

तेज-तेज खर्राटे भरना और दिन के समय सोना भी एक बीमारी है और खासकर 45 साल से कम उम्र के लोग अगर इसके आदी हो जायें तो उन्हें सोते समय कई बार सांस रूक जाने का रोग लग सकता है और आने वाले समय में उन्हें उच्च रक्तचाप और हृदय संबंधी आघातों का सामना करना पड़ सकता है।
फिलाडेलफिया के हर्शे शहर में एक मेडिकल कालेज के शोधकर्ताओं ने अपने पांच साल के शोध में यह निष्कर्ष निकालते हुए पूर्व की तमाम धारणाओं को चुनौती दी है जिसमें अभी तक यह माना जाता था कि सांस में रुकावट आने की बीमारी केवल वृद्धों को ही होती है।
शोधकर्ताओं ने 4365 पुरूषों से फोन पर सम्पर्क किया और उनमें से ऐसे 750 लोगों को परीक्षण के लिए चुना जो खर्राटे लेने और दिन के समय सोते रहने की आदत से पीडि़त थे। शोधकर्ताओं के अनुसार सांस में रूकावट की बीमारी से पीड़ित जितने भी रोगी पाये गये, वे सभी युवा वर्ग के ही थे अर्थात् 45 साल की आयु से कम उम्र के थे।
इन सभी लोगों में आक्सीजन ग्रहण करने की क्षमता काफी निम्न स्तर की थी अर्थात् सोने के बाद वे पर्याप्त मात्रा में आक्सीजन नहीं ले पाते थे। शोधकर्ताओं ने इस वजह से इन लोगों में उच्च रक्तचाप और हृदय पर जोर पड़ने के खतरे की प्रबल संभावना जाहिर की है। उनके अनुसार ऐसे लोगों का इलाज होना अविलम्ब जरूरी है।
शोधकर्ताओं ने बताया कि ऐसे रोगी प्रत्येक रात को कई बार सोते हुए सांस नहीं ले पाते हैं। अमेरिका में 18 लाख और भारत में करीब तीन लाख लोग इस महारोग से पीड़ित हैं।
उल्लेखनीय है कि इस रोग में रोगी कम से कम 20 सेकेंड तक सांस नहीं ले पाता और सोने के प्रत्येक एक घण्टे में वह कई बार सांस न ले पाने की शिकायत करता है। सांस रूकने के बाद वह फिर जब सांस लेता है तो तेज खर्राटों की आवाजें आती हैं। एक महत्त्वपूर्ण सर्वेक्षण के अनुसार सांस में रूकावट आने के कारण हुए हृदय पर आघातों से प्रत्येक साल करीब 50 हजार लोगों की असमय मृत्यु हो जाती है।
चिकित्सकों की सलाह है कि इस तरह के रोगों से ग्रस्त व्यक्ति को दिन में नहीं सोना चाहिए तथा प्रत्येक सुबह तड़के उठकर करीब आधा किलोमीटर की दौड़ खुले एवं स्वच्छ वातावरण में लगानी चाहिए, साथ ही साथ खाने की चीजों में कार्बोहाइड्रेट, वसा एवं अधिक प्रोटीनयुक्त भोजन से परहेज करने के साथ में चाय-और काफी से जहां तक संभव हो सके, बचना चाहिए।
दुर्गा प्रसाद शुक्ल (स्वास्थ्य दर्पण)