

विशाखा तिवारी, सन्मार्ग संवाददाता
कोलकाता : मां दुर्गा के बाद अब बारी है मां के सबसे विशाल और रौद्र रूपी मां काली के आगमन की। कहते हैं कि बंगाल के लिए दुर्गा मां है तो काली बेटी। काली पूजा के लिए राज्य भर में जोर शोर से तैयारियां शुरू हो गई हैं। इस साल काली पूजा और दिवाली 20 अक्टूबर को मनाई जाएगी। इस वक्त कुम्हारटोली के कारीगरों के पास नींद पूरी करने का समय नहीं है। दुर्गापूजा में ज्यादातर पूजा कमेटियों के सदस्यों की भीड़ देखी जाती है लेकिन काली पूजा घर-घर में मनाई जाती है। विशेषकर बंगाली घरों में यह काफी प्रचलित है।
हालांकि मूर्तिकारों के कार्यों में बाधा बन रही है बारिश। निम्न दबाव के कारण राज्य भर में भारी बारिश का सिलसिला जारी है जिसका प्रभाव हम सभी ने दार्जिलिंग में देखा। उत्तर बंगाल में हुई भारी बारिश ने टूरिज्म पर गहरा प्रभाव डाला है जिसकी कल्पना करना भी मुश्किल है। रुक-रुककर हो रही बारिश ने शिल्पकारों के नाक में दम कर दिया है। आमतौर पर एक मूर्ति को तैयार करने में 10 से 15 दिनों का समय लगता लेकिन बारिश के कारण मूर्तिकार के काम पीछे रह जा रहे हैं। ऐसे में वह चिंतित है कि वह आखिर कैसे समय पर अपना ऑडर कर पायेंगे। दिवाली व कालीपूजा में महज 9 दिन बचे हैं। अब, मूर्तिकारों ने एक जुगाड़ निकाल लिया है।
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लकड़ियां जलाकर मूर्तियों को सूखा रहे हैं मूर्तिकार
त्योहारों का मौसम करीब आते ही मूर्तिकारों की मेहनत रंग लाने लगी है। बारिश के बीच मिट्टी की मूर्तियों को सुरक्षित रखने के लिए कारीगर लकड़ियां जलाकर उन्हें सूखा रहे हैं। आग की गर्मी और धुएं के बीच कला और आस्था का यह संगम एक अनोखा दृश्य पेश करता है। मूर्तिकारों का कहना है कि लगातार नमी के कारण मूर्तियां फटने का खतरा रहता है, इसलिए यह पारंपरिक तरीका सबसे कारगर है। दुर्गा पूजा की तैयारियों में जुटे ये कारीगर दिन-रात अपनी रचनाओं को आकार दे रहे हैं ताकि पंडालों में देवी की भव्य झलक दिखाई दे सके।
लकड़ियों की जलती लौ के बीच जब मूर्तियों पर पड़ती गर्मी की आंच से मिट्टी सूखती है, तो मानो कला में जान आ जाती है। मूर्तिकारों का कहना है कि यह प्रक्रिया न केवल मूर्तियों को मजबूती देती है, बल्कि उनकी चमक भी बढ़ाती है। कई जगहों पर बिजली की कमी या अधिक नमी होने के कारण कारीगर यही पारंपरिक तरीका अपनाते हैं। बारिश के बावजूद उनके जोश में कोई कमी नहीं है। बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक सब इस कला में हाथ बंटा रहे हैं। दुर्गा पूजा की तैयारियों से पूरा इलाका भक्ति और सृजन की सुगंध से महक उठा है।
कुम्हारटोली में उमड़ रही इंस्टाग्रामर्स की भीड़
त्योहारों के मौसम में कुम्हारटोली फिर से अपनी रौनक में लौट आई है। मिट्टी की महक, रंगों की छटा और कारीगरों की मेहनत से सजी गलियों में अब कैमरों की चमक भी जुड़ गई है। दिन हो या शाम, हर ओर इंस्टाग्रामर्स की भीड़ उमड़ रही है, जो अपने लेंस में परंपरा, कला और संस्कृति की खूबसूरती को कैद कर रही है। मिट्टी से देवी दुर्गा की मूर्तियां आकार लेती देखना किसी जादू से कम नहीं लगता। हाथों में मोबाइल या कैमरा थामे युवा, ब्लॉगर और फोटोग्राफर हर मूर्ति, हर मुस्कान और हर पल को सोशल मीडिया पर साझा करने में जुटे हैं।
कुम्हारटोली अब सिर्फ मूर्तियों का केंद्र नहीं, बल्कि कला और क्रिएटिविटी का हॉटस्पॉट बन चुका है। यहां की गलियां इंस्टाग्राम रील्स, फोटोशूट और व्लॉग्स के लिए परफेक्ट बैकग्राउंड दे रही हैं। स्थानीय कारीगरों के लिए भी यह नई उम्मीद लेकर आई है, क्योंकि सोशल मीडिया पर वायरल तस्वीरें उनके काम को दूर-दूर तक पहचान दिला रही हैं। परंपरा और आधुनिकता के इस संगम ने कुम्हारटोली को एक जीवंत कैनवास में बदल दिया है, जहां हर क्लिक में श्रद्धा, मेहनत और भारतीय संस्कृति की आत्मा झलकती है।