खुश रहना ही जिन्दगी की सौगात है

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खुश रहना ही जिन्दगी की सौगात हैखुश रहना ही जिन्दगी की सौगात है
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जिन्दगी को किस तरह जीया जाये, इसके लिए कोई फार्मूला बनाना तो संभव नहीं, क्योंकि हर व्यक्ति की अपनी जिम्मेदारी और अपना संघर्ष होता है और उसी के मुताबिक उसे जीवन जीना होता है परन्तु यह भी सच है कि जिन्दगी की सार्थकता इस बात में है कि आपने कितना समय खुश रहकर बिताया।

यह पैसों पर निर्भर नहीं करता। यह इस बात पर निर्भर करता है कि हमारा खुशियों को ढूंढने और महसूस करने का नजरिया कैसा है? ‘काश ऐसा होता तो वैसा होता’ जैसे दृष्टिकोण रखने से बाद में सिर्फ एक अफसोस रह जाता है कि ‘काश जिन्दगी ने तुम्हें खुशनुमा बनाया होता।’ सही समय आज ही है। अपनी बंद मुट्ठी को धीरे-धीरे खोलिये, खुशियों को आजाद कीजिए और अपने जीवन के एक-एक पल को इन खुशियों के साथ जीने की कोशिश कीजिए।

‘मुझे हर हाल में खुश रहना है’ इस मूलमंत्र को अपनी आदत में शामिल करें। सबसे पहले धीरे से मुस्कुरायें। फिर थोड़ा और मुस्कुरायें। धीरे-धीरे मुस्कुराहट को हंसी में तब्दील करें। फिर खिलखिला कर हंसें। यह कारगर उपाय है डिप्रेशन, उदासी, चिंता से निजात पाने का।

सबसे पहले फुर्सत का समय चुनें। (जवाब यह नहीं होना चाहिए कि काम से फुर्सत ही नहीं मिलती।) बिना किसी वजह से हंसना शुरू कीजिए, खुल कर हंसिये बिना किसी संकोच के। धीरे-धीरे पंजों के बल उछलना शुरू कीजिए। हंसते रहिए, लगातार कम से कम 5 मिनट। धीरे-धीरे समय बढ़ायें।

बैठ जाइये। श्वास को नियंत्रित कीजिए। साथ ही स्वयं से वादा कीजिए कि ‘मैं आज पूरा दिन खुश रहूंगा‘ और इसे प्रतिदिन दिनचर्या में शामिल करें। यकीन मानिये 5 मिनट का हंसना आपको पूरे दिन के लिए रीचार्ज करेगा।

जीवन के गमों को कम करने या खुशी हासिल करने के लिए ईश्वर पर भरोसा आवश्यक है। कभी-कभी तो ऐसा होता है कि हम अपने आप को किसी समस्या के समाधान में सक्षम नहीं पाते, ऐसे में भविष्य की चिंता ईश्वर पर छोड़ वर्तमान को हम चिंतामुक्त कर सकते हैं।

ज्यादा नियमों में न बंधे। नियम अनुशासन, व्यवस्थित जीवन के लिए आवश्यक है परन्तु यह याद रखें कि नियमों का पालन इसलिए करना है कि बेहतर जिदंगी जीनी है। थोडे़ लचीले नियम बनायें, अपनी सहूलियत को ध्यान में रखें।

कभी-कभी ऐसा भी होता है कि जिंदगी में हम जो चाहते हैं हमेशा वैसा हो, यह जरूरी नहीं। कभी-कभी ऐसा भी हो जाता है जिसकी कल्पना हमने नहीं की होती। अपने साथ हुए दुर्व्यवहार, धोखे, छलावे इत्यादि को विसर्जित करें तथा स्वयं को दृढ़ रखें । थोड़े समय के लिए भावनात्मक दिक्कतें आयेंगी पर आप जैसा खुशनुमा व्यक्ति उन परेशानियों से उबर आयेगा, यह यकीन रखें।

अंदाज बदलें। अपनों से गिले शिकवे करना हमारा हक है पर इस बात का भी ध्यान रखना जरूरी है कि जिससे हम अपनी बात कह भी दें और किसी का दिल भी दुखी न हो। मधुर स्मृतियों को याद रखें। जीवन की मधुर स्मृतियों पर धूल न जमने दें। कभी-कभी बचपन की, कॉलेज की मित्रों की, जीवन साथी की मधुर स्मृतियों को, वक्त-बेवक्त ताजा करते हुए हंसने हंसाने के मौके हाथ से न जाने दें।

पल-पल की खुशी को सहेज कर रखें। इससे बड़ा आत्मिक सुख मिलता है। खुश रहने के लिए बदलाव जरूरी है। अपनी रूचियों को बदलें। तलाश कीजिए अपने अंदर और आसपास कहां बदलाव या नवीनता लायी जा सकती है? कुल मिलाकर किसी भी रोशनदान से, खिड़की से, दरवाजे से दस्तक दे रही खुशी को तुरंत इजाजत दें मन के भीतर घुसने की। यह जीवन ईश्वर का बख्शा नायाब तोहफा है तो क्यों न इसे खुशी के साथ जीया जाये।

खुशियां कभी नसीब से मिलती हैं तो कभी हाथ बढ़ाकर पकड़नी पड़ती है। यदि जीवन का हर सफर हंस कर काटा जाये तो राह आसान हो जाती है और मंजिल काफी करीब हो जाती हैं। साथ ही खुशियों से बीमारी से भी सामना करने की शक्ति बढ़ जाती हैं। हंसते-हंसते राह भी आसानी से कट जाते हैं और दुख की घड़ियां खुशी में तब्दील हो जाती हैं।

नर्मदेश्वर प्रसाद चौधरी (स्वास्थ्य दर्पण)

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