सातों दिन का क्रम ऐसे निर्धारित होता है

काल गणना
सातों दिन का क्रम ऐसे निर्धारित होता है
सातों दिन का क्रम ऐसे निर्धारित होता हैसातों दिन का क्रम ऐसे निर्धारित होता है
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सात वारों की गणना के लिए जो पद्धति वेदों में निर्धारित की गई है, विश्व के सभी राष्ट्र आदि काल से उसे ही मान्यता देते चले आए हैं। उसमें परिवर्तन करने की क्षमता आज तक किसी विज्ञान ने प्राप्त नहीं की। यहां हम उस पद्धति का वर्णन करना आवश्यक होगा।

संसार में पुरुष तथा प्रकृति के नाते प्रत्येक वस्तु को दो भागों में विभक्त किया गया है। प्रत्येक वर्ष को उत्तरायण एवं दक्षिणायण दो भागों में विभाजित किया गया है। प्रत्येक वार को दिन और रात दो भागों में बांटा गया है अर्थात जिस वार का दिन होता है, रात भी उसी वार की मानी जाती है। भारत में सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक का समय वार कहलाता है परंतु पश्चिमी देशों में दिन, रात्रि बारह बजे के ही बदल जाता है।

ऐसा क्यों? अमुक समय में पृथ्वी अपनी धुरी पर कितनी बार घूम चुकी है, इसका निश्चय करने के लिए भूमंडल पर किसी एक स्थान को मान्यता देनी होती है। वर्तमान समय में वह मान्यता इंग्लैंड में ग्रीनविच नगर को प्राप्त है, अतः सभी राष्ट्र अपने समय की गणना रेखा से किया करते हैं। भारत तथा इंग्लैंड में समय की दृष्टि से 5 घंटे और 30 मिनट का अंतर है।

सूर्योदय के समय जब अपने यहां वार परिवर्तन होता है, पाश्चात्य देश भी अपना वार उसी समय बदल लिया करते हैं। यद्यपि वहां सूर्योदय में अभी बहुत समय शेष रहता है, फिर भी गुरु देश भारत को मान्यता देने की दृष्टि से वे लोग ऐसा किया करते थे। वे आज भी रात्रि के बारह बजे बदलने की अपनी प्राचीन प्रथा पर अटल हैं। संस्कृत भाषा में दिन के लिए ‘अह‘ तथा रात के लिए ‘रात्रि‘ शब्द का प्रयोग किया जाता है, अर्थात एक दिन रात को ‘अहोरात्र‘ कहते हैं। अहोरात्र शब्द के आदि अंत के अक्षरों को छोड़ देने से संक्षेप में ‘होरा‘ कहा जाता है।

पूर्व क्षितिज पर इस समय यदि मेष राशि का उदय है तो कल इसी समय पुनः मेष राशि का उदय

होगा अर्थात एक दिन में बारह राशियों का एक चक्र पूरा हो जाता है। पूर्वार्ध तथा उत्तरार्ध की दृष्टि से प्रत्येक राशि को भी दो भागों में विभाजित किया गया है। इन भागों को भी होरा कहते हैं। इस प्रकार एक अहोरात्र में होरा नामक 26 विभाग माने गए हैं। आकाश में ग्रहों की स्थिति इस प्रकार है- सूर्य को केंद्र मानकर क्रम से बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, गुरू और शनि हैं।

सात वारों के नाम भी इन्हीं ग्रहों के नाम पर आधारित हैं- रविवार, सोमवार, मंगलवार, बुधवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार, शनिवार। पृथ्वी भी एक ग्रह है परंतु वारों की पंक्ति में उसका कोई स्थान नहीं है। कारण यह है कि पृथ्वी, सूर्य, मंगल, गुरू तथा शनि ग्रहों द्वारा प्रसारित सप्त रश्मियों को ग्रहण करती है, अतः प्राप्तकर्ता के नाते पृथ्वी पर पृथ्वी के नाम से कोई वार नहीं होगा। पृथ्वी किस-किस ग्रह से किस-किस कोण पर रश्मियां प्राप्त कर रही है इसका मूल्यांकन पृथ्वी को केंद्र मानकर ही करना होता है अर्थात पृथ्वी को रवि का स्थान देना होता है और पृथ्वी तथा रवि की भी परस्पर दूरी पूर्ववत बनी रहे, इस दृष्टि से रवि को पृथ्वी का स्थान देना होता है।

