कोलकाता : धर्म ग्रंथों के अनुसार, प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी भगवान श्रीगणेश को प्रसन्न करने के लिए व्रत-पूजा की जाती है। इसे संकष्टी चतुर्थी कहते हैं। इस बार भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 3 सितंबर, रविवार को है, इसलिए इसी दिन ये व्रत किया जाएगा। ये चतुर्थी साल में आने वाली 4 प्रमुख चतुर्थी में से एक है। इस दिन कई शुभ योग बनेंगे, जिसके चलते इसका महत्व और भी बढ़ गया है। आगे जानिए संकष्टी चतुर्थी व्रत की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त व अन्य खास बातें…
ये शुभ योग बनेंगे इस दिन
03 सितंबर, रविवार को रेवती नक्षत्र होने से वर्धमान और अश्विनी नक्षत्र होने से आनंद नाम के शुभ योग बनेंगे। सिंह राशि में बुध और सूर्य के होने से बुधादित्य नाम का राजयोग बनेगा। इनके अलावा सर्वार्थसिद्धि, वृद्धि और ध्रुव नाम के 3 अन्य शुभ योग भी इस दिन रहेंगे। इस दिन चन्द्रोदय रात 08:57 पर होगा, इसके पहले भगवान श्रीगणेश की पूजा कर लें और चंद्रमा उदय होने पर अर्घ्य देकर व्रत पूर्ण करें।
इस विधि से करें संकष्टी चतुर्थी की पूजा
– 3 सितंबर, रविवार की सुबह उठकर नहाने के बाद व्रत-पूजा का संकल्प लें। वैसे तो इस व्रत में निराहार (बिना कुछ खाए-पिए) रहना होता है, लेकिन ऐसा संभव न हो तो फलाहार या दूध ले सकते हैं।
– पूरे दिन कम बोलें- बुरे विचार मन में न लाएं। शाम को चंद्रमा उदय होने से पहले भगवान श्रीगणेश की पूजा करें। शुद्ध घी का दीपक जलाएं। कुंकम से तिलक करें, फूल माला पहनाएं।
– अपनी इच्छा अनुसार भगवान श्रीगणेश को भोग लगाएं। दूर्वा भी जरूर चढ़ाएं। पूजा के दौरान श्रीगणेशाय नम: मंत्र का जाप करते रहें। जब चंद्रमा उदय हो तो जल से अर्घ्य देकर पूजा संपन्न करें।
गणेशजी की आरती
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥
एक दंत दयावंत, चार भुजाधारी
माथे पे सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी ॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥
हार चढ़ै, फूल चढ़ै और चढ़ै मेवा
लड्डुअन को भोग लगे, संत करे सेवा ॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥
दीनन की लाज राखो, शंभु सुतवारी
कामना को पूर्ण करो, जग बलिहारी ॥
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा ॥