

प्रगति, सन्मार्ग संवाददाता
कोलकाता : 2015 में उच्च माध्यमिक के बदले हुए सिलेबस में ‘प्रोजेक्ट वर्क’ को हैंड्स-ऑन लर्निंग देने के मकसद से जोड़ा गया था। उस साल बंगाली, इंग्लिश, फिलॉसफी, हिस्ट्री और कुछ दूसरे सब्जेक्ट्स में प्रोजेक्ट्स शुरू किए गए थे। अब, क्लास 12 के 64 में से 45 सब्जेक्ट्स में प्रोजेक्ट, इंटरनल असेसमेंट के आधार पर 20 मार्क्स दिए जाते हैं। फिजिक्स, केमिस्ट्री, बायोलॉजी जैसे कुछ सब्जेक्ट्स में 30 मार्क्स दिए जाते हैं। बताया जा रहा है कि जो स्टूडेंट्स दिन-ब-दिन स्कूल से एब्सेंट रहते हैं, उन्हें बहुत कम मेहनत में प्रोजेक्ट में 20 में से 20 मार्क्स मिल रहे हैं। कई स्टूडेंट्स खुद प्रोजेक्ट वर्क करने के बजाय या तो दूसरों से करवाते हैं या पैसे देकर खरीदते हैं। इनमें ऐसे स्टूडेंट्स भी हैं, जो पूरे साल क्लास से एब्सेंट रहने के बावजूद इसमें पूरे मार्क्स ला रहे हैं। जानकारी के मुताबिक जिन स्टूडेंट्स को थ्योरी में 80 में से 8 से 10 नंबर मिलते हैं, उन्हें उसी सब्जेक्ट के प्रोजेक्ट में 20 में से 20 नंबर मिलते हैं। इस बारे में उच्च माध्यमिक शिक्षा संसद के प्रेसिडेंट चिरंजीव भट्टाचार्य ने कहा कि कई स्कूल बिना मेरिट का सही मूल्यांकन किए बड़े पैमाने पर प्रोजेक्ट्स और प्रैक्टिकल में पूरे नंबर दे रहे हैं। हम इस मामले पर नजर रख रहे हैं। एक स्कूल के हेडमास्टर ने कहा, ‘संसद हमेशा स्टूडेंट्स के हितों की रक्षा के लिए काम करती है। प्रोजेक्ट में मार्क्स पाने के लिए स्कूलों में 11 और 12 में मिनिमम अटेंडेंस पर ज़ोर दिया जा सकता है।