इस प्रकार जब मंगल ग्रह पर जाकर वार क्रम निर्धारित करना होगा, तब मंगल को रवि का स्थान देंगे तथा रवि को मंगल का स्थान देंगे और मंगल ग्रह के नाम से वहां कोई वार नहीं होगा। जब शनि ग्रह पर जाकर वार क्रम निर्धारित करना होगा, उस समय शनि को रवि का तथा रवि को शनि का स्थान देंगे और वहां शनि के नाम का कोई वार नहीं रखा जाएगा। यही क्रम अन्य ग्रहों पर भी लागू होता है। यह तो ठीक है कि पृथ्वी पर पृथ्वी के नाम का कोई वार नहीं होता परंतु चंद्रमा के नाम से एक वार अवश्य रखना होगा, वह इसलिए कि ग्रह तो केवल सौर रश्मियों को ही पृथ्वी पर परावर्तित करते हैं परंतु आकाश स्थित अन्य नक्षत्रों से रश्मियों का प्रसार हर समय बना रहता है। चंद्रमा, पृथ्वी के निकटस्थ होने के कारण उन रश्मियों को पृथ्वी तक पहुंचने नहीं देता। अतः पृथ्वी के स्थान पर एक दिन चंद्रमा के नाम से सोमवार रखा गया है। पृथ्वी पर वार क्रम के रखने की दृष्टि से पृथ्वी को रवि का तथा रवि को पृथ्वी का स्थान दिया गया है। चंद्रमा पृथ्वी का ही उपग्रह है, अतएव पृथ्वी कहीं भी रहे, चंद्रमा को उसके साथ ही स्थान देना होता है।

इसके अनुसार ग्रहों की स्थिति इस प्रकार से बन जाती है- चंद्रमा सहित पृथ्वी से आरंभ पहले बुध, उसके आगे शुक्र, फिर रवि और रवि के आगे क्रमशः मंगल, गुरू तथा शनि हैं। इस क्रम के अनुसार प्रातः सूर्योदय से आरंभ होकर एक-एक ग्रह की एक-एक होरा मानी जाती है। दूसरे दिन सूर्यास्त के समय जिस चौथे ग्रह की होरा आएगी, वह वार उसी ग्रह के नाम पर होगा। यह क्रम बाहर से केंद्र की ओर चलता है। मान लो आज रविवार है तो पहली होरा रवि से आरंभ होकर दूसरी होरा शुक्र की, तीसरी होरा बुध की, चौथी सोम की, पांचवीं शनि की, छठी बृहस्पतिवार की, सातवीं मंगल की और आठवीं फिर रवि की होगी। इस प्रकार 15वीं तथा 22वीं फिर रवि की होगी।

अतः रविवार से अगले दिन सोमवार होगा। अब सोमवार से आरंभ होकर पहली, आठवीं, पंद्रहवीं तथा इक्कीसवीं होरा फिर सोम की आएगी। 23वीं शनि तथा 24वीं गुरू की होकर अहोरात्रा समाप्त हो गया। तब तीसरे दिन प्रातः मंगल की होरा होगी। अतः वह मंगलवार कहलाएगा। इसी क्रम से सातों बार गिन लीजिए, व्यवस्था ठीक उतरेगी। यह ठीक है कि तिथि तथा नक्षत्रा की भांति वारक्रम प्रत्यक्ष नहीं देखा जा सकता किंतु वह है ग्रह संस्थान के अनुसार सुव्यवस्थित। नरेंद्र देवांगन (उर्वशी)

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