भारतीय राजनीति और समाज के आदर्श प्रेरक : रामदास अग्रवाल | Sanmarg

भारतीय राजनीति और समाज के आदर्श प्रेरक : रामदास अग्रवाल

रामदास अग्रवाल उन चुनिन्दा लोगों में से थे, जिन्हें समझने के लिए आपको समय और सोच की नहीं, बल्कि हृदय से जुड़ी हुई गहरी भावनाओं की जरूरत पड़ेगी। सरल, सहज और मृदुभाषी रामदास जी में एक पूरा संसार छिपा हुआ था। एक साथ उन्होंने अलग-अलग कार्यक्षेत्रों में अपनी अमिट छाप छोड़ी। वे अग्रवाल प्रारम्भ से ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ विद्यार्थी परिषद, विश्व हिन्दू परिषद, चैम्बर ऑफ कामर्स, रोटरी जैसी अनेक संस्थाओं से जुडे़ रहे तथा उनमें सक्रियता से काम करते हुए अनेक पदों पर सुशोभित रहे। चुनौतियों से जूझना उनके व्यक्तित्व का अभिन्न अंग था। समस्याओं को हल करते हुए आगे बढ़ना, चलते जाना, बस चलते जाना, जो साथ आए, उसे अपना हमसफर बना लेना, यही थे उनके व्यक्तित्व के वो रंग, जिनमें पूरी दुनिया समा गई।

रामदास जी के जीवन के पन्ने को पलटना, एक युग को जानना है। आज हमारे सामने उनके 80 साल की उपलब्धियों की एक विराट गौरवगाथा है। उनके जीवन का हर क्षण प्रेरणादायी और देश व समाज के लिए समर्पित रहा है। किसी भी एक व्यक्ति के लिए यह आसान नहीं है कि वो अलग–अलग कार्यक्षेत्रों में प्रभावी तरीके से अपनी मौजूदगी दर्ज कराए, लेकिन रामदास जी ने न केवल बड़े ही सफलतापूर्वक व्यापार, राजनीति, समाजसेवा में गहरी दखल दी, बल्कि इन क्षेत्रों को एक नई दिशा भी दी, जो आज नए प्रतिमान के तौर पर स्थापित हैं। उनको यह सहज रंग अपने जन्मस्थान गुलाबी शहर जयपुर से मिला, जहां 17 मार्च 1937 में उनका जन्म हुआ था। वे रामेश्वर दास अग्रवाल और मैना अग्रवाल के सबसे ज्येष्ठ पुत्र थे। प्रारम्भिक शिक्षा के बाद रामदास जी ने जयपुर के महाराजा कॉलेज से हिन्दी विशारद किया। स्वभाव से ही उद्यमी रामदास जी ने व्यापार को अपना कार्यक्षेत्र बनाने का फैसला किया। उन्होंने जो भी काम अपने हाथों में लिया उस पर उनकी गहरी छाप दिखती थी। उनके काम करने का एक तरीका था, जिसके केंद्र में सबका हित सर्वोपरि है, यही कारण है कि जीवन के सफर में उनके साथ जो भी कदम भर चला, वो क्षण उसके जीवन में सबसे यादगार पल बन गया।

