82 वर्षीय महिला को हाई-रिस्क सर्जरी ने दी नई जिंदगी

बैलून वॉल्वुलोप्लास्टी सर्जरी के 36 घंटे बाद ही कर दिया गया डिस्चार्ज
सांकेतिक चित्र
सांकेतिक चित्रPaul Adams
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कोलकाता : उम्र के 82वें पड़ाव पर जहां अधिकांश लोग आराम और शांति की जिंदगी जीने लगते हैं, वहीं बंगाल की एक बुज़ुर्ग महिला को अचानक जिंदगी से दो-दो हाथ करने पड़े। एक समय तक सक्रिय और आत्मनिर्भर रही यह महिला अचानक कुछ कदम चलने पर ही बुरी तरह हांफने लगतीं। सीने में दर्द इतना बढ़ गया था कि उन्हें आराम करते समय भी परेशानी होती थी। परिवार ने उन्हें तुरंत बीएम बिड़ला हार्ट हॉस्पिटल में भर्ती कराया। यहां उनकी देखरेख की जिम्मेदारी अनुभवी हृदय रोग विशेषज्ञ और टानी (ट्रांसकैथेटर एओर्टिक वाल्व इम्प्लांटेशन) विभाग के प्रमुख डॉ. जॉय सोम ने संभाली। जांच में सामने आया कि महिला दो गंभीर हृदय रोगों हाइली नैरोड एओर्टिक वाल्व और लेफ्ट मेन कोरोनरी आर्टरी में खतरनाक कैल्शियम जमाव के कारण सीरियस ऑब्स्ट्रक्शन से जूझ रही थीं। डॉ. सोम ने बताया कि ट्रेडिशनल ओपन हार्ट सर्जरी, जैसे सर्जिकल एऑर्टिक वॉल्व रिप्लेसमेंट और कोरोनरी आर्टरी बायपास सर्जरी, उनकी उम्र और कमजोरी के कारण संभव नहीं थी। यहां तक कि अपेक्षाकृत सुरक्षित मानी जाने वाली ट्रांसकैथेटर एऑर्टिक वॉल्व इम्प्लांटेशन भी उनके लिए उच्च जोखिम वाली प्रक्रिया थी।

हिम्मत और उम्मीद ने किया चमत्कार

परिवार के सहयोग और मरीज की इच्छाशक्ति से प्रेरित होकर डॉक्टरों की टीम ने इलाज का निर्णय लिया। सबसे पहले एक इमरजेंसी बैलून वॉल्वुलोप्लास्टी की गई, जिसमें वाल्व को अस्थायी रूप से खोलने के लिए एक गुब्बारा डाला गया। इसके बाद लेफ्ट मेन कोरोनरी आर्टरी में जमे कैल्शियम को हटाने के लिए रोटेशनल एथरेक्टॉमी की गई और स्टेंटिंग द्वारा रक्त प्रवाह को बहाल किया गया। जब मरीज की स्थिति थोड़ी स्थिर हुई, तो अंतिम चरण में उनकी कंप्रेस्ड एऑर्टिक वाल्व को टावी प्रक्रिया के जरिए ग्रोइन से एक छोटे छेद के माध्यम से सफलतापूर्वक बदल दिया गया। खास बात यह रही कि सभी प्रक्रियाएं लोकल एनेस्थीसिया के तहत की गई और मरीज पूरे समय होश में थीं।

36 घंटे में डिस्चार्ज, कुछ ही दिनों में सामान्य जीवन में वापसी

प्रक्रिया के कुछ ही घंटों में वह वार्ड में टहलने लगीं और 36 घंटे में घर लौट गईं। कुछ ही दिनों में वह फिर से मुस्कुराती और आत्मविश्वास से भरपूर नजर आईं। डॉ. सोम ने बताया, "मरीज ने कभी खुद डॉक्टर बनने का सपना देखा था, लेकिन परिस्थितिवश नहीं बन सकीं। अब वह अपनी पोती को डॉक्टर बनते देखने की आस में हैं। हमारे लिए भले ही यह एक और टावी प्रक्रिया रही हो, लेकिन उनके लिए यह जिंदगी दोबारा मिलने जैसा था।” आज यह 82 वर्षीय महिला अपने रोज़मर्रा के कार्यों में सक्षम हैं और सबसे महत्वपूर्ण बात कि वह स्वस्थ हैं और उस दिन की प्रतीक्षा कर रही हैं जब उनकी पोती डॉक्टर का सफेद कोट पहनकर उनका सपना पूरा करेगी।

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