

मंजुमेनोपॉज का अर्थ है अब स्त्री का शरीर गर्भ धारण के लायक नहीं रहा है। वैसे भी 40-50 बरस के बाद संतानोत्पत्ति की जरूरत भी क्या है। संभवतः प्रकृति खूब जानती है कि प्रौढ़ता में पैदा की गई सन्तान का लालन-पालन अब समस्या ही हो जायेगा। इस मेनोपॉज काल में स्त्री के डिम्बाशय में एस्ट्रोजन नामक हारमोन का उत्पादन बंद हो जाता है। यह हारमोन डिम्बाशय में डिब्बों को परिपक्व करता है तथा प्रत्येक माह डिम्ब को धारण करने के लिए बच्चेदानी को तैयार करता है।
जब किसी माह डिम्ब निषेचित नहीं होता, तब गर्भ नहीं ठहरता और बच्चेदानी की सतह नष्ट होकर योनि द्वार से मासिक के रक्त के रूप में निकल जाती है। प्रत्येक माह स्त्रिायों को होने वाला रक्तस्राव इसी कारण होता है। पुरुष संसर्ग से जब शुक्राणु व डिम्ब का मिलन हो जाता है, तब गर्भ ठहरता है व इसकी पहली पहचान के रूप में मासिक चक्र रुक जाता है।
मेनोपॉज का समय अलग-अलग
वैसे प्रत्येक महिला में मेनोपॉज का समय ठीक उसी तरह अलग-अलग होता है जैसे किसी किशोरी में मासिक चक्र का शुरू होना भिन्न-भिन्न उम्र में होता है। भारत में गर्म जलवायु के कारण किशोरियों का मासिक चक्र 12-13 साल की उम्र से लेकर 14-15 साल तक कभी भी शुरू हो सकता है। बच्ची का स्वास्थ्य, उठान व वंशानुक्रम भी असर डालता है।
इसी तरह मेनोपॉज भी 40 साल की आयु से लेकर 52-54 साल तक हो ही जाती है। मासिक चक्र यकायक बन्द नहीं होता वरन इसकी मात्रा व आवृत्ति घटती व बढ़ती है व मासिक चक्र अनियमित हो जाता हैं। यदि कभी बहुत ज्यादा स्राव हो या मासिक यकायक रूक जाये या 40 की आयु से पूर्व ही मासिक बन्द हो जाये, तब डॉक्टरी सलाह लेनी जरूरी है। ये लक्षण भीतरी किसी भी गड़बड़ी या गर्भाशय में उपजे किसी नये लक्षण का संकेत हो सकते हैं।
सकारात्मक सोच जरुरी
यदि मन में सकारात्मक सोच रखी जाये तो मेनोपॉज काल में गर्भधारण का भय खत्म हो जाने से ज्यादा सुख से दांपत्य कर्म का निर्वाह हो सकता है। माइग्रेन की तकलीफ जिसके बारे में चिकित्सकों का मानना है कि यह स्त्रियों में मासिक चक्र के साथ शुरू होती है, मेनोपॉज काल में कम होते-होते खत्म ही हो जाती है।
मेनोपॉज काल में कभी-कभी पसीना आना, गर्मी लगना, कब्ज रहना, जी घबराना या रक्तचाप बढ़ जाना की शिकायतें हो जाती हैं पर ये सब तात्कालिक लक्षणों के रूप में ही उभरती है व मासिक के पूरी तरह बन्द हो जाने पर स्वतः ही खत्म हो जाती है। इनसे घबराने की जरूरत नहीं। यदि स्त्री को पता हो कि ये लक्षण हारमोन्स परिवर्तन के कारण हैं तो वह इसे सहज ले पाती है।
इस समय संतुलित पर पोषक व पाचक आहार लेना, व्यायाम करना या घूमने जाना जरूरी है। व्यायाम से हड्डियों की होने वाली तकलीफ दूर होगी, शरीर का रक्त संचार ठीक रहेगा व वजन नहीं बढ़ेगा। प्रायः मेनोपॉजकाल में गिरे पड़े रहने से व ज्यादा खाने से बदन दुहरा होने लगता है।
नियमित व्यायाम आवश्यक
यदि नियमित व्यायाम किया जाये व कम और संतुलित आहार लिया जाये तो बदन सुगठित रहेगा व चयापचय दर बढ़ने से भूख भी खुलकर लगेगी। अतिरिक्त कैलोरी की उचित खपत होगी व शरीर की चर्बी ढीली पड़ कर झूलेगी नहीं। बढ़ी उम्र में भी शरीर की त्वचा युवा व जवान बनी रहेगी। तनाव से दूर रह कर मन को किसी भी मनभाती रुचि, शौक में लगा कर मेनोपॉजकाल की छिटपुट समस्याओं को बखूबी नजरअंदाज किया जा सकता है।
किसी भी स्त्री के जीवन का यह सर्वोत्तम काल है। अब न गर्भधारण का भय है न ही गृहस्थी के जमावड़े की चिन्ता है। बच्चे बड़े हो जाते हैं व गृहस्थी पूरी तौर पर बस कर व्यवस्थित हो जाती है। के संग हंसने, बतियाने व वक्त गुजारने के पर्याप्त मौके मिलते हैं जिनका लाभ कोई भी स्त्री उठाकर इस काल को जीवन का स्वर्णिम काल बना सकती है। इस काल को जीवन का स्वर्णिम काल बना सकती है।
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