधारकों के परस्पर विरोधी हितों को समेटने की कोशिश की।”

आगे लिखा है, “फैसले में विवादित स्थल को राम मंदिर निर्माण के लिए श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को आवंटित किया गया और संबंधित सरकार को सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को मस्जिद के निर्माण के लिए उपयुक्त स्थल आवंटित करने का निर्देश दिया इस मुद्दे को पुरातात्विक उत्खनन और ऐतिहासिक अभिलेखों जैसे साक्ष्यों के आधार पर कानूनी प्रक्रिया के तहत सुलझाया गया। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का समाज ने बड़े पैमाने पर जश्न मनाया। यह एक संवेदनशील मुद्दे पर आम सहमति बनाने का एक उत्कृष्ट उदाहरण है जो लोकतांत्रिक लोकाचार की परिपक्वता को दर्शाता है जो भारत में सभ्यतागत रूप से निहित है।”

पुरानी किताब में कारसेवा का संदर्भ

वहीं पुरानी किताब में दिसंबर 1992 में कारसेवा की जानकारी दी गई थी, जो इस तरह थी- दिसंबर 1992 में राम मंदिर निर्माण का समर्थन करने वाले संगठनों ने राम मंदिर निर्माण के लिए कारसेवा, अर्थात् भक्तों द्वारा स्वैच्छिक सेवा का आयोजन किया था। पूरे देश में, विशेषकर अयोध्या में स्थिति तनावपूर्ण हो गई थी। सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को आदेश दिया था कि वह विवादित स्थल की देखभाल करे और उसे कोई खतरा न हो। हालांकि, 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में देश भर से हजारों लोग एकत्र हुए और मस्जिद को ध्वस्त कर दिया। इस खबर के कारण देश के कई हिस्सों में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच दंगे हुए। मुंबई में हिंसा 1993 में फिर भड़की और दो सप्ताह से अधिक समय तक जारी रही। अयोध्या की घटनाओं के कारण कई अन्य घटनाक्रम हुए। भाजपा की सत्तारूढ़ पार्टी वाली राज्य सरकार को केंद्र ने बर्खास्त कर दिया। इसके साथ ही जिन अन्य राज्यों में भाजपा सत्ता में थी, वहां भी राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने आधिकारिक तौर पर अयोध्या में हुई घटनाओं पर खेद व्यक्त किया है। केंद्र सरकार ने मस्जिद के विध्वंस के लिए जिम्मेदार परिस्थितियों की जांच के लिए एक आयोग का गठन किया है।”

सुप्रीम कोर्ट का पुराना फैसला हटाकर नया लिखा

नई किताब में 1994 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को साल 2019 में आए सुप्रीम कोर्ट के नए फैसले से बदल दिया गया है। पहले लिखा गया था, “सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश वेंकटचलैया और तत्कालीन न्यायमूर्ति जी एन रे ने उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की विफलता पर एक फैसले में टिप्पणियां की थी कि राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद ढांचे की रक्षा के लिए राष्ट्रीय एकता परिषद के समक्ष उन्होंने जो वादा किया था, उसे पूरा करने में विफल रहे, मोहम्मद असलम बनाम भारत संघ, 24 अक्टूबर 1994 कल्याण सिंह को अदालत की अवमानना ​​के अपराध के लिए दोषी ठहराए जाने पर एक दिन के सांकेतिक कारावास की सजा सुनाई गई थी क्योंकि अवमानना ​​बड़े मुद्दों को उठाती है जो हमारे राष्ट्र के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने की नींव को प्रभावित करती है।”

दो नए अंश इस प्रकार हैं-

संविधान के मूल में समानता के प्रति प्रतिबद्धता है जिसे कानून के शासन द्वारा बनाए रखा और लागू किया जाता है। हमारे संविधान के तहत, सभी धर्मों, विश्वासों और पंथों के नागरिक जो दैवीय सिद्धता चाहते हैं, वे कानून के अधीन हैं और कानून के समक्ष समान हैं। इस न्यायालय के प्रत्येक न्यायाधीश को न केवल संविधान और उसके मूल्यों को बनाए रखने का कार्य सौंपा गया है, बल्कि उन्हें इसकी शपथ भी दिलाई गई है। संविधान एक धर्म और दूसरे धर्म की आस्था और विश्वास के बीच कोई अंतर नहीं करता। सभी प्रकार की आस्था, पूजा और प्रार्थना समान हैं।”

इस प्रकार यह निष्कर्ष निकाला गया है कि मस्जिद के निर्माण से पहले और उसके बाद से हिंदुओं की आस्था और विश्वास हमेशा से यह रहा है कि भगवान राम का जन्मस्थान ही वह स्थान है जहां बाबरी मस्जिद का निर्माण किया गया है, जो आस्था और विश्वास ऊपर चर्चा किए गए दस्तावेजी और मौखिक साक्ष्य से साबित होता है।

किताब में नए बदलावों पर NCERT के निदेशक क्या कहा?

NCERT के निदेशक दिनेश सकलानी ने से जब किताब में नए बदलावों को लेकर कई सवाल किए गए तो उन्होंने इंडिया टुडे से कहा कि किताबों का भगवाकरण करने का कोई प्रयास नहीं है, भगवाकरण क्या है? इसका क्या मतलब है? जब हम किताबें पब्लिश करते हैं तो हम किसी विचारधारा का पालन नहीं करते हैं। एक्सपर्ट्स ने वही किया है जो उन्हें सिलेबस के लिए सही लगा।

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