राजस्थान में नदियों के प्रदूषण से निपटने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने उच्च स्तरीय समिति गठित की

जोजरी नदी में प्रदूषण से संबंधित एक स्वतः संज्ञान मामला
सुप्रीम कोर्ट
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नयी दिल्ली/ जयपुर : सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान में 3 नदियों के लगातार प्रदूषण से लगभग 20 लाख लोगों का जीवन जोखिम में पड़ जाने का शुक्रवार को उल्लेख करते हुए आवश्यक उपायों की निगरानी के लिए एक उच्च स्तरीय पारिस्थितिकी तंत्र निरीक्षण समिति का गठन किया।

पीठ ने कहा कि राजस्थान हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति संगीत लोढ़ा समिति के अध्यक्ष होंगे। न्यायालय ने जोजरी नदी में प्रदूषण से संबंधित एक स्वतः संज्ञान मामले में यह आदेश पारित किया।

शीर्ष अदालत ने कहा कि राजस्थान में जोजरी, बांडी और लूनी नदियों में प्रदूषण, नियामक सतर्कता के करीब दो दशक से ‘व्यवस्थागत पतन’ और ‘पूर्ण प्रशासनिक उदासीनता’ को दर्शाता है।

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने कहा, वर्तमान कार्यवाही में गंभीर चिंता और विनाशकारी परिणाम के मुद्दे शामिल हैं, क्योंकि यह सभी स्तरों पर उदासीनता का नतीजा है, जिसने वस्तुतः पश्चिमी राजस्थान में 20 लाख लोगों, पशुओं और तीन महत्वपूर्ण नदियों के पारिस्थितिकी तंत्र को जोखिम में डाल दिया है।

न्यायालय ने कहा कि इन नदी पारिस्थितिक तंत्रों का प्रदूषण न केवल प्राकृतिक जलमार्गों पर हमला है, बल्कि भारतीय गणराज्य बनाए रखने वाली संवैधानिक गारंटी पर भी हमला है। अर्थात जीवन, गरिमा, स्वास्थ्य, सुरक्षित पेयजल, पारिस्थितिक संतुलन, समानता और भविष्य की पीढ़ियों के लिए जीवन को बनाए रखने के जरूरी पर्यावरण को विरासत में पाने का अधिकार।

पीठ ने कहा कि जब पर्यावरणीय क्षरण इतने ‘विशाल अनुपात’ पर पहुंच जाता है कि यह इन ‘गारंटी’ की नींव पर प्रहार करता है, तो यह क्षति पारिस्थितिक क्षेत्र से आगे निकल जाती है और प्रत्यक्ष संवैधानिक क्षति बन जाती है, जिसके लिए तत्काल, व्यापक और प्रभावी न्यायिक निवारण की आवश्यकता होती है।

न्यायालय ने कहा कि कि जोजरी नदी जोधपुर से होकर गुजरती है, बांडी नदी पाली से होकर बहती है, और लूनी नदी बालोतरा से गुजरती है। बांडी और जोजरी नदियां बालोतरा शहर के पास लूनी नदी में मिल जाती हैं।

पीठ ने कहा, इस अदालत से वर्षों से, पर्यावरणीय क्षरण से संबंधित अनगिनत मुद्दों की जांच करने का आग्रह किया गया है, लेकिन इस मामले का तथ्यात्मक सार इससे हुए नुकसान की अवधि, सीमा और परिमाण के संदर्भ में स्पष्ट है।

न्यायालय ने कहा कि इस तरह के गहरे पर्यावरणीय क्षरण के मद्देनजर, देरी न केवल अवांछनीय है, बल्कि यह ‘कैंसरकारी और विनाशकारी’ भी है। समिति की पहली वस्तु स्थिति रिपोर्ट प्राप्त करने के लिए मामले को 27 फरवरी के लिए स्थगित कर दिया गया।

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