कहीं आप हाइपरविजिलेंस का शिकार तो नहीं हो रहे?

अति-सतर्कता या हाइपरविजिलेंस के कारण लोग खुद को थका हुआ और चिंतित महसूस करने लगते हैं।
कहीं आप हाइपरविजिलेंस का शिकार तो नहीं हो रहे?
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कोलकाता: जब काम का दबाव लगातार बना रहता है, तो दिमाग कभी-कभी हमेशा चौकन्ना रहने की अवस्था में पहुंच जाता है। यही अति-सतर्कता (हाइपरविजिलेंस) कहलाती है, जिसमें ध्यान सीमित हो जाता है और छोटी-छोटी बातें भी अनावश्यक रूप से खतरनाक महसूस होने लगती हैं। इसका असर काम पर ही नहीं, मन की शांति पर भी पड़ता है।

ऐसे में लगातार होने वाले तनाव को संभालना बहुत जरूरी है। छोटी कसरतें, समय पर ब्रेक, सीमाएं तय करना और काम को टुकड़ों में बांटना उस मानसिक गार्ड को थोड़ा आराम देते हैं। धीरे-धीरे संतुलन बनने लगता है और आप कामयाबी को बिना अपने मन पर बोझ डाले हासिल कर पाते हैं।

अति सतर्कता को समझें

अति-सतर्कता या हाइपरविजिलेंस के कारण लोग खुद को थका हुआ और चिंतित महसूस करने लगते हैं। यह स्थिति व्यक्तिगत असुरक्षा, पिछले अनुभवों या उच्च दबाव वाले कार्य वातावरण के कारण उत्पन्न हो सकती है। इसके अलावा, मानसिक या मनोवैज्ञानिक स्थितियों के साथ-साथ सामाजिक और पारिवारिक कारकों से भी जुड़ी हो सकती है। इसका प्रभाव व्यक्ति की निर्णय लेने की क्षमता और प्रदर्शन पर भी गंभीर रूप से पड़ता है।

रचनात्मक उपाय अपनाएं

यदि काम में सहजता महसूस नहीं हो रही है, तो जरूरी है कि आप स्थिति सुधारने के लिए नए तरीकों की तलाश करें। अपने विचारों पर ध्यान दें, क्योंकि वही भावनाएं बनाते हैं। नकारात्मक सोच से निकलने के लिए रचनात्मक उपाय अपनाएं और सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करें। यही आपको आगे बढ़ने की ताकत देगा।

खुशहाल वातावरण है जरूरी

अति सतर्कता से बचने के लिए अपने आस-पास के वातावरण को उद्देश्यपूर्ण तरीके से डिजाइन करना जरूरी है। आपका व्यवहार आपकी चिंता को कम कर सकता है। अपने दिमाग को तरोताजा और कठिन परिस्थितियों में खुद को शांत रखने के लिए आप धीरे-धीरे लंबी सांस लें। इसके अलावा, दैनिक दिनचर्या में व्यायाम, ताजा घास पर नंगे पैर चलना या गाने गुनगुनाने जैसी सरल प्रक्रियाओं को शामिल करें।

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