कोलकाता: भारतीय ऋषियों में मनुष्य के बुद्धि विचार को सन्मार्गगामी और स्वास्थ्य को अक्षुण्ण बनाये रखने पर सबसे अधिक ध्यान दिया। ‘अच्छा स्वास्थ्य मनुष्य की एक निधि है। इसकी रक्षा करना प्रत्येक मनुष्य का धर्म है।’
‘प्रथम सुख निरोगी काया‘। सफलता, प्रसन्नता और संपन्नता अच्छे स्वास्थ्य पर ही निर्भर है। स्वस्थ व्यक्ति ही अपना तथा दूसरों का कार्य परिश्रमपूर्वक कर सकता है तथा धरती के समस्त वैभव को भोगता है।
स्वस्थ रहने के कुछ सरल स्वर्णिम सूत्र इस प्रकार हैं जो गरीब-अमीर सभी के लिए समान रूप से ग्रहणीय हैं।
आयुर्वेद में प्रात: काल के 8 कार्य आवश्यक बताये गये हैं।
1 उषापान, 2 शौच 3, दंत धावन 4 , क्षौर कर्म (दाढ़ी बनाना) 5,तेल मालिश 6, स्नान 7,उपासना 8,योग आसन।
उषापान – रात को सोते समय तांबे के बर्तन में जल भर कर रख देना चाहिए। प्रात: उठकर मुंह साफ करके उस जल को पीना चाहिए। आयुर्वेद में प्रात: अंजली जल पीने की बात कही गयी है। उषापान से शौच खुलकर होता है, कब्ज नहीं रहता, नेत्रों की ज्योति बढ़ती है, स्वप्नदोष नहीं होता तथा शरीर के भीतरी अंगों की सफाई होती है। याद रहे, प्रात: जल पीने को ही उषापान कहते हैं, दिन में पीने को नहीं।
शौच – उषापान के बाद कुछ समय टहलकर शौच जाना चाहिए। शौच खुलकर होगा और कब्ज कभी नहीं होगा। दिन भर ताजगी बनी रहेगी।
दंतद्यावनमुख शुद्धि के लिए नीम या बबूल की दातुन का प्रयोग करें। यह दांतों तथा मसूड़ों के लिए विशेष लाभप्रद होती है। आजकल बाजार में अनेक प्रकार के टूथपेस्ट चल रहे हैं, इनसे बचें।
क्षौर कर्म – दाढ़ी बनाना क्षौर कर्म है। यह नित्य न सही तो दूसरे दिन अवश्य करें। शेव न बनाना आलसी स्वभाव होने का संकेत देता है।
तेल मालिश- तेल मालिश से नियमित व्यायाम भी हो जाता है और शरीर पुष्ट तथा कांतिवान बनता है। मालिश से शरीर में स्फूर्ति, उत्साह और शक्ति बनी रहती है। सरसों या तिल के तेल से मालिश करना अधिक लाभदायक होता है। विशेषकर शीतकाल में नियमित तेल मालिश करनी चाहिए।
स्नान
शास्त्रों में स्नान करना पुण्य कार्य माना गया है। स्नान से शरीर शुद्ध होता है। आलस्य दूर होता है तथा स्फूर्ति व ताजगी आती है। स्नान नियमित करना चाहिए।
उपासना
परमात्मा ने सुंदर संसार बनाया है। कुछ समय विश्व सृजेता का स्मरण कर उसकी शक्ति से आलोकित हों और श्रेष्ठ मार्ग पर चलने की प्रेरणा व शक्ति मांगें।
आसन
शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ रहने के लिए योग आसन व प्राणायाम करें। योग आसन व प्राणायाम व्यायाम ऋषियों द्वारा विकसित की गयी विद्या है। इससे शरीर व मन दोनों स्वस्थ रहते हैं। सक्रि यता व जागरूकता बनी रहती है।
आहार
स्वस्थ रहने के लिए सदैव शुद्ध, ताजा, सात्विक व पौष्टिक आहार ही ग्रहण करें। बासी, गरिष्ठ भोजन जैसे पूड़ी, खीर, घी, तेल पकवान, तले भुने पदार्थ, मिर्च मसालेदार व खट्टे खाद्य पदार्थों के सेवन से बचें।
गेहूं, चावल, दाल, सब्जी, दूध, दही, चना, मटर, साग, भाजी, फल जैसे-टमाटर, अमरूद, केला, संतरा, सेब, अंगूर, नाशपाती सुपाच्य, शक्तिदायक एवं पुष्टिदायक आहार हैं।
भोजन में मोटे अनाज को प्राथमिकता दें। आटे का चोकर न निकालें। ज्वार, बाजरा, मकई, गेहूं, दलिया सस्ता भी है और पौष्टिक भी। भोजन में अन्न की अपेक्षा साग, पत्तेदार सब्जी व फलों का अधिक प्रयोग करें। चौलाई, पालक, बथुआ, मेथी, मूली सस्ता, सुपाच्य, सुलभ, शक्तिदायक एवं पौष्टिक आहार है।
सस्ते व मौसमी फलों का सेवन करें। अधिक महंगे फलों से बलवान व स्वस्थ होने की मान्यता मन से निकाल दें। खीरा, ककड़ी, अमरूद, पपीता, गाजर, केला, चुकन्दर, शलजम, मूली, खरबूजा व तरबूज सस्ते फल हैं। इनके सेवन से स्वास्थ्य संपदा अक्षुण बनी रहती है। जल ही जीवन है। स्वस्थ मनुष्य को 3 लिटर पानी प्रतिदिन पीना चाहिए। आधा पेट भोजन करें, आधा जल व हवा के लिए खाली छोड़ें।
अधिक भोजन करने से अनेक हानियां हैं। जो ऊर्जा शरीर को बल प्रदान करने में लगनी चाहिए, वह भोजन पचाने में लग जाती है। दीर्घजीवी बनने की इच्छा रखने वाले को अल्पाहारी होना चाहिए।
भोजन एकान्त में प्रसन्न मुद्रा में तथा स्वच्छ स्थान पर करना चाहिए।
दूध पूर्ण आहार है। भोजन में इसे अवश्य स्थान दें।
प्रात:काल नाश्ते में दलिया, दूध, छाछ, फल इत्यादि हल्के पदार्थ ही लें।
सवेरे का भोजन 1० बजे तक व शाम का भोजन 6-7 बजे तक कर लेना चाहिए। रात को सोने से 3 घंटे पूर्व ही भोजन ले लेना ठीक रहता है। सप्ताह में एक दिन उपवास करके पेट को विश्राम दें। उस दिन पानी अधिक पियें। उपवास स्वास्थ्य तथा अध्यात्मक दोनों दृष्टि से हितकारी है।
प्रात: काल उठकर नित्य क्रि या से निवृत्त होकर टहलने का अयास करें। ब्रह्म मुहुर्त की वायु स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यंत लाभदायक होती है। प्रात: भ्रमण से पूर्ण व्यायाम हो जाता है तथा दिन भर ताजगी बनी रहती है। महात्मा गांधी नित्य प्रात: टहलने जाते थे।