उन्होंने अपने व्यवसायिक जीवन में नई कार्यशैली विकसित की, जो आगे आने वालों के लिए एक विरासत है। समय के साथ रामदास जी के व्यक्तित्व का विकास होता गया और उसकी परिणति राजनीति में देखने को मिली। राजनीति के जरिए समाजसेवा और देशसेवा की सोच उनमें शुरू से ही थी। यही वजह है कि राजनीति में उनके व्यक्तित्व का विस्तार दिखता था। उन्होंने 1990 से 1996 तक, उसके बाद 1996 से 2002 तक और फिर 2006 से 2012 तक (3 टर्म) राज्यसभा सांसद के तौर पर संसद में महत्वपूर्ण दखल दी, साथ ही उन्होंने भारतीय जनता पार्टी संगठन में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाई। मई 1990 में भाजपा राजस्थान के प्रदेश अध्यक्ष मनोनित किये गए तत्पश्चात् दो बार निर्विरोध प्रदेश अध्यक्ष निर्वाचित होते हुए लगभग साढे़ सात वर्षों तक राजस्थान में भाजपा के कार्य को बहुत उचाइयों तक पहुंचाया तथा अनेक संघर्षपूर्ण अवसरों पर सांगठनिक कौशल का परिचय देते हुए शानदार सफलता प्राप्त की। वर्ष 1999 में लोकसभा चुनावों में केन्द्रीय नेतृत्व ने राजस्थान के चुनावों का भार आप पर छोड़ा। तत्कालीन प्रधाननमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के मार्गदर्शन में भाजपा के चुनाव का संचालन करते हुए आपने राजस्थान में भारी सफलता प्राप्त की। 24 दिसम्बर 1999 में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष कुषाभाऊ ठाकरे ने उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष नियुक्त किया। वर्ष 2002 में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष वैंकया नायडू ने भाजपा का राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष तथा 2007 में राजनाथ सिंह ने भी राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष नियुक्त किया। रामदास जी को 17 अप्रैल 2000 को भारत के तत्कालीन उपराष्ट्रपति स्वर्गीय कृष्णकांत ने उद्योग मंत्रालय से संबद्ध संसद की स्थायी समिति का चैयरमैन नुियक्त किया। 2000 से वर्ष 2002 तक अपने कार्यकाल में इस समिति ने महत्वपूर्ण रिर्पोट संसद में प्रस्तुत की जो एक रिकार्ड है।

रामदास जी ने पार्टी पदाधिकारी और सांसद के तौर पर राजनीति में अपनी एक खास जगह बनाई। यही कारण है कि उनके प्रशंसक हर दल में मिलेंगे। व्यक्ति और काम की गहरी समझ रखने वाले रामदास जी के लिए काम किसी साधना से कम नहीं था। व्यवसायिक सफलता के साथ–साथ उन्होंने समाजसेवा को अपने कर्मक्षेत्र का अभिन्न हिस्सा बना लिया था। खुद रामदास जी कहते थे कि समाजसेवा का दायित्व भी हमारा है, हमें अपनी व्यस्त दिनचर्या में भूलना नहीं चाहिए, घर-बार, परिवार, उद्योग, व्यापार चलाना हमारा धर्म है पर समाज की परिस्थितियों के आवश्यकतानुसार संजोना, संगठित करने का काम भी तो हमें आपको ही करना है। समाज के प्रति समर्पण को देखते हुए रामदास जी को 9 नवम्बर 1997 को अखिल भारतीय वैश्य महासम्मेलन का सर्वसम्मति से राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया। पुनः 2001 में दूसरी बार एवं 2004 में तीसरी बार निविरोध राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया। विश्वबंधुत्व की सोच से रामदास जी ने वैश्य समाज को लेकर अंतरराष्ट्रीय मंच तैयार किया। दुनियाभर में फैले समाज के लोगों को इस संदेश के साथ बुलावा भेजा कि आओ साथ मिलकर भारत और विश्व समाज के लिए कुछ और बेहतर करें।

रामदास जी 31 मार्च 2013 को दिल्ली में हुई देश भर के विशिष्ट वैश्य नेताओं की बैठक में अंतरराष्ट्रीय वैश्य महासम्मेलन (आईवीएफ) की स्थापना का प्रस्ताव रखा, जिसे उपस्थित सभी बन्धुओं से सहर्ष स्वीकार किया। दिनांक 6 जुलाई 2013 को जयुपर में आयोजित विश्वभर से आए वैश्य समाज के नेताओं, राजनेताओं, समाजसेवियों एवं हजारों कार्यर्ताओं की उपस्थिति में वे आईवीएफ के संस्थापक अध्यक्ष निर्वाचित हुए। उन्होंने 3 साल के अल्पकाल में ही संस्था को एक नयी ऊंचाइयों तक पहुंचाया और आज विश्वभर में आईवीएफ विख्यात है। रामदास अग्रवाल एक अकेला नाम अपने अंदर बहुआयामी व्यक्तित्व को समेटे हुए थे। आप उनके बारे में लोगों से पूछे तो कोई उन्हें समाजसेवी, तो कोई राजनेता कहेगा, तो कोई वैश्य समाज का पुरोधा कर्ताधर्ता। एक अकेले व्यक्ति के अंदर इतने रंग समाए हुए थे कि उसका वर्णन करना आसान नहीं है।-गोपाल शरण गर्ग

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