राष्ट्र व धर्म की रक्षा हेतु महंगी जमीन के खरीदार सेठ दीवान टोडर मल

राष्ट्र व धर्म की रक्षा हेतु महंगी जमीन के खरीदार सेठ दीवान टोडर मल
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सेठ दीवान टोडर मल सरहिंद के नवाब वजीर खान के दरबार में दीवान थे। फुलकियान राज्य गजेटियर के अनुसार वह पटियाला से कुछ मील की दूरी पर स्थित काकड़ा गांव के निवासी थे। सिख इतिहास में, उन्हें बहुत बड़ी कीमत पर एक छोटी-सी भूमि खरीदने के लिए याद किया जाता है, जिसे उन्होंने माता गुजरी एवं गुरु गोविंद सिंह के साहिबजादे जोरावर सिंह और बाबा फतेह सिंह के शवों के अंतिम संस्कार के लिए खरीदी थी।
दीवान टोडर मल इस क्षेत्र के एक धनी व्यक्ति थे और गुरु गोविंद सिंह जी एवं उनके परिवार के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर करने को तैयार थे। उन्होंने वजीर खान से साहिबजादों के पार्थिव शरीर की मांग की और वह भूमि जहां वे शहीद हुए थे, वहीं पर उनकी अंत्येष्टि करने की इच्छा प्रकट की। वजीर खान ने धृष्टता दिखाते हुए भूमि देने के लिए एक अटपटी और अनुचित मांग रखी। वजीर खान ने मांग रखी कि इस भूमि पर सोने की मोहरें बिछाने पर जितनी मोहरें आयेंगी वही इस भूमि का दाम होगा। दीवान टोडर मल ने अपने सब भण्डार खाली करके जब मोहरें भूमि पर बिछानी शुरू कीं तो वजीर खान ने धृष्टता की पराकाष्ठा पार करते हुए कहा कि मोहरें बिछा कर नहीं बल्कि खड़ी करके रखी जायेंगी। दीवान टोडर माल ने अपना सब कुछ बेच-बाच कर और मोहरें इकट्ठी कीं और 78000 सोने की मोहरें देकर चार गज भूमि को खरीदा ताकि गुरु जी के साहिबजादों का अंतिम संस्कार वहां किया जा सके। विश्व के इतिहास में ऐसे त्याग का कोई और दूसरा उदाहरण नहीं मिलता, ना ही किसी भूमि के टुकड़े का इतना भारी मूल्य कहीं और आज तक चुकाया गया।
आज उस स्थान पर एक भव्य गुरुद्वारा बन चुका है, जिसे गुरुद्वारा ज्योति-स्वरूप के नाम से जाना जाता है। यह गुरुद्वारा फतेहगढ़ साहिब से लगभग एक मील की दूरी पर पूरब में स्थित है। दोनों गुरुद्वारों को जोड़ने वाली सड़क को दीवान टोडर मल मार्ग के नाम से जाना जाता है। इस सड़क पर एक भव्य स्वागतद्वार का भी निर्माण किया गया है, जिसे दीवान टोडर मल स्मारक द्वार कहा जाता है। फतेहगढ़ साहिब में सिखों द्वारा उनकी महान सेवा को याद करने के लिए एक विशाल सभा भवन का निर्माण किया गया है, जो दीवान टोडरमल के प्रति सिखों के सम्मान का प्रतीक है।
1704 ई में सरहिन्द के नवाब वजीर खान ने गुरु गोविन्द सिंह एवं माता गुजरी देवी के युवा साहिबजादों बाबा जोरावर सिंह एवं बाबा फतेह सिंह को गिरफ्तार कर लिया एवं उनके सामने शर्त रखी कि यदि वे इस्लाम धर्म स्वीकार कर लें तो उन्हें माफ कर दिया जाएगा। 16 वर्ष एवं 9 वर्ष के बालकों ने मृत्यु को स्वीकार कर लिया लेकिन इस्लाम को स्वीकार नहीं किया। मानव इतिहास में अपने धर्म की रक्षा करने के लिए इतनी कम उम्र के बालकों द्वारा दिखाए गए निश्चय एवं संकल्प का दूसरा कोई उदाहरण नहीं मिलता। इसी महान घटना को मानवता एवं भारतवासियों को याद दिलाने के लिए भारत सरकार द्वारा 12 दिसम्बर को 'वीर बाल दिवस' के रूप में मनाया जाता है। बाद में जब गुरु गोविन्द सिंह जी को इस बारे में पता चला तो उन्होंने दीवान टोडर मल से कृतज्ञता प्रकट की और उनसे कहा कि वे उनके त्याग से बहुत प्रभावित हैं और उनसे इसके बदले में कुछ मांगने को कहा। दीवान टोडर मल ने गुरुजी से कहा की यदि कुछ देना ही चाहते हैं तो कुछ ऐसा वर दीजिए की मेरे घर पर कोई पुत्र ना जन्म ले और मेरी वंशावली यहीं मेरे साथ ही समाप्त हो जाए। इस अप्रत्याशित मांग पर गुरु जी सहित सब लोग हक्के-बक्के रह गए। गुरु जी ने दीवान जी से इस अद्भुत मांग का कारण पूछा तो दीवान जी का उत्तर ऐसा था जो रोंगटे खड़े कर दे। दीवान टोडर मल ने बताया कि 'गुरु जी यह जो भूमि इतने महंगे दाम देकर खरीदी गयी और आपके चरणों में न्यौछावर की गयी, मैं नहीं चाहता की कल मेरे वंशज कहें कि यह भूमि मेरे पुरखों ने खरीदी थी'।
हवेली टोडर मल (जो जहाज हवेली या जहाज महल के नाम से प्रसिद्ध है) जो 17वीं शताब्दी के टोडर मल की हवेली है। टोडर मल सरहिंद के एक वैश्य परिवार के व्यक्ति थे, जो नवाब वजीर खान के दीवान रहे। यह हवेली सरहिंद-रूपनगर रेलवे लाइन के पूर्व में स्थित हरनाम नगर में स्थित है, जो फतेहगढ़ साहिब से केवल 1 किमी दूरी पर स्थित है। इसकी देखरेख अब पंजाब सरकार और इंटक की मदद से शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक समिति करती है। टोडर मल के वंशज सरहिंद से लुधियाना चले गए। इतिहास के दोनों टोडर मल एक ही परिवार से हैं। टोडर मल परिवार के सदस्यों का रिकॉर्ड हरिद्वार में 16वीं शताब्दी से उपलब्ध है। सरहिंदी ईंटों द्वारा निर्मित यह हवेली मुगल गवर्नर नवाब वजीर खान के महल के ठीक बाहर स्थित है।-गोपाल शरण गर्ग

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