सन्मार्ग संवाददाता
कोलकाता /नयी दिल्ली : उड्डयन क्षेत्र में सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ गई है, क्योंकि हाल ही में सामने आए आंकड़ों के अनुसार, 2018 से 2024 के बीच 907 विमान दुर्घटनाएं हुईं। इनमें से सबसे अधिक जोखिम लैंडिंग (उड़ान के दौरान) के चरण में देखा गया, जहां 36.6% हादसे दर्ज किए गए। यह जानकारी उड्डयन के आधिकारिक आंकड़ों पर आधारित है, जो नियामकों और हवाईअड्डा प्राधिकरणों के लिए चिंता का विषय बन गया है।
दुर्घटनाओं का विवरण :
लैंडिंग (उड़ान के दौरान) : 332 हादसे
एयर क्रू (गतिविधियों के दौरान उड़ान में) : 219 हादसे
ग्राउंड (जमीन पर - टैक्सी, पार्किंग आदि) : 166 हादसे
टेकऑफ (उड़ान भरते समय) : 92 हादसे
अप्रोच (लैंडिंग से पहले का चरण) : 65 हादसे
इनिशियल क्लाइंब (टेकऑफ के बाद की शुरुआती चढ़ाई) : 26 हादसे
अन्य : 5 हादसे
आंकड़े यह कहते हैं
आंकड़ों के अनुसार, लैंडिंग के दौरान हुए हादसों की संख्या 36.6% है, जो इस चरण में सबसे अधिक जोखिम को दर्शाता है। इसके बाद ग्राउंड ऑपरेशन और टेकऑफ ऑपरेशन में भी हादसे हुए। विशेषज्ञों का मानना है कि यह डेटा पायलटों, रनवेलाइट्स और विमानन नियामकों के लिए एक सबक है, जो सुरक्षा उपायों को और मजबूत करने में मदद कर सकता है। इस डेटा के आधार पर, विशेषज्ञों ने सुझाव दिया है कि हवाईअड्डा प्राधिकरण और विमानन नियामकों को लैंडिंग और टेकऑफ जैसे संवेदनशील चरणों पर विशेष ध्यान देना चाहिए। बेहतर प्रशिक्षण, उन्नत तकनीक और सख्त सुरक्षा प्रोटोकॉल लागू करने से इन हादसों को कम किया जा सकता है। हालांकि यह आंकड़ा सामान्य रुझानों को दर्शाता है, लेकिन अहमदाबाद में हुए एयर इंडिया ड्रीमलाइनर हादसे ने इस मुद्दे को फिर से गंभीरता से उठाया है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह की घटनाओं की जांच से भविष्य में सुरक्षा मानकों को और मजबूत करने में मदद मिल सकती है।