कुंभ में एक डुबकी से मिलते हैं 108 पृथ्वी परिक्रमा और 100 अश्वमेध यज्ञ के बराबर पुण्य

सुबुद्धानंद ब्रह्मचारी महाराज ने कहा
सुबुद्धानंद ब्रह्मचारी महाराज
सुबुद्धानंद ब्रह्मचारी महाराज
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सन्मार्ग संवाददाता
कोलकाता :
सनातन धर्म व धर्म शास्त्रों में कुंभ की व्याख्या है कि 108 बार पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करने व 100 अश्वमेध यज्ञ करने का जो फल मिलता है, वह कुंभ में एक बार डुबकी लगाने से मिल जाता है। यह कहना है बह्मलीन जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज के निजी सचिव व राजराजेश्वरी सेवा न्यास के अध्यक्ष सुबुद्धानंद ब्रह्मचारी महाराज का। वह फिलहाल कोलकाता में पधारे हुए हैं। हुगली के कोन्नगर में स्थापित भगवती राजराजेश्वरी त्रिपुर सुंदरी का 29वां पटोत्सव बड़े उत्साह के साथ मनाया गया। यहां उनका कहना है कि अभी किसी के लिए भी पृथ्वी की परिक्रमा और अश्वमेध यज्ञ करना संभव नहीं है, इसलिए लोग कुंभ में स्नान करने के लिए बड़ी संख्या में जुट रहे हैं। इस धार्मिक उत्सव में लोगों की भीड़ जुट रही है और यह एक सकारात्मक संकेत है कि धर्म की ओर लोगों की रुचि बढ़ रही है।

संकट आने पर भगवान की शरण में जाएं
सुबुद्धानंद ब्रह्मचारी महाराज ने कहा कि जिस पर भी संकट आये, वे भगवान की शरण में जाएं, भगवान ही उसे ठीक करते हैं। आदि शंकराचार्यजी ने प्रश्नोत्तरी में कहा है कि आपत्ति काल में भगवान के चरणों की शरण में जाना चाहिए। कोलकाता और पूरी दुनिया में अशांति का माहौल है, लेकिन कुंभ मेले में लाखों लोग शांति और धार्मिक जागृति के लिए पहुँच रहे हैं। पहले कुंभ में इतनी भीड़ नहीं होती थी, लेकिन अब यह दृश्य बदल चुका है। अब नास्तिक लोग भी कुंभ में स्नान करने जा रहे हैं, जो पहले इसका महत्व नहीं समझते थे। इससे यह स्पष्ट होता है कि धर्म का उत्थान हो रहा है और इससे देश में शांति का वातावरण बनेगा।

144 साल बाद कुंभ का मुहूर्त
ज्योतिषियों के अनुसार, 144 वर्षों के बाद यह अवसर आया है, जब यह विशेष समय और योग बन रहे हैं। यह गणना और नक्षत्रों के आधार पर तय किया गया है, जो धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। अब लोग बिना किसी भय के सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं, जो पहले मुश्किल था। अयोध्या में राम जन्मभूमि पर मंदिर के निर्माण के बाद यह जागृति और अधिक बढ़ी है। कुंभ में भीड़ बढ़ रही है और लोग खुले तौर पर धर्म की बात कर रहे हैं। यह दर्शाता है कि समाज में अब डर और झिझक खत्म हो चुकी है। विभिन्न धर्मों के लोग भी सनातन धर्म के महत्व को समझ रहे हैं और इस प्रकार धर्म के प्रति लोगों में जागरुकता फैल रही है।

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