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कोलकाता : लौकी में विटामिन ए, बी, और सी मिलता है। यह गरिष्ठ, रेचक और बलप्रद होती है। अशक्त और रोगियों के लिए यह लाभदायक है। गर्म प्रकृति वालों के लिए लौकी का सेवन ठंडक और पोषण देने वाला एवं अधिक हितकारी है। नरम, चिकनी, सफेद लौकी का सेवन ही करना चाहिए।लौकी की अनेक किस्में होती हैं जैसे लम्बी, तुमड़ी, चिपटी, तूमरा इत्यादि। सामान्यत: लौकी मीठी होती है और तुमड़ी कड़वी। लौकी की एक किस्म को तुमड़ी के आकार के फल लगते हैं। उसे ‘मीठी तुमड़ी’ कहते हैं और इसका साग बनाया जाता है जबकि कड़वी तुमड़ी के फलों का उपयोग नदी में तैरने के लिए होता है। लौकी की दूसरी किस्म ‘मगिया लौकी’ के रूप में प्रसिद्ध है।लौकी की तीसरी किस्म लम्बी बोतल जैसी होती है। लौकी लगभग बारह महीने होती है। लौकी के लिए क्षार-रहित जमीन ज्यादा अनुकूल मानी जाती है। इसके बीज सीधे ही बोये जाते हैं। वर्षा ऋतु के आरम्भ में इसके 2-2 बीज 6-6 फुट के अंतर पर बोये जाते हैं। ग्रीष्मकालीन फसल में 4 फुट के अंतर पर 2-2 फुट चौड़ी, नालियां बनाकर, 3-3 फुट केे अंतर पर इसका बीज बोना चाहिए। इसके पौधे से बेल बनती है। यह बेल लम्बाई में फैलती है और उस पर सफेद फूल लगते हैं। हमारे देश में लौकी की पैदावार अधिक मात्रा में होती है।सूखी लौकी की तुमड़ी का उपयोग पानी भरने के कूजे के रूप में, संगीत के वाद्य बनाने के लिए तथा इसी प्रकार के विभिन्न कार्यों में इस्तेमाल किया जाता है। इसके बीज का उपयोग औषधि के रूप में होता है। कड़वी लौकी के फल विषैले होते हैं। उसका उपयोग सख्त जुलाब देने के लिए होता है।लौकी हृदय के लिए हितकारी, पित्त व कफ को नष्ट करती है। वीर्यवर्धक, रुचि उत्पन्न करने वाली और धातु पुष्टि को बढ़ाती है। लौकी गर्भ की पोषक है। सगर्भा स्त्री के लिए लौकी पुष्टिदायक है। इसके सेवन से गर्भावस्था की कब्जियत दूर हो जाती